Friday ,18th October 2024

नागर की नाराजगी जायज या नाजायज

नागर सिंह चौहान मान गए या मना लिए गए ,ये बात महत्वपुर्ण नहीं है । महत्वपूर्ण ये है कि  वे मुख्यमंत्री डॉ मोहन सिंह यादव के फैसले के खिलाफ खड़े हुए और इन्होने पूरी पार्टी को परेशान कर दिया।राजस्थान में मंत्री पद से किरोड़ी लाल  मीणा के इस्तीफे के बाद नागर सिंह चौहान का अपनी सरकार के खिलाफ शंखनाद करना इस बात का पुख्ता प्रमाण है कि  भाजपा कहीं की भी हो उसमें सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। नागर सिंह चौहान की गतिविधियां पार्टी के कांग्रेसीकरण के खिलाफ असंतोष की प्रतिध्वनि भर हैं।
नागर सिंह  चौहान तीन बार के विधायक हैं। अलीराजपुर से चुने जाते हैं।  उनकी पत्नी भी सांसद हैं।नागर सिंह चौहान भारतीय जनता युवा मोर्चा की कार्य समिति के सदस्य हैं।  नागर सिंह  नगरपालिका अलीराजपुर के अध्यक्ष रहे हैं।  वर्ष 2003 में पहली बार विधायक चुने गए नागर सिंह चौहान वर्ष 2008 में दूसरी बार, 2013 में तीसरी बार और वर्ष 2023 में चौथी बार विधानसभा सदस्य निर्वाचित हुए। नागर सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 में अलीराजपुर से विधायक चुने जाने के बाद पहली बार मंत्री बनाए गए।  उन्हें आदिवासी कल्याण मंत्रालय के साथ-साथ वन और पर्यावरण मंत्रालय का प्रभार दिया गया था।  नागर सिंह चौहान गत  25 दिसम्बर 2023 को बतौर कैबिनेट मंत्री की शपथ ली थी।
नागर सिंह चौहान मप्र के किरोड़ी लाल  मीणा  तो नहीं हैं ,लेकिन उनसे कम भी नहीं है।  उनका अपने इलाके में जनाधार है ,ये उन्होंने लगातार साबित भी किया है। नागर को लम्बी प्रतीक्षा के बाद मंत्री पद और ढंग का विभाग मिला था जिसे मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने उनसे बना सलाह-मश्विरा किये छीनकर कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए राम निवास रावत को दे दिया था। विद्रोह की चिंगारी यहीं से सुलगी। नागर सिंह ने मुख्यमंत्री के फैसले को चुनौती देते हुए न केवल मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया बल्कि अपनी सांसद पत्नी के इस्तीफे की धमकी भी दे डाली। नागर को मनाने की कोशिश पहले भोपाल में ही की गयी और जब बात नहीं बनी तो उन्हें दिल्ली बुलाया गया। दिल्ली के दखल से फिलहाल   शायद नागर सिंह मान गए हैं लेकिन उनका मन तो खट्टा हो ही गया है।
भाजपा नेताओं के मन में खटास का श्रीगणेश तो 2020  में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक विधायकों में से आधा दर्जन को मंत्री बनाये जाने के साथ ही शुरू हो गया था। हालाँकि सिंधिया समर्थक अनेक मंत्री बाद में विधानसभा  का उपचुनाव हारने के बाद अपना मंतिरपद छोड़ना भी पड़ा था। आज भी डॉ मोहन यादव के मंत्री मंडल में महत्वपूर्ण और बड़े बजट वाले अनेक विभाग हैं और उनके सामने भाजपा के दीगर मंत्रियों को अपमानित होना पड़ता है। लेकिन मुझे लगता है कि  सारा दोष मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का नहीं है। उन्होंने जो फैसला किया है उसमें पार्टी है कमान की सहमति   जरूर है।
 नागर सिंह चौहान की पत्नी अनीता सिंह चौहान भी राजनीति में सक्रिय हैं, जो रतलाम में बीजेपी सांसद हैं। खुदा न खस्ता यदि नागर सिंह और उनकी पत्नी अपने पदों से इस्तीफा दे देतीं तो भाजपा की भद्द पिट जाती और राजस्थान से शुरू हुआ विद्रोह मप्र से होता हुआ उन राज्यों में भी फ़ैल जाता जहाँ डबल इंजिन की सरकारें हैं। नागर सिंह ने अपने विभाग को छीने जाने को आदिवासियों का अपमान बताया था। अपमान था या नहीं ये अलग बात है किन्तु उनकी दलील में दम था ।  नागर दम्पत्ति की नाराजगी की बड़ी कीमत भाजपा को चुकाना पड़ती।
मप्र भाजपा में भाजपा की दूसरी राज्य इकाइयों की तरह असंतोष भीतर ही भीतर पनप रहा है। इसी असंतोष  की वजह से भाजपा लोकसभा चुनाव में 400  पार नहीं कर पायी थी । भाजपा के इस अंदरूनी असंतोष के बारे में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी गोवा में साफ़ संकेत दे चुके थे। लेकिन उन्हें भी गंभीरता से नहीं लिया गया। भाजपा में किस को भी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा। मंत्री और मुख्यमंत्री तथा सांसद भी भीतर होई भीतर कुढ़ रहे  है।  किसी में साहस है और किसी में नहीं। सब न किरोड़ी लाल मीणा बन सकते हैं और न ही नागर सिंह चौहान। लेकिन जो बगावत का झंडा बुलंद कर सके वे जमीर वाले निकले। अब समय है कि भाजपा को पार्टी के कांग्रेसीकरण को रोक दे अन्यथा भाजपा को बहुत बड़ा खमियाजा भुगतना पड़ सकता है।
उल्लेखनीय है की भाजपा में सरकार को चुनौती देने वाले नागर सिंह चौहान अकेले व्यक्ति नहीं हैं। उनसे पहले हासिये पर जा चुके राज्य सभा कि पूर्व सदस्य रघुनंदन शर्मा भी डॉ मोहन सरकार को इशारों-इशारों में ताकीद कर चुके हैं। भाजपा कि पास असंतुष्ट नेताओं की लम्बी फेहरिस्त है। कुछ ने तो अपना जमीर मार लिया है लेकिन सबके सब तो ऐसा नहीं कर सकत।  असंतुष्टों में बहुत से नागर सिंह चौहान भी बन सकते हैं। 

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