Wednesday ,12th March 2025

अब एक देश, एक पेट यानी मोटापा भगाओ आंदोलन!

राजेंद्र शर्मा 

इसे कहते हैं जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ। मोदी जी ने गहरे पानी पैठ कर देश की असली चुनौती को खोज निकाला है। ग्यारह साल लग गए, पर मोदी जी भी लगे रहे। अपने ध्येय से जरा भी नहीं भटके। 

बेशक, इन सालों में उनका ध्यान भटकाने वाली एक के बाद एक बेशुमार चीजें आयीं। किसी ने गरीबी का शोर मचाकर मोदी जी का ध्यान भटकाने की कोशिश की, तो किसी ने भूख का झूठा शोर मचाया ; किसी ने बेरोजगारी का भ्रम फैलाया, तो किसी ने महंगाई के आंकड़ों से भरमाया। 

और कुछ नहीं मिला तो बहुतों ने बढ़ती असमानता का ही शोर मचा दिया। पर मोदी जी का तप भंग नहीं कर पाए। और तप भंग करते भी तो कैसे? दूध का जला छाछ भी फूूंक-फूंक कर पिये। याद नहीं है कि कैसे किसानों वाले मामले में मोदी जी की तपस्या में कुछ कमी रह गयी थी, जिसकी वजह से उन्हें तीन कृषि कानून वापस लेने पड़े थे। तपस्या में कमी रह जाने की वैसी गलती मोदी जी दोबारा कैसे होने दे सकते थे। 

इस बार उन्होंने किसी भी चीज को अपना ध्यान भंग नहीं करने दिया। न शेयर बाजार के लुढ़कने को, न डालर के मुकाबले रुपए के बैठने को, न अर्थव्यवस्था के मंदी के दुश्चक्र में फंसने को। और तो और, राष्ट्र सेठ के गले में अमरीकी कार्रवाई का फंदा पड़े रहने को भी नहीं। गहरे पानी में तब तक पैठते रहे, पैठते रहे, जब तक देश के सामने खड़ी असली चुनौती हाथ में नहीं आ गयी -- मोटापे की चुनौती। और अपने मन की बात से ही राष्ट्र के नाम जोरदार गुहार लगायी -- मोटापा घटाओ, देश बचाओ! चिकनाई 10 फीसद कम खाओ, देश को स्वस्थ्य बनाओ!

अब देश में करीब-करीब बाकी सब कुछ तो एक हो ही चुका है। एक देश की तो खैर बात ही क्या करनी। जम्मू-कश्मीर को तोड़कर और उसे राज्य से कमतर छोड़कर, ऑफिशियली एक निशान और एक विधान भी हो चुका है। दक्षिण वालों की हाय-हाय गवाह है कि एक भाषा भी हो ही चुकी है। एक टैक्स तो खैर हो ही चुका है। उत्तराखंड से शुरुआत हो गयी है, गेंद अब गुजरात के पाले में पहुंच गयी है यानी एक नागरिक कानून भी हो ही रहा है। एक चुनाव का भी फैसला सरकार तो कर ही चुकी है, बस संसद से मोहर लगने की देर है। 

और तो और एक नॉन बायोलॉजीकल सुल्तान भी गद्दी पर आ चुका है। बस, एक देश, एक पेट की ही कसर थी, सो अब उसे ही पूरा किए जाने का नंबर है। सब का एक सा, पिचका हुआ पेट!

मोटापे से मुक्ति वाले फायदों जैसे शुगर की बीमारी से बचाव, दिल की बीमारियों से बचाव आदि, आदि के अलावा भी, पिचके पेट के अपने भी अनेक फायदे हैं। पहला और सबसे बड़ा फायदा तो यही कि जब सबके पेट पिचक जाएंगे तो, गरीब और अमीर का भेद ही मिट जाएगा। जो कम खाएगा, उसका भी पेट अंदर और जो ज्यादा खाकर ज्यादा पचाएगा, उसका भी पेट अंदर, कोई अंतर ही नहीं बता पाएगा। इससे देश की एकता भी बढ़ेगी और गरीबों की गरीबी भी मिट जाएगी। 

इसके बाद कोई चाहे भी तो भूख के मामले में भारत के निचले स्थान की ओर इशारा कर के हमें शर्मिंदा नहीं कर पाएगा। हम फौरन ज्यादा खाकर जिम में ज्यादा पचाया हुआ पेट आगे कर देंगे, नये जमाने के नये राष्ट्र सेठ का पेट। उसे कौन भूख की निशानी कह पाएगा!  

