विष्णु नागर
अब यार, ये तो मेरी-आपकी भाषा के पीछे भी पड़ गए हैं। अब इन्हें इनके हिंदू राष्ट्र में उर्दू रहित 'शुद्ध हिंदी' चाहिए यानी संस्कृतनिष्ठ हिंदी चाहिए। जो पिछले दस साल में गंगा और यमुना जैसी पवित्र मानी जानेवाली नदियों को शुद्ध नहीं कर पाए, वे अब भाषा को' शुद्ध ' करने चले हैं! जिनके राज में हवा और पानी तक शुद्ध नहीं, दूध और घी में धड़ल्ले से मिलावट जारी है, दवा, डाक्टर और पीएमओ के अधिकारी तक जिस सरकार में जाली नसीब हो जाते हैं, दिवाली में मिठाई तक शुद्ध नहीं मिलती, जिनके राज में गिरफ्तार होकर भी गैंगस्टर लारेंस विश्नोई सारे देश में गदर मचाये हुए है, रोज उसके लोग हत्या की धमकियों दे रहे हैं, वहां ये एक भाषा को हिंदी-उर्दू में बांट कर 'शुद्ध' करने चले हैं! अरे इतनी अशुद्धताओं के बीच तुम 'शुद्ध हिंदी' में सांस नहीं ले पाओगे, भाऊ! भाषा को तो अशुद्ध ही रहने दो। हां, तुम चाहो, तो गंदी हो चुकी गंगा और यमुना में रोज नहाकर शुद्ध होते रहो। ऐसा करने से पहले लेकिन दिल्ली के भाजपा अध्यक्ष वीरेन्द्र सचदेव जी से एक बार पूछ लेना, बेचारे यमुना में नहा कर दिखाने की बहादुरी दिखाने गए थे, उन्हें लेने के देने पड़ गए थे! वो तो बाकी भाजपाई इतने समर्पित नहीं थे वरना उनकी जान के लाले पड़ जाते!
इन 'जागे हुए हिंदुओं ' को दिवाली की मिलावटी मिठाई तो अच्छी तरह से हजम हो जाती है, मगर 'जश्न' शब्द हजम नहीं हुआ, क्योंकि इनकी समझ से वह उर्दू का शब्द है और इनका अज्ञान इन्हें बताता है कि उर्दू, मुसलमानों की भाषा है। भाषा को भी इन्होंने हिंदुओं-मुसलमानों में बांट दिया है। कानपुर आईआईटी में दिवाली 'जश्न-ए-रोशनी' नाम से मन रही थी, तो इनके पेट में दर्द होने लगा। दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज में दिवाली 'जश्न-ए-नूर' नाम से मनाया जाने लगा, तो दर्द हो गया। क्षमा करें, इन्हें जो हुआ था, वह दर्द नहीं, पीड़ा थी! कुछ साल पहले 'फैब इंडिया' ने दिवाली के मौके पर अपने कपड़ों का विज्ञापन 'जश्न-ए-रिवाज' नाम से किया, तो इन्हें तकलीफ़ तो नहीं हुई, मगर पीड़ा होने लगी! मध्यप्रदेश की पुलिस ने तो अदालत, जुर्म, कत्ल, गिरफ्तार, गवाह, बयान जैसे 69 शब्दों को तड़ीपार कर दिया है और मुझे विश्वास है कि वर्ष के अंत में ऐसे शब्दों की संख्या कम-से-कम दो सौ तो हो ही जाएगी!
ये सत्ता में नहीं थे, तो सत्ता में न होने की इन्हें तड़प थी। अब सत्ता में हैं, तो भी तकलीफ़ में हैं। मेरे लिखे में कहीं सही, कहीं गलत नुक्ता लग गया होगा, तो उससे भी ये तकलीफ में आ गए होंगे कि हिंदी में ये नुक्ता कहां से आ गया! यार तुम कभी तो तकलीफ़ों से बाहर आ जाया करो। रोना-सर पीटना हर वक्त अच्छा नहीं लगता! तुम तो उत्सव भी मनाते हो, तो दंगे करने से बाज नहीं आते, मुस्लिम बहुल मोहल्लों में घुस जाते हो, मस्जिद पर भगवा फहरा आते हो! ये क्या हो गया है तुम्हें? तबियत तो ठीक रहा करती है न आजकल!
