-अमित त्यागी
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लंदन में एक बड़ा बयान दिया है। विदेश मंत्री का कहना है कि जिस दिन पाकिस्तान अवैध रूप से कश्मीर के चुराये हिस्से को वापस कर देगा उस दिन कश्मीर समस्या का समाधान हो जाएगा और कश्मीर में शांति स्थापित हो जाएगी। चीन पर विदेश मंत्री ने कहा कि चीन से हम हितों का सम्मान करे। सीमा एक महत्वपूर्ण विषय है। सीमा अस्थिर है उसे स्पष्ट किया जाये। विदेश मंत्री का यह बयान भारत सरकार के स्पष्ट दृष्टिकोण को दिखाता है। अभी कुछ समय पहले अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भेंट हुयी थी। इस दौरान ट्रम्प ने बांग्लादेश के विषय को भारत के द्वारा अपने स्तर पर निपटाने की बात कही थी। नये वैश्विक परिदृश्य में भारत की कूटनीतिक स्थिति लगातार मजबूत हो रही है। पहले बांग्लादेश पर ट्रम्प का बयान और उसके बाद जयशंकर द्वारा कश्मीर और चीन पर स्पष्ट दृष्टिकोण काफी कुछ कह देता है। उत्तर दिशा में भारत के सीमाएं अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान और चीन से मिलती हैं। इन तीनों देशों से सीमा विवाद में जम्मू, कश्मीर और लद्दाख प्रमुख सामरिक क्षेत्र हैं। इसलिए भारत की विदेश नीति में जम्मू, कश्मीर और लद्दाख नीति महत्वपूर्ण है।
जयशंकर के बयान को समझने के लिए भारतीय संसद द्वारा 22 फरवरी 1994 के संकल्प पत्र के दस्तावेज़ को समझना होगा। उस समय की कांग्रेस सरकार के प्रधानमंत्री नरसिंह राव के नेतृत्व में भारतीय संसद ने ध्वनिमत से प्रस्ताव पारित किया था। संसद ने कहा था कि पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर (पीओके) भारत का अटूट अंग है। पाकिस्तान को वह हिस्सा छोड़ना होगा, जिस पर उसने बलपूर्वक कब्जा जमा रखा है। सदन पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर में चल रहे आतंकियों के शिविरों पर गंभीर चिंता जताता है। सदन का मानना है कि पाकिस्तान की तरफ से आतंकियों को हथियारों और धन की आपूर्ति के साथ-साथ आतंकियों को भारत में घुसपैठ करने में मदद दी जा रही है। सदन भारत की जनता की ओर से घोषणा करता है कि पाक अधिकृत कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा। भारत अपने इस भाग के विलय का हरसंभव प्रयास करेगा। भारत में इस बात की पर्याप्त क्षमता और संकल्प है कि वह उन नापाक इरादों का मुंहतोड़ जवाब दे, जो देश की एकता, प्रभुसत्ता और क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ हो। सदन मांग करता है कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के उन इलाकों को खाली करे, जिसे उसने कब्जाया हुआ है। भारत के आंतरिक मामलों में किसी भी हस्तक्षेप का कठोर जवाब दिया जाएगा।
जब तक 370, 35ए पर निर्णायक कार्यवाही नहीं हुयी थी तब तक 22 फरवरी का प्रस्ताव सिर्फ एक प्रस्ताव दिखाई देता था। इसका पूर्ण होना होना एक दुस्वप्न लगता था। 370 पर जयशंकर ने कहा है कि तीन चरणों में कश्मीर में शांति का समाधान किया गया है। पहले चरण में 370 का हटना, दूसरे चरण में विकास, आर्थिक गतिविधि और सामाजिक न्याय पर काम एवं तीसरे चरण में अच्छे मत प्रतिशत से चुनाव था। 370 पर कार्यवाही के बाद जयशंकर का बयान आस दिखाता है। अब एक दूसरा पक्ष भी समझना आवश्यक है। संकल्प प्रस्ताव के विरोधियों का तर्क है कि 1972 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला समझौते के बाद संसद में पारित प्रस्ताव का कोई अस्तित्व नही है। इस समझौते के अंतर्गत नियंत्रण रेखा को दोनों देशों के बीच सीमा के रूप में स्वीकार किया गया था। विरोधियों के इस तर्क की वास्तविकता को समझने के लिए हमें इतिहास को जानना होगा। वर्तमान में जिसे हम पाक अधिक्रांत कश्मीर कहते हैं। पाकिस्तान जिसे आजाद कश्मीर कहता है। वह कश्मीर का भाग नहीं बल्कि जम्मू का हिस्सा था। इसलिए उसे कश्मीर कहना ही गलत है। वहां की भाषा कश्मीरी न होकर डोगरी और मीरपुरी का मिश्रण है। विभाजन के बाद कश्मीर के महाराजा हरी सिंह भारत में अपने राज्य के विलय के प्रस्ताव को स्वीकार कर चुके थे। भारत में विलय के बाद पर भारत को तत्कालीन कश्मीर राज्य के सम्पूर्ण भूभाग पर अधिकार मिला इसलिए महाराजा हरी सिंह से हुई संधि के परिणामस्वरूप पूरे कश्मीर भूभाग पर भारत का अधिकार है। 22 फरवरी को संसद द्वारा पारित प्रस्ताव संवैधानिक और अन्तराष्ट्रिय कानूनी मानकों के हिसाब से सही है। जम्मू कश्मीर और लद्दाख के मानवाधिकार की रक्षा के लिए 370, 35ए का हटना आवश्यक था। संविधान निर्माता बाबा भीमराव अंबेडकर 370 के पक्षधर नहीं थे। भारत में संवैधानिक अधिकार ही अन्तराष्ट्रिय मानवाधिकार हैं।
इसको समझने के लिए थोड़ा पीछे चलना होगा। 1948 में जब अन्तराष्ट्रिय स्तर पर मानव अधिकारों पर चर्चा चल रही थी उस समय भारत का संविधान निर्मित हो रहा था। हमारे संविधान निर्माताओं ने भारतीय नागरिकों को मिलने वाले मूल अधिकारों मे ही अधिकतर मानव अधिकारों को समावेशित कर दिया। भारत में अन्तराष्ट्रिय समुदाय द्वारा कहे जाने वाले मानव अधिकार हमारे यहाँ संविधान प्रद्वत मूल अधिकार हैं। जैसे जैसे भारतीय नागरिकों को संवैधानिक अधिकार मिलते हैं, वैसे वैसे अन्तराष्ट्रिय मानवाधिकार की पूर्ति होती है संवैधानिक स्थिति के साथ ही हमारी सांस्कृतिक विरासत इतनी समृद्ध रही है कि वेदों और पुराणो मे मानव अधिकारों को जीवन शैली का अंग बना दिया गया है। सर्वे भवन्तु सुखिन: , सर्वे सन्तु निरामय: , सर्वे भद्राणि पश्यंतु. श्लोक में सभी मानव अधिकार निहित हैं। इस श्लोक की व्याख्या में समता का अधिकार (अनु0 14-18), शोषण के विरुद्ध अधिकार(अनु0 23-24), धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार(अनु0 25-28) अंतर्निहित हैं। 22 फरवरी के संकल्प की पूर्णता के बाद पाकिस्तान अधिक्रांत भूभाग के नागरिक भी बेहतर अधिकार पा सकेंगे। जयशंकर के बयान के बाद भारत का दृष्टिकोण मुखर एवं स्पष्ट है। (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, लद्दाख एवं जम्मू कश्मीर अध्ययन केंद्र के सदस्य हैं। )
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