राजेंद्र शर्मा
लीजिए, अब मोदी जी के विरोधियों को इसका भी सबूत चाहिए। कह रहे हैं कि इसका कोई सबूत ही नहीं है कि रुपया गिरकर, एक डालर के पचासी रुपये से ज्यादा के रेट पर खुद ब खुद नहीं पहुंच गया है। भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी ने जब से हर मौसम में टी-शर्ट का योग साधा है, कुछ ज्यादा ही अपने डौले दिखाने लगे हैं। बेचारे अडानी जी के खिलाफ तो अपनी यात्राओं के पहले दिन से ही पड़े हुए थे। मोदी जी अपने यार सुदामा को कुछ भी दें, इन महाशय के पेट में दर्द उठने लगे। तेली का तेल जले, मशालची की छाती फटे। हवाई अड्डे दें, तो भी दर्द, बंदरगाह दें तो भी दर्द, सीमेंट कारखाने दें, तो भी दर्द, अनाज गोदाम दें तो भी दर्द, फल-वल की खरीद का ठेका दें, तब भी दर्द। अडानी से जरा सा ध्यान हटा, तो लगे सत्तापक्ष के सांसदों को धक्का मारने। दो गरीब सांसदों को तो धक्का मारकर, सीधे आइसीयू में पहुंचा दिया। और उस पर भी चैन नहीं पड़ा तो, खामखां में बेचारे रुपए को ही धक्का मार कर, पचासी रुपए से नीचे लुढक़ा दिया। आइसीयू में तो बेचारा पहले ही था, अब पता नहीं क्या होगा?
पर विरोधियों को तो इसका भी सबूत चाहिए। षडंगी और राजपूत को सीधे आइसीयू पहुंचाने वाले धक्के के लिए सीसीटीवी फुटेज का सबूत पहले ही मांग रहे थे। अब इन्हें रुपए को धक्का मारकर गिराने का भी सबूत चाहिए। पर सबूत-सबूत की रट लगाने वाले यह भी बताएं कि उन्हें कैसा सबूत चाहिए। सांसद धक्का कांड के लिए भी सीसीटीवी फुटेज की मांग कितनी सही है कितनी नहीं, हम नहीं कह सकते। मामला कानूनी है। राहुल गांधी के खिलाफ एफआइआर हो चुकी है। पर इतना पक्का है कि रुपए को धक्का मारकर गिराने में वैसा सीसीटीवी वाला सबूत नहीं मिल सकता है। हर चीज इस तरह नहीं होती है कि कैमरे उसे दर्ज कर ही लें। और सीसीटीवी के सबूत को छोडक़र, रुपए को धक्का देकर लुढक़ाए जाने के दूसरे सभी साक्ष्य मौजूद हैं। विपक्ष वाले संसद में जब हो-हल्ला कर रहे थे, राहुल गांधी उसमें आगे-आगे थे कि नहीं। जार्ज सोरोस के इशारे पर, विपक्ष वाले अडानी घोटाले से लेकर, मणिपुर तक को लेकर शोर मचा रहे थे कि नहीं। और जब मोदी जी, अडानी जी को धक्के से नहीं गिरा पाए तो अमित शाह से माफी मंगवाने का शोर। पीछे से धक्का आया। राहुल गांधी आगे को गिरे। राहुल गांधी का धक्का रुपए को लगा। पर उसके आगे कोई नहीं था, जो उसके धक्के को झेल लेता; बस इधर षडंगी और राजपूत आइसीयू में पहुंच गए और उधर रुपया लुढक़ कर डालर में पचासी से नीचे।
अब सिर्फ राहुल गांधी को बचाने के लिए, प्लीज यह सवा चतुराई की दलील मत देने लगिएगा कि रुपया गिरा तो है ही नहीं, वह तो ऊपर चढ़ा है। राहुल गांधी के धक्के से पहले डालर में चौरासी रुपए और कुछ पैसे आते थे, अब पिचासी रुपए और कुछ पैसे आ रहे हैं। यह अगर गिरावट है, तो ऊपर चढऩा क्या है? ऐसे तो दो-दो सांसदों के आइसीयू में पहुंचने में भी सरकार का फायदा है--अमित शाह के इस्तीफे का शोर अब संसद में नहीं सुनाई देगा। पर यह सब गलत है। हां! इतना जरूर है कि रुपया भले न गिरा हो, पर डालर ऊपर जरूर चढ़ गया है। पर जार्ज सोरोस के जरिए, राहुल गांधी के धक्के का ही तो कमाल है।
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