Wednesday ,12th March 2025

गोडसे को आने दो!

 राजेंद्र शर्मा
हम तो पहले ही कह रहे थे – गोडसे को आने दो। गांधी को जाने दो। आखिर, राष्ट्रपिता के नाम पर गांधी को कब तक ढोते रहेंगे। गांधी के चक्कर में देश गोडसे की महत्ता पहचान ही नहीं पा रहा है। इसी दोष को दूर करने के लिए तो मोदी जी शुरू से ही उपेक्षित, भुला दिए गए स्वतंत्रता सेनानियों को खोज-खोजकर, उनके नाम याद कराने में लगे रहे हैं। नेहरू टाइप जो याद रखे गए थे, उन्हें भुलाने में भले ही अपनी सारी कोशिशों के बाद भी उन्हें ज्यादा कामयाबी नहीं मिली हो, पर बहुतों के भूले हुए नाम तो उन्होंने याद दिला ही दिए हैं। पर गांधी जी रास्ते में आ ही जाते हैं। 

अब शैजा अंदावन जी का ही किस्सा ले लीजिए। कालीकट में एनआईटी की प्रोफेसर के पद से प्रमोशन पाकर बेचारी डीन क्या बन गयीं, गांधी-गांधी करने वालों ने हंगामा ही खड़ा कर दिया है। कह रहे हैं कि मोदी जी की सरकार ने उन्हें गांधी-विरोधी होने का इनाम दिया है।

वो कैसे? शैजा ने पिछले साल, गांधी के शहादत के दिन पर, ‘‘भारत को बचाने के लिए गोडसे पर गर्व’’ का इजहार किया था! सेकुलर वालों ने तब भी इस पर बहुत शोर मचाया था। छात्र, राज्य की सरकार, विपक्षी, सब उनके खिलाफ एक हो गए थे। बेचारी शैजा को जेल जाने से बचने के लिए जमानत तक लेनी पड़ी थी। अब फिर से वही सब हो रहा है। इस बार जमानत न सही, पर बेचारी के प्रमोशन के लाले तो पड़ ही सकते हैं। चले थे चौबे, छब्बे बनने, कहीं दुबे ही बनने की नौबत नहीं आ जाए।

बेशक, शैजा जी के साथ बहुत भारी अन्याय हो रहा है। उनसे भी भारी अन्याय हो रहा है मोदी जी की सरकार के साथ। इतनी बड़ी सरकार, एक सौ चालीस करोड़ के देश की चुनी हुई सरकार, दुनिया की सबसे लोकप्रिय सरकार, विश्व गुरु मानी जाने वाली सरकार, क्या एक प्रोफेसर को जरा सा प्रमोशन देकर, वरिष्ठों को टपकवा कर, डीन भी नहीं बना सकती है। 

माना कि शैजा जी का इंस्टीट्यूट कालीकट में है और कालीकट, केरल में, जहां सिंगल इंजन की सरकार ही चलती है। पर इंस्टीट्यूट तो मोदी जी की सरकार का है और मोदी जी की सरकार अपने इंस्टीट्यूट की प्रोफेसर को क्या किसी भूले हुए ‘स्वतंत्रता सेनानी’ की याद दिलाने के लिए एक प्रमोशन भी नहीं दे सकती है? विरोधियों का यह इल्जाम सरासर गलत है कि मोदी जी की सरकार ने शैजा जी को, उनके गांधी-विरोध के लिए इनाम दिया है। शैजा जी ने जो किया था, उसमें गांधी विरोध तो दूर-दूर तक नहीं है। गांधी का विरोध तो छोड़ो, उन्होंने गांधी का तो नाम तक नहीं लिया है। उन्होंने तो सिर्फ और सिर्फ गोडसे का नाम लिया है और गोडसे पर गर्व प्रकट किया है। गर्व जैसी सकारात्मकता में, विरोध की नकारात्मकता खोजने वालों की बुद्धि पर तरस ही खाया जा सकता है। 

