Tuesday ,17th September 2024

बेसिर-पैर की तो नहीं है राहुल की आशंका

 राकेश अचल 
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी यदि आधी रात को अपने सोशल मीडिया अकाउंट x पर अपने यहां ईडी के छापे की आशंका को सार्वजनिक  करें तो सवाल उठता है कि क्या वे इस कार्रवाई के लिए तैयार हैं या इस आशंका से भयभीत हैं ? सदन में लगातार '  निडर रहो ' का मन्त्र जपने वाले राहुल गांधी अठारहवीं लोकसभा के सबसे मुखर सदस्य हैं। उन्होंने प्रतिपक्ष के नेता की हैसियत से सरकार की नींद हराम कर रखी है। इसलिए लगता है कि राहुल को घेरे जाने की तैयारी है ,और इसकी भनक लगते ही राहुल ने देश को आगाह कर दिया।
अदावत की सियासत के इस युग में किसके खिलाफ,कब ,कौन सी कार्रवाई शुरू हो जाये ,ये कोई नहीं जानता। राहुल तो प्रतिपक्ष के नेता हैं सत्तापक्ष के नेताओं को इस तरह की आशंकाएं लगातार सताती रहतीं है।  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयानों से ये आशंका लगातार झलकती है ।  वे निरंतर  ये कहते आ रहे हैं कि वे किसी की नौकरी करने नहीं आये हैं। आखिर राहुल गांधी को और योगी आदित्यनाथ को इस तरह की बातें  क्यों करना पड़ रहीं है ?
जग-जाहिर है कि मौजूदा निजाम ने पिछले दस साल में देश की राजनीति में भय और संदेह के ऐसे बीज बोये हैं जो अब जड़ें जमा चुके है।  हर कोई एक-दूसरे को आशंका की नजर से देखता है ।  परस्पर विश्वास और सौहार्द को तो जैसे इस कालखंड में तिलांजलि दे दी गयी है। सत्तापक्ष के ही केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के समय-समय पर आने वाले बयान भी इसी आशंका की पुष्टि करते हैं कि सब कुछ ठीकठाक नहीं है। सत्तापक्ष ही क्यों सत्तापक्ष की जननी  माने जाने वाले राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख तक सरकार पर अहंकारी होने का आरोप लगा चुके हैं। भारत की समावेशी राजनीति के लिए ये सही नहीं है।
प्रतिपक्ष के नेता को सम्मान देने के बजाय उन्हें अपना मुख्य शत्रु मान बैठी सरकार सियासत को रसातल में और कितना गहरा उतारेगी ,पता नहीं है ।  देश के प्रधानमंत्री अपने ही दल के एक सदस्य की अत्यंत  अभद्र टिप्पणी को जब सराहने लगते हैं तो समझ में आ जाता है कि देश की राजनीति की  दशा और दिशा क्या है ? निरंतर धूमिल होते आभा मंडल से विचलित पंत प्रधान सियासत को अदावत  में बदलकर न सिर्फ अपनी पार्टी के प्रति अपितु देश के प्रति एक गंभीर अपराध कर रहे हैं।  उन्हें मान लेना चाहिए कि अब उनके युग का अंत सन्निकट है। प्रकृति ने उनके उत्तराधिकारी की व्यवस्था कर दी है।  अब ये देशकाल और परिस्थितियों पर निर्भर करता है कि उनका उत्तराधिकारी उनकी अपनी पार्टी से जन्म लेगा या विपक्ष  से।
लोकसभा में ही नहीं राजयसभा में सत्तापक्ष घिरता जा रहा है।  लोकसभा में कांग्रेस के चरणजीत सिंह चन्नी ने प्रधानमंत्री के खिलाफ विशेषधकार हनन का नोटिस दिया है और राज्य सभा में कांग्रेस के जयराम रमेश ने केंद्रीय गृहमंत्री माननीय अमितशाह साहब के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का नोटिस दिया है। जाहिर है कि दोनों ही सदनों में इस समय जो लोग पीठासीन अधिकारी हैं वे इन नोटिसों को स्वीकार करने वाले नहीं है।  वे खुद डरे हुए लोग हैं। सत्ता से उपकृत लोग हैं। वे अपने आकाओं के विरुद्ध किसी कार्रवाई की इजाजत आखिर  कैसे दे सकते हैं ?यदि ये नोटिस स्वीकर कर लिए जाएँ  तो राज्य सभा में सरकार कि गिल्लियां उखड़ सकती हैं।