तुम्हें किसी शहर का, सड़क का, रेलवे स्टेशन का नाम मुस्लिम हो, तो तकलीफ़ हो जाती है। मुगलसराय नाम जाने कब से चला आ रहा था। अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी तक को इससे तकलीफ़ नहीं हुई थी, मगर मोदी जी के बंदों को हो गई। इलाहाबाद नाम मुस्लिम है या हिन्दू , यह कभी दिमाग में नहीं आया था। इलाहाबाद, इलाहाबाद था हमारे लिए, उसे बदल दिया। तुम्हारी खुशियां भी कितनी घटिया होती हैं।इलाहाबाद के लोग भी आज तक उसे इलाहाबाद कहते हैं, तुम उनका क्या कर लोगे? जेल भेजोगे? अगले साल इलाहाबाद में कुंभ होने जा रहा है। अब इन्हें शाही स्नान शब्द से भी दिक्कत होने लगी है। पेशवाई शब्द से भी कठिनाई होने लगी है।
एक तो तुम हो कौन, भाषा को शुद्ध करने वाले? हिंदी या हिंदुस्तानी न तुमने बनाई, न हम धर्मनिरपेक्षों ने बनाई है।भाषाएं रोज बनती और रोज बिगड़ती हैं और बिगड़कर भी बनती हैं और उन्हें करोड़ों लोग सैकड़ों सालों में अलग-अलग समय में बनाते रहते हैं। गरीब से गरीब भी बनाता है और हां उसे मुसलमान, हिंदू, सिख, ईसाई, पारसी सब मिलकर बनाते हैं।
अंग्रेजी हर साल गर्व के साथ हजारों विदेशी शब्दों से अपने को अशुद्ध बनाती है, जिसमें हिंदी के शब्द भी काफी होते हैं। आज अंग्रेजी कहां है और तुम इस हिंदी को कहां ले जा रहे हो? इसे मारना चाहते हो और शुद्ध करना ही है, तो हिंदी में अंग्रेजी जबर्दस्ती ठूंसने की कोशिश हो रही है, उसे रोको!? रोक पाओगे? पहले अपने बेटे-बेटियों से पूछ लेना!
और भाषा पर ही क्यों जाते हो, बहुत सी चीजों पर जाओ। ये जो तुम घर में हलवा खाते हो, वह भी भाई साहब और बहन जी, इस्लामी है। गुलाब जामुन और जलेबी, हम-तुम चाव से खाते हैं, ये भी मूलरूप से इस्लामी है। इन्हें खाना छोड़ सकोगे! हिंदू नाम भी कहते हैं ईरान से आया है, अपने को हिंदू कहना और मानना बंद कर सकोगे!
रामचरित मानस में सैकड़ों उर्दू शब्द हैं, उसे पढ़ना और घर में रखना छोड़ पाओगे! और भी बहुत सी बातें हैं, छोड़ो। तुम्हें समझ में नहीं आएगा। और तुम हिंदी पर ही यह कृपा क्यों कर रहे हो? हिंदी बोलने के साथ यह 'खतरा' हमेशा बना रहेगा कि उसमें उर्दू के तथाकथित शब्द आ ही जाएंगे! तो तुम संस्कृत बोलो, संस्कृत ही पढ़ो। उर्दू के खतरे से संपूर्ण रूप से बचो! उसे राष्ट्रभाषा बनाकर देखो! मोदी जी और शाह जी और मोहन भागवत जी से कहो न कि वे आज ही संस्कृत में भाषण देना शुरू करें! तब तो पता चलेगा कि वे और तुम कितने सच्चे हिंदू हो!
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