क्या हम उनकी सकारात्मकता के प्रति सिर्फ इसलिए नकारात्मक हो जाएंगे कि उनकी सकारात्मकता गोडसे के प्रति है, जिन्होंने गांधी का वध किया था, जिसे भ्रमवश बहुत से लोग अब भी हत्या ही कहते हैं।

फिर शैजा जी तो पहले ही बता चुकी हैं कि हत्या नहीं, वध भी हो, तब भी वह इसे अच्छा नहीं मानती हैं। वह वध का भी समर्थन नहीं करती हैं। पर हां! आखिरकार प्रोफेसर हैं, उन्होंने भी नाथूराम गोडसे की एक किताब पढ़ी है। किताब में उन्होंने अच्छी तरह से समझाया है कि उन्होंने गांधी का वध क्यों किया? उनके अपने तर्क हैं। उनके अपने विचार हैं, जो प्रभावशाली हैं। वह भी राष्ट्रवादी हैं, उनका अपना राष्ट्रवाद है। पढ़-समझकर ही उनके मन में गोडसे के लिए गर्व पैदा हुआ है। 

गर्व एक सात्विक भाव है। ऐसा सात्विक भाव पैदा होने के लिए भी उन्हें गर्व है। और उनका यह गर्व शुद्ध राष्ट्रवादी है। आखिर, राष्ट्र को बचाने पर गर्व से ज्यादा राष्ट्रवादी गर्व क्या होगा? गोडसे के भारत को बचाने पर गर्व से ज्यादा राष्ट्रवादी गर्व क्या होगा? 

मुद्दा यह नहीं है कि गोडसे ने भारत को किस से बचाया? मुद्दा यह भी नहीं है कि गोडसे ने भारत को कैसे बचाया? मुद्दा यह है कि गोडसे ने भारत को बचाया और अपने प्राणों की आहुति देकर बचाया। अब हमारे मन में क्या इतनी संकीर्णता आ गयी है कि हम राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले देशप्रेमी पर, गर्व करने को पुरस्कृत भी नहीं कर सकते? और वह भी सिर्फ इसलिए कि प्राणों की आहुति देने वाले ने, किसी के प्राणों की आहुति ली भी थी। प्राणों की आहुति लेना-देना बराबर, फिर कब तक हम गोडसे की पिस्तौल से निकली गोलियों का ही रोना रोते रहेंगे और भारत को बचाने के उनके पुण्य को नहीं देखेंगे।

अब प्लीज मोदी जी को कोई प्रज्ञा ठाकुर के मामले की याद दिलाने की कोशिश नहीं करे। प्रज्ञा ठाकुर ने जब गांधी की तरह गोडसे को भी देशभक्त कहा था, तो मोदी जी ने पछतावे से कहा था कि वह उन्हें दिल से कभी माफ नहीं कर सकेंगे। और मोदी जी उन्हें दिल से माफ नहीं ही कर पाए। अपनी पार्टी का संसद बनाया, पांच साल संसद में अपने साथ बैठाया, बाकी सब किया, बस दिल से माफ नहीं किया। पांच साल बाद चुनाव में प्रज्ञा ठाकुर का टिकट काट दिया। पर शैजा जी का मामला डिफरेंट है। उन्हें मोदी जी न एमपी का टिकट दे रहे हैं और न एमपी बनाकर संसद में अपने साथ बैठा रहे हैं। उन्हें तो सुदूर दक्षिण में कालीकट में प्रोफेसर से तरक्की देकर, फकत डीन बना रहे हैं। और वह भी तब, जब उन्होंने एक सिंगल इंजन सरकार के इलाके में, गोडसे पर गर्व का झंडा उठाया है। 

वैसे होने को तो हो सकता है कि मोदी जी शैजा जी को भी दिल से कभी माफ नहीं कर पाएं। हो सकता है पांच साल बाद, वाइस चांसलर वगैरह बनाने के मौके पर उन्हें भूल ही जाएं। 

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