सरकार और भाजपा तीन साल का जश्न मना रही है. जनता ने प्रचंड बहुमत दिया था, वह सब करने के लिए जिसका वादा किए थे . उस पर कुछ किया नहीं. लोगों को चुप कराने के लिए प्रचंड बहुमत को ब्रह्मास्त्र बना लिया. कोई उपलब्धि नहीं, लेकिन जश्न मनाएंगे ताकि असफलताओं को छिपाया जा सके और झूठ फैलाया जा सके.ऐसे में सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई याद आते हैं
“ वह भूखे के सामने बांसुरी बजाने लगा तो दूसरे ने पूछा यह क्या कर रहे हो. बांसुरी बजाने वाले ने कहा, मैं इसे संस्कृति का राग सुना रहा हूं. तुम्हारी रोटी से तो एक दिन के लिए ही इसकी भूख भागेगी. संस्कृति के राग से उसकी जनम-जनम की भूख भागेगी. और वह फिर बांसुरी बजाने लगा. ”
अब सवाल यह है कि जश्न किस बात का. आप चुनी हुई बहुमत की सरकार हैं. पांच साल काम करना है. तीन सालों में कुछ उलब्धियां हैं, तो जरूर बताइए.
वो हैं नहीं. नष्ट ज्यादा किया है. तीन सालों में बड़ी-बड़ी बातों के अलावा किया क्या? एक भी ऐसी बात शायद ही बताने के लिए इस सरकार के पास हो.
कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के साथ सरकार में आए और वही सब करने लगे जो कांग्रेस सरकारें किया करती थीं. सारी योजनाएं कांग्रेस की. बस नाम बदलकर अपने नाम कर लिया. जिन योजनाओं की आलोचना करते थे, उन सबको ज्यादा मजबूती से अपना लिया.
मनरेगा को गड्ढा खोदना कहते थे, उसका बजट बढ़ा दिया. यह अलग बात है कि काम नहीं देते और काम करा लेते हैं तो भुगतान नहीं करते. अगर उदाहरण देखना है तो कहीं और नहीं भाजपा शासित छत्तीसगढ़ चले जाइए जहां मजदूर पलायन करते रहते हैं. आधार की कितनी आलोचना करते थे, थकते नहीं थे. अब गाय तक का आधार कार्ड बनवाना अनिवार्य कर दे रहे हैं वह भी तब सर्वोच्च न्यायालय ने कह दिया है कि आधार को अनिवार्य नहीं कहा जा सकता.
जीएसटी फूटी आंख नहीं सुहाता था, जब कांग्रेस सरकार लेकर आई थी. अब उसी पर जान दिए जा रहे हैं. स्वच्छता अभियान से लेकर कितनी ही केंद्र की योजनाएं हैं जिसका सिर्फ नाम बदलकर अपने नाम कर ले रहे हैं. उसके नाम पर कुछ टैक्स लगा कर महंगाई से परेशान लोगों की जेब भारी कर दे रहे हैं.
कितने ही स्मार्ट कार्ड और स्मार्ट शहर बनाने के जुमले बांटे जा रहे हैं, धरातल पर कुछ दिखता नहीं. कहते हैं किसानों की आय दो गुनी करेंगे और किसानों को टमाटर से लेकर प्याज तक सड़कों पर फेंकनी पड़ रही है. आत्महत्या रुकने के बजाय बढ़ती जा रही है. कृषि पर भी टैक्स लगाने की तैयारी अलग से हो रही है. रोजगान न मिलने और छंटनी की खबरों ने तीन साल पूरे होने के बीच ही कोहराम मचा रखा है.
यह लोकतंत्र है और जिस लोकतंत्र की बदौलत प्रचंड बहुमत मिला, उन्हीं संस्थाओं को कमजोर करने लगे. लोकतंत्र की पहली शर्त सवाल करने को ही खत्म कर दिया. इसकी जगह गुणगान और चारण चालीसा को दे दी. भूखे रहिए, लेकिन अगर कुछ कहने का मन करता है, तो सरकार के गुण गाइए.जिस चौखट पर सिर नंवाया, उसी की अनदेखी. विपक्ष चिल्लाता रहे, ट्वीट करेंगे, मन की बात करेंगे, विदेश में जाकर भाषण कर आएंगे, लेकिन संसद में नहीं जाएंगे.
योजना आयोग को बंद कर देंगे. कहते हैं नीति बनाएंगे, जिसमें नीति नाम की कोई चीज नहीं होगी. कोई उसकी कोई सुनेगा भी नहीं. आरबीआई के अस्तित्व को ही नकार देंगे. नोटबंदी की घोषणा आरबीआई का काम था. खुद ही करने लगे. तब आरबीआई का क्या मतलब रह गया. एक ऐसे संस्थान को जहां केवल पढ़ाई और शोध होता था और उसी पर बातें होती थीं. ऐसे हालात बना दिए कि वहां अब इसके सिवा और कुछ भी किया जा सकता है.
पूरी दुनिया में जिसकी गंभीर शोध के लिए चर्चा होती है, जिसका लोहा खुद सरकार मानती है, शीर्ष संस्थानों की सूची में सरकार खुद उसे शामिल करती है. लेकिन बुरी तरह बदनाम कर देगी.
पूरा सामाजिक ताना-बाना नष्ट कर रखा है. गंगा-जमुनी संस्कृति की जगह तालिबानी संस्कृति को पुष्पित-पल्लवित किया जा रहा है. कोई किसी को कहीं भी मार दे रहा है. सरकार और कानून व्यवस्था नाम की सारी जिम्मेदारी कुछ रक्षकों-वाहिनियों को दे दी गई है. जब सरकार में आए थे, उससे पहले भ्रष्टाचार, कालाधन, महंगाई, महिला सुरक्षा, आतंकवाद, नक्सलवाद आदि के बारे में ऐसे दावे करते थे जैसे सरकार में आते ही यह सब छूमंतर हो जाएंगे. आंकड़े व वास्तविकता एकदम विपरीत गवाही दे रहे हैं. सरकार के शीर्ष पर मात्र इन्हीं तीन सालों में भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं. कालाधन आया नहीं और वही कह दिया गया जो कांग्रेस सरकार कहती थी. महंगाई लगातार बढ़ती ही जा रही है. जब अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पेट्रोलियम पदार्थों की कमी हो गईं, तब भी यहां कीमतें बढ़ती गईं.
महिला सुरक्षा की स्थिति ठीक उस समय यह है कि तीन साला जश्न के समय ही रोहतक में निर्भया से भी ज्यादा भयावह दुष्कर्म हो जाता है लेकिन कोई उस पर कोई बात नहीं. रोहतक उसी हरियाणा में है जहां से बेटी बचाओ की शुरुआत की गई थी. आतंकवाद और नक्सलवाद इस सरकार के आने के बाद से और बढ़ गया. कहते थे एक सिर के बदले दस सिर लाएंगे, उसका पता नहीं क्या हो गया. हमारे जवान शहीद हो रहे हैं और हम सर्जिकल स्ट्राइक में ही मगन हैं. हर खाते में पंद्रह लाख को तो पहले ही जुमला बता चुके हैं. किसी भी वादे को जुमला बता देना बहुत आसान हो गया है. कहा सबका साथ-सबका विकास. कर रहे हैं कुछ का साथ और सबका विनाश. तीन साल सारी आशाओं-उम्मीदों के टूटने के हैं. निराशा और भय के इन तीन सालों का जश्न कुछ उसी तरह लग रहा है जैसे कोई बांसुरी बजा रहा है.
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