आमिर अंसारी
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के सत्यापन को लेकर एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. इस मामले पर दो जजों की बेंच ने चुनाव आयोग को निर्देश जारी किए.
सुप्रीम कोर्ट ने एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा दायर याचिका पर चुनाव आयोग से जवाब मांगा, याचिका में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की जली हुई मेमोरी और सिंबल लोडिंग यूनिट के सत्यापन की अनुमति देने के लिए चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई है.
सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने चुनाव आयोग से कहा, "डाटा मिटाएं नहीं. डाटा को फिर से लोड न करें." कोर्ट ने कहा, "हमने केवल इतना निर्देश दिया था कि एक इंजीनियर आकर आवेदक-उम्मीदवारों की मौजूदगी में प्रमाणित करे कि माइक्रोचिप के साथ छेड़छाड़ नहीं की गई है."
ईवीएम को लेकर कोर्ट का क्या आदेश था
दरअसल, एडीआर ने अपनी याचिका में आरोप लगाया कि ईवीएम के सत्यापन के लिए चुनाव आयोग की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के अप्रैल, 2024 के आदेश के अनुरूप नहीं है. पिछले साल अप्रैल में जारी अपने आदेश में कोर्ट ने दूसरे और तीसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवारों को प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में 5 प्रतिशत ईवीएम की जली हुई मेमोरी/माइक्रोकंट्रोलर को नतीजों की घोषणा के बाद ईवीएम निर्माताओं के इंजीनियरों की एक टीम द्वारा जांच और सत्यापित कराने का विकल्प दिया था.
कोर्ट ने कहा था कि ईवीएम के माइक्रोकंट्रोलर के सत्यापन के लिए शुल्क का भुगतान करके चुनाव नतीजे घोषित होने के सात दिनों के भीतर अनुरोध किया जा सकता है. अगर ईवीएम में छेड़छाड़ पाई जाती है तो फीस लौटाई जाएगी.
एडीआर की ओर से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि चुनाव आयोग ईवीएम के सत्यापन के लिए केवल मॉक पोल करता है. उन्होंने कहा, "हम चाहते हैं कि कोई ईवीएम के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर की जांच करें और देखें कि उनमें किसी तरह की हेराफेरी की गई है या नहीं."
ईवीएम को लेकर भारत में सवाल उठते रहे हैं लेकिन चुनाव आयोग हर बार यह कहता आया है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए ईवीएम बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
ईवीएम पर उठते सवाल
ईवीएम को लेकर जब राजनीतिक दल सवाल उठाने लगे तो चुनाव आयोग ने वीवीपैट को चुनावों में पेश किया. दरअसल इस वीवीपैट की मदद से मतदाता यह देख पाता है कि उसका वोट सही तरीके से पड़ा है या नहीं. जब वोटर अपना वोट डाल देता है तो वीवीपैट से एक पर्ची निकलती है और वह बॉक्स में गिर जाती है. उस पर्ची पर वोटर ने जिस पार्टी को वोट दिया है उसका चुनाव चिन्ह दर्ज होता है. विवाद होने पर पर्ची को निकाला भी जाता है और उसे वेरिफाई किया जाता है.
सबसे पहले वीवीपैट मशीनों का इस्तेमाल 2013 में नागालैंड विधानसभा चुनाव में हुआ था. 2014 के लोकसभा चुनावों में भी कुछ सीटों पर इस मशीन का इस्तेमाल हो चुका है. 2019 के लोकसभा चुनाव में इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया था.
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