Thursday ,21st November 2024

गंभीर बहस के बजाय तू-तू, मैं मैं में उलझती पत्रकारिता और रद्दी होता अख़बार ?

  आलेख -राजेन्द्र सिंह जादौन एक पत्रकार या मानवाधिकार रक्षक पर मुकदमे दबाव डालने के लिए लाए जाते हैं, न कि अधिकार को साबित करने के लिए और यह प्रायः बेकार, तुच्छ या अतिरंजित दावों पर आधारित होते हैं। स्वतंत्र पत्रकारिता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक और चुनौती सरकारों द्वारा ऑनलाइ...

आखिर मन की बात बे-मन से कब तक ?

  भारत का तीसरी बार बैशाखियों के सहारे नेतृत्व कर रहे प्रधानमंत्री श्रीनरेंद्र दामोदर दास मोदी की एक ही बात मुझे अच्छी लगती है कि वे देश की जनता से भले ही विपक्ष के नेता राहुल गांधी की तरह सड़कें नापकर संवाद न करते हों, लेकिन आकाशवाणी के जरिये देश की जनता से अपने ' मन की बात ' जरूर कर...

सबकुछ बेचकर मीडिया को ख़रीदलो ....?

  मीडिया उन मुद्दों को नहीं उठा रहा है, न बहस करता है जो देश की प्रगति में बाधक बने हुए या जिनसे देश की प्रगति संभव हो सकती है।ऐसी स्थितियाँ अकसर सरकार के विरुद्ध चली जाया करती हैं। एक तरह से उनमें वह स्वच्छंदता नहीं है जो वास्तव में उनमें होनी चाहिये। वह भयभीत सा है और सरकार के गुणगान में त...

झूठ और सच के बीच झूलती संसद

अठरहवीं संसद का पहला सत्र हालाँकि राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बहस के बाद अनिश्चितकाल के लिए स्थगित हो गया है ,लेकिन देश ने देखा कि नयी संसद भी पुरानी संसदों की तरह झूठ और सच के बीच झूल रही है। संसद में यदि सदन के नेता सच नहीं बोल रहे तो विपक्ष के नेता भी झूठ का सहारा ले रहे हैं। लोकसभा में विपक्ष के ने...

दस साल में बीस लाख करोड़ से भी ज्यादा घोटाला ?

भाजपा का "चाल, चेहरा और चरित्र" स्पष्ट है। विश्व की कथित रूप से सबसे बड़ी पार्टी और उसकी मातृ संस्था आरएसएस वास्तव में विश्व की सबसे अमीर पार्टी और संस्था है, तो यह अब कोई रहस्य नहीं है। यह अमीरी इस पार्टी के कार्यकर्ताओं और आम जनता के दान पर नहीं, बल्कि आम जनता और देश के संसाधनों की लूट प...

आलू ,प्याज ,टमाटर से तौबा कीजिये

  मुझे आज अपने सूबे यानि मप्र के आम बजट पर लिखना था,लेकिन नींद खुली तो आलू,प्याज और टमाटर सामने खड़े थे ।  तीनों ने हाथ जोड़कर अनुनय-विनय की कि आज किसी दूसरे  विषय पर लिखने के बजाय हम तीनों पर लिख दीजिये ।  हम तीनों इस देश की हरेक सब्जी मंडी के अमर --अकबर-ऍंथोनी हैं। हम मामूली ल...

बरसात के पानी का पोल - खोल अभियान.?

बरसात ईडी और सीबीआई से ज्यादा मजबूत जांच एजेंसी है। बरसात का पानी देश में समानदृष्टि से निर्माण कार्यों में हुई धांधली की पोल खोलता है ।  बरसात का पानी जो भी करता है दलगत राजनीति से ऊपर उठकर करता है। बरसात का न किसी गंठबंधन के साथ तालमेल है और न कोई कॉमन मिनिमम प्रोग्राम। बरसात तो आती है और अपन...

क्या सचमुच हमारा संविधान मर चुका है ?

भारत सरकार ने एक राजपत्र जारी कर 25  जून को हर साल ' संविधान हत्या दिवस ' मनाने का फैसला किया है।  सरकार इस तरह का क्या,किसी भी तरह का कोई भी   फैसला कर सकती है।  इस फैसले का अंधभक्त स्वागत करेंगे और विपक्ष शायद विरोध ,लेकिन एक आम नागरिक और नामालूम  लेखक होने के...

बोले जा प्यारे ! बम भोले !!