और जाहिर है कि जब पिचके पेट का चलन और बढ़ेगा और भारत शत-प्रतिशत पिचका पेट अवस्था की ओर बढ़ेगा, तो चिकनाई का आहार तो 10 फीसद घटेगा ही, बाकी सब चीजों का आहार भी घटेगा। और तो और, दुबले देश की कपड़े की खपत भी घट जाएगी। इससे हम ज्यादा निर्यात कर सकेंगे। इससे हम अपने यहां मजदूरी घटा सकेंगे। इससे हमारे उत्पाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में और ज्यादा प्रतिस्पर्द्धी हो सकेंगे और हम ज्यादा निर्यात कर पाएंगे। यानी एक बार एक देश, एक पेट पर अमल होने लग जाए, आर्थिक संकट-वंकट तो खुद-ब-खुद छूमंतर हो जाएगा।

और थैंक यू मोदी जी, आपने सिर्फ लक्ष्य दिखाकर नहीं छोड़ दिया है। आपने बाकायदा लक्ष्य को हासिल करने का रास्ता भी दिखाया है। आंदोलन का रास्ता। आपने दस मोटापा-विरोधी एंबेसेडर मनोनीत कर के शुरूआत कर दी है। ये एंबेसेडर भी दस-दस लोगों को मनोनीत करेंगे। फिर ये दस-दस लोग भी आगे दस-दस लोगों को मनोनीत करेंगे। इस तरह एक मोटापा-विरोधी शृंखला बनती चली जाएगी और एक जनांदोलन खड़ा हो जाएगा। अब प्लीज कोई इसकी याद मत दिलाने लगना कि स्वच्छता का भी तो इसी तरह से आंदोलन खड़ा किया गया था, ऐसे ही स्वच्छता एंबेसेडर नियुक्त किए गए थे ; उस जनांदोलन का क्या हुआ? हुआ क्या, स्वच्छता हो तो गयी! और अगर थोड़ी बहुत अस्वच्छता इसके बावजूद भी रह गयी है, तो इसलिए कि स्वच्छता के लिए सिर्फ आंदोलन काफी नहीं था। उसके लिए, प्रचार के अलावा जमीनी सरकारी प्रयास की भी जरूरत थी। 

अमरीकी अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसी, यूएसऐड के पैसे से कहां पूरा पड़ने वाला था। सो रह गयी होगी, जमीनी स्तर पर स्वच्छता में कुछ कोर-कसर। पर मोटापा हटाओ के लिए प्रचार और सिर्फ प्रचार ही काफी है। बाकी सब तो लोगों को खुद ही करना है। इस आंदोलन के पूरी तरह से सफल होने की गारंटी है। यह मोदी की गारंटी है यानी गारंटी पूरी होने की भी गारंटी।

मोदी जी के विरोधी इसमें भी अमीर-गरीब का बंटवारा किए बिना नहीं मानेंगे। वे कहेंगे कि पिचासी फीसद आबादी ने मोटापा देखा ही नहीं है, फिर मोटापा मिटाएगी कैसे? लेकिन, बात इससे उल्टी है। मोटापा मिटाने के लिए, मोटापे को देखना जरूरी कहां है? यह तो और भी अच्छी बात है कि ज्यादातर जनता पहले ही मोटापा-मुक्त है। 

यानी यह ऐसा आंदोलन है जिसमें गरीब जनता को शुरुआत से ही बढ़त हासिल है। अमीरों को ही उनके साथ दौड़ने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी ; नोटबंदी की तरह। यह गरीबों को आगे लाने वाला आंदोलन है। यह सफल होने की गारंटी वाला आंदोलन है। गरीबी-वरीबी मिटने की ऐसी गारंटी कहां है?  

Comments 0

Comment Now


Total Hits : 303178