Thursday ,21st November 2024

राजनीति तो करने दो यारो!

 

इन विपक्ष वालों की चले, तो ये तो पीएम जी को पब्लिक के सामने अपने मन की बात भी नहीं करने देंगे। मन की बात भी सिर्फ मोदी जी के स्पेशल रेडियो प्रोग्राम वाली नहीं। कहते हैं कि उसे तो लोगों ने वैसे भी सुनना-सुनाना बंद कर दिया है। नहीं, ऐसा नहीं है कि बेचारे भगवाइयों को जबरन पकड़-पकड़कर, बैठाकर मन की बात सुनाए जाने से छुट्टी मिल गयी हो। उन बेचारों को तो बदस्तूर हर महीने के आखिरी इतवार को सुबह-सुबह सामूहिक तरीके से बड़े-बड़े टीवी स्क्रीनों के सामने बैठकर पीएम जी की मन की बात वाला रेडियो प्रोग्राम सुनना पड़ता है। बस आम पब्लिक ने ही दूसरों के मन की बात सुनने की मजबूरी से खुद को आजाद कर लिया है। पर विपक्ष वाले तो पब्लिक को पीएम जी के अपने मन की बात सुनाने से ही आजादी दिलाना चाहते हैं। कारगिल विजय दिवस के मौके पर मोदी जी ने कारगिल में सैनिकों के सामने बोलते हुए, अपने से पहले के राज करने वालों को जरा सी खरी-खोटी क्या सुना दी, विपक्षी शर्म-शर्म के नारे लगाने लगे। और शर्म काहे की। कहते हैं कि यह तो शहीदों के याद करने के मौके पर राजनीति करना है और वह भी ओछी राजनीति करना। ऐसा पहले किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया था!

पहले किसी प्रधानमंत्री ने ऐसा नहीं किया गया था, तो मोदी जी क्या करें? मोदी जी ने तो उनसे नहीं कहा था कि ओछी राजनीति मत करो। लिखित तो छोड़िए, कोई जुबानी एग्रीमेंट भी नहीं था कि अगर आपने ओछी राजनीति नहीं की, तो हम भी ओछी राजनीति नहीं करेंगे। ऐसा भी नहीं है कि पहले वालों के पास भी ऐसा मौका ही नहीं आया हो। मौका आया, फिर भी गंवा दिया और अब उनके उत्तराधिकारी मोदी जी से मांग कर रहे हैं कि  उन्हें भी मौका गंवा देना चाहिए ; यह तो इंसाफ की बात नहीं हुई। ऐसे तो पहले वालों ने रेडियो वाली मन की बात भी नहीं की थी, तो क्या इसीलिए मोदी जी अपनी रेडियो वाली मन की बात भी नहीं करते? मोदी जी को नकलची समझ रखा है क्या? मोदी जी नेहरू जी से कंपटीशन तो मानते हैं, लेकिन नकल नेहरू जी की करना भी उन्हें मंजूर नहीं है। मजाल है, जो जैकेट की पॉकेट में या बटनहोल में मोदी जी ने एक बार भी, गुलाब का फूल लगाया हो!

वैसे भी यह मांग ही बड़ी बेतुकी है कि शहीदों को श्रद्धांजलि देने के मौके पर मोदी जी अपने से पहले राज करने वालों को खरी-खोटी नहीं सुनाएं। यह मांग ही नकारात्मक है। श्रद्धांजलि देने के मौके पर मोदी जी को क्या नहीं करेें बताने वाले क्या यह भी बताएंगे कि ऐसे मौके पर मोदी जी को क्या करना चाहिए, क्या कहना चाहिए? पहले वालों को खरी-खोटी सुनानी नहीं चाहिए, अब वालों को खरी-खोटी सुना नहीं सकते, फिर मोदी जी करें भी तो क्या करें? भाषण में पब्लिक के सामने बोलें भी तो क्या बोलें? जय श्रीराम तक बोलने में विरोधी सवाल उठाने लगते हैं? तब क्या मोदी जी ओछी राजनीति हो जाने के डर से कुछ भी बोलेें ही नहीं ; बस जय हिंद कहें और माइक से हट जाएं। तब मोदी के मोदी होने का, धुंआधार वक्ता होने का, देश और पब्लिक को फायदा क्या हुआ। किसी और ने किया हो या नहीं किया हो, कोई और करे न करे, मोदी जी तो अपनी पारी में वही करेंगे -- शहीदों को श्रद्धांजलि हो या चुनाव रैली, नेहरू वगैरह को किसी न किसी बहाने से लठियाते रहेंगे ; अपनी छप्पन इंची छाती दिखाते रहेंगे।       

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