राजेंद्र शर्मा
ये एंटी-नेशनल न समझे हैं, न समझेंगे मोदी जी के विश्व गुरुत्व की बात। एक न्यौते की चिट्ठी पर अटके हुए हैं, वह भी उस चिट्ठी पर, जो इंतजार के बाद भी नहीं आयी। यहां तक कि अमरीका जाकर पूरी खोज-पड़ताल करके अंजना ओम कश्यप ने इंडिया को बता भी दिया कि डियर फ्रैंड ट्रम्प ने ज्यादा भीड़-भड़क्के का ख्याल कर के मोदी जी को शपथ ग्रहण में नहीं बुलाया था। इतनी भीड़ में मोदी जी की शान में कुछ ऊंच-नीच हो जाती तो? भीड़-भाड़ से अलग, शांति से बाद में मोदी जी अकेले बुलाए जाएंगे या ट्रम्प जी खुद ही मिलने आएंगे, तब दुनिया देखेगी दोनों दोस्तों की कहानी, वह भी बड़े पर्दे पर। पर तब तक इन एंटी-नेशनलों के तानों के तीर जो मोदी जी का सीना छलनी करते रहेंगे, उसका क्या? डियर फ्रेंड, तुझको ऐसा नहीं करना चाहिए था। झूठे ही सही, मना करवाने को ही सही, कम से कम न्यौता तो भेजते। ऐसे तो दोस्ती से दुनिया का विश्वास ही उठ जाएगा।
जो हर वक्त मोहब्बत-मोहब्बत की बात करते हैं, पर असल में इसी दोस्ती से नफरत करते हैं, उन्होंने तो कहना भी शुरू कर दिया है कि ट्रम्प ने मोदी जी को नहीं बुलाया, क्योंकि मोदी जी पहुंच जाते तो, हाथ के हाथ उसकी चोरी पकड़ी जाती। ट्रम्प ने मोदी जी की बोली ही चुरा ली। वही देश के स्वर्ण युग का आगमन। वही दसियों साल से चल रहे पतन का रुकना। वही देश को फिर से महान बनाना। वही देश के दुश्मनों को धूल चटाना। वही सारी दुनिया से अपने देश का लोहा मनवाना। वही छप्पन इंच की छाती। वही भीतरी और बाहरी दुश्मनों के कसते घेरे से जंग। वही मंगल ग्रह पर झंडा फहराने की हूंकार। वही परदेसियों को दुत्कार। वही देश की सीमाएं बढ़ाने की पुकार। और वही एक के बाद एक नाम बदल डालने की यलगार। मोदी जी दोस्ती का ख्याल करते, तब भी रॉयल्टी तो बनती ही थी। रॉयल्टी मांग बैठते तो? आखिर, दोस्ती अपनी जगह, धंधा अपनी जगह!
खैर, मोदी जी ने इसमें भी विश्व गुरु वाला दांव चल दिया। धंधे का मौका देखकर जयशंकर को पीछे रोक लिया, फोटू के टैम पर मुकेश-नीता अंबानी को आगे कर दिया। देश को नया विदेश मंत्री मिल गया -- अब मस्क से अंबानी मिलें, कर-कर लंबे हाथ!
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