आषाढ़ निकल गया । सावन शुरू हो गया है। वो ही सावन जो लाखों का होता है और दो टकियों की नौकरी के फेर में बर्बाद हो जाता है। इस सावन का पहला सोमवार भोले बाबा के नाम है। मंगलवार इस देश की बैशाखा  सरकार के नाम होगा ,क्योंकि मंगलवार को सरकार देश की जनता के लिए एक लंगड़ा बजट लेकर आने वाली है। मेरी पशोपेश...

नागर की नाराजगी जायज या नाजायज

नागर सिंह चौहान मान गए या मना लिए गए ,ये बात महत्वपुर्ण नहीं है । महत्वपूर्ण ये है कि  वे मुख्यमंत्री डॉ मोहन सिंह यादव के फैसले के खिलाफ खड़े हुए और इन्होने पूरी पार्टी को परेशान कर दिया।राजस्थान में मंत्री पद से किरोड़ी लाल  मीणा के इस्तीफे के बाद नागर सिंह चौहान का अपनी सरकार के खिलाफ शंख...

संघम ,शरणम गच्छामि

आखिर भाजपा को संघ की शरण में जाना ही पड़ा ,हालाँकि भाजपा के बहुमुखी प्रतिभा के धनी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्ढा  पूर्व में कह चुके थे कि  अब भाजपा को संघ की जरूरत नहीं है। भाजपा की अपंग सरकार ने गत दिवस केंद्रीय कर्मचारियों को संघ की शाखाओं में जाने पर लगी रोक हटाकर संघ की शरण में जाना स्वी...

गुदड़ी के लाल जैसे थे प्रभात झा

स्मृति शेष प्रभात झा का असमय जाना खल गया। प्रभात झा से प्रभात जी होने का एक लंबा सफर है और संयोग से मैं इस सफर का हमराही   भी हूँ  और चश्मदीद भी। प्रभात मेरी दृष्टि में सचमुच गुदड़ी के लाल थे। प्रभात 1980  में ग्वालियर में उस समय आये थे जब भाजपा का जन्म हुआ ही था ।  वे&nbs...

आखिर संसद का मौसम गड़बड़ क्यों ?

संसद के बजट सत्र का मौसम खराब हो रहा है। खासतौर पर लोकसभा का मौसम ठीक नहीं दिखाई दे रहा। तृण मूल कांग्रेस ने तो खराब मौसम की चेतावनी देते हुए सत्ता पक्ष से अपनी-अपनी कुर्सियों की पेटी बाँधने के लिए कहा है। हिचकोले खाती संसद में लोकसभा अध्यक्ष सत्ता पक्ष के सर पर छाता ताने  खड़े रहना चाहते हैं ,त...

हर तरह की त्रासदियों का देश भारत

भारत त्रासदियों का देश है ।  यहां कभी संसद के भीतर त्रासदी होती है तो कभी संसद के बाहर ।  कभी हाथरस में त्रासदी होती है तो कभी केरल के वायनाड के चूरलामाला इलाके में। कहीं कोई भगदड़ से मरता है तो कहीं कोई भूस्खलन से ,लेकिन इन त्रासदियों के लिए कोई दोषी नहीं ठहराया जाता। गनीमत ये है कि केरल स...

हादसों के लिए भोले बाबा जिम्मेदार

देश की राजधानी दिल्ली के ओल्ड राजेंद्र नगर हादसे    के बाद दिल्ली  महानगर पालिका निगम सक्रिय हो गयी हैं ।  एमसीडी ने आधा दर्जन से अधिक भूमिगत निर्माणों पर ताला  जड़ दिया है और तमाम निर्माणकर्ताओं को कारण बताओ नोटिस दे दिए हैं। राजनीतिक दल  मिलकर  इन  हादसों के...

विलुप्त होती पत्रकारिता पत्रकार बने सेल्समैन ?

  राजेन्द्र सिंह जादौन वर्तमान में पत्रकारिता पर अगर विचार किया जाये तो पत्रकार भी विलुप्त होते दिखाई देंगे । और विलुप्त होती जाती, प्रजाति को बचाना सरकार का दायित्व है। कहने को मध्यप्रदेश टाईगर प्रदेश बन गया है। लेकिन पत्रकारिता के टाईगर विलुप्त होते जा रहे है। इसका एक मुख्य कारण विचा...

बेसिर-पैर की तो नहीं है राहुल की आशंका

 राकेश अचल  लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी यदि आधी रात को अपने सोशल मीडिया अकाउंट x पर अपने यहां ईडी के छापे की आशंका को सार्वजनिक  करें तो सवाल उठता है कि क्या वे इस कार्रवाई के लिए तैयार हैं या इस आशंका से भयभीत हैं ? सदन में लगातार '  निडर रहो ' का मन्त्र जपने...

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