आने वाले दिनों में राहुल गांधी के खिलाफ ईडी का इस्तेमाल हो या सीबीआई का इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। पहले भी सरकारी पार्टी की और से राहुल और उनकी मां को घेरने की कोशिश की गयी थी ।  राहुल की तो लोकसभा सदस्यता  तक छीन ली गयी थी ।  उनसे सरकारी बँगला खाली करा लिया गया था ।  एसपीजी सुरक्षा तो बहुत पहले वापस ले ली गयी थी। लेकिन  राहुल को अदालत ने ही नहीं जनता की अदालत ने भी उनका अधिकार और सम्मान दिलाया  ।  सत्रहवीं लोकसभा में उनकी छीनी गयी सदस्य्ता अदालत ने वापस कराई थी और अठारहवीं लोकसभा में उन्हें रायबरेली के साथ ही वायनाड की जनता ने भी चुनकर लोकसभा भेजा,जबकि प्रधानमंत्री जी अपने ही लोकसभा चुनाव में हारते-हारते बचे।
राहुल की आशंका पर केंद्र की चुप्पी स्वाभाविक है । केंद्र यदि सफाई देगा भी तो कोई उस पर यकीन  करने वाला नहीं है ,क्योंकि सरकार अपना विश्वास पहले ही खो चुकी है। जनता ने आम चुनाव में भाजपा के पर कतर कर ये पुष्टि भी कर दी। सत्तापक्ष को इस बात का अधिकार है कि वो राहुल गांधी की बढ़ती स्वीकार्यता को स्वीकार न करे ,किन्तु रेत में सिर छिपा लेने से आंधी का खतरा टल नहीं जाता।बेहतर हो कि सत्तापक्ष रेत में सिर देने के आने वाली आंधी के मुकाबले की लोकतान्त्रिक तरीके से तैयारी करे। मोशा की जोड़ी को समझना चाहिए कि अब भय दिखाकर वो न अपने दल में प्रीति पैदा कार सकते हैं और न विपक्ष में। ' भय बिन होय न प्रीति ' का फार्मूला कालातीत हो चुका है।  त्रेता के इस मन्त्र का जाप करने से कलियुग में सिद्धि हासिल नहीं हो सकती।
पंत प्रधान को ये सुविधा है कि वे एक बार फिर राहुल गांधी द्वारा जताई गयी आशंका को उनकी बालक बुद्धि कहकर खारिज कर दें ,लेकिन सोच लें कि ये देश अब बालक और बैल बुद्धि को पहचान चुका है। पंत प्रधान जितनी गलतियां कर रहे हैं उतना लाभ अकेले राहुल को नहीं अपितु पूरे  विपक्ष को मिल  रहा है। वे खुशनसीब हैं कि संसद  के दोनों सदनों में किसी सदस्य ने उनसे ये सवाल नहीं किया कि वे देश में वायनाड , हाथरस और मणिपुर के भीषण हादसों के बावजूद मौके पर आखिर क्यों नहीं गए ?  क्या वे इन हादसों से द्रवित नहीं होते ? क्या उन्हें अपनी सुरक्षा का खतरा है ? या  उन्होंने अपने पांवों  में मेंहदी लगा रखी है ?? इस मामले में भाजपा के लिए बालक बुद्धि ही सही लेकिन राहुल का कोई जबाब नहीं है। उनका वायनाड जाना मजबूरी हो सकता है क्योंकि वे वहां के सांसद रहे हैं लेकिन वे जब लखीमपुर खीरी,मणिपुर,हाथरस जाते हैं तो समझ   लीजिये कि वे एक जन  प्रतिनिधि होने का नैतिक दायित्व पूरा कर रहे होते हैं,राजनीति नहीं।  राजनीति तो उन्होंने भारत जोड़ो यात्रा के दो चरण पूरे करके की थी ।  

 

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