Sunday ,8th September 2024

पब्लिक पगला गयी है!

ये पब्लिक सच्ची में ही पगला गयी है क्या? बताइए, मोदी जी ने कितने अरमानों से 2047 तक विकसित भारत बनाने का प्रोग्राम बनाया था। चार सौ पार का टार्गेट बनाया था। पर पब्लिक ने क्या किया? मोदी जी की पार्टी को न तो जीतों में छोड़ा और न साफ हराया ; बेचारों को दो सौ चालीस पर ही अटका दिया। वह तो कह लो कि ऐसे वक्त के लिए ही मोशा ने चाणक्यगीरी कर के छोटी-बड़ी, अलग-अलग साइज की तीन-चार बैसाखियां जुगाड़ रखी थीं, सो काम आ गयीं, वर्ना इस नाशुक्री पब्लिक ने तो दिल्ली की गद्दी से बेचारों का बोरिया-बिस्तरा ही बंधवा दिया था। मोदी जी ने कैसे जहर का घूंट पीकर मोदी-मोदी करना छोडक़र, एनडीए-एनडीए की रट लगाने की प्रैक्टिस की है, उनका दिल ही जानता है। फिर भी बार-बार कहकर उन्होंने अपने दिल को किसी तरह से समझा लिया था कि जो जीता, वही सिकंदर।

सच पूछिए तो उन्होंने धीरे-धीरे लोगों को यह समझाना भी शुरू कर दिया था कि पब्लिक का वह मतलब बिल्कुल नहीं था, जो उनके विरोधियों ने चुनाव में पब्लिक को भरमाकर उससे करवा लिया था और फिर जो पब्लिक के करने का उन्होंने हल्ला मचा दिया था। और यह भी कि अब पब्लिक तो खुद ही पछता रही थी कि उससे कैसी गलती हो गयी? उसके हाथों से कैसा अधर्म हो गया ; गोहत्या/ब्रह्महत्या की श्रेणी का पाप होते-होते रह गया। और कि पब्लिक अब बेताबी से इंतजार कर रही है कि कब मौका पाए और मोदी जी के सिर पर फिर से कामयाबी का सेहरा बांधकर, अपनी गलती को मिटाए, वगैरह, वगैरह। पर यहांं तो पब्लिक का कुछ और ही खेल चल रहा है। संसद वाले चुनाव की गलती सुधारने के बजाए, उसने तो विधानसभा उपचुनाव में अपनी गलती कई गुना बढ़ा दी है और मोदी जी को ना जीत, ना हार की पिछली दुविधा से निकालकर, बाकायदा हार थमा दी है। तेरह में से कुल दो सीटें -- मोदी जी ओढ़ें या बिछाएं और अपनी अजेयता की कमीज, किस खूंटी पर लटकाएं!

और सिर्फ किन्हीं भी सीटों की बात होती, तो मोदी जी फिर भी दिल को तसल्ली दे लेते। जब तक चुनाव है, तब तक मुकाबला हो सकता है और मुकाबले में कभी हार भी हो ही सकती है। पर यहां तो ऐसी-वैसी नहीं, देवनगरियों की पब्लिक तक ने आंखें फेरनी शुरू कर दी हैं। पहले, राम जी की नगरी अयोध्या के वासियों ने मुंह फेर लिया और रामलला को लाने वालों को एक मामूली वोट तक देने से इंकार कर दिया। और तो और, शिव की नगरी के वासियों ने भी शुरू में तो झटका दे ही दिया था, पर आखिरी वक्त पर गंगा मां के दत्तक पुत्र को बख्श दिया। पर इस बार फिर, बाकी दस सीटों पर हराया सो हराया, पर बद्री धाम के वासियों ने भी मोदी पार्टी को हरा दिया। पब्लिक तक ही बात रहती, तो फिर भी कुछ न कुछ कर के बहला लेेते, पर अगर ये देवता लोग भी अपोजीशन वालों के साथ में मिल जाएंगे, तो मोदी जी पब्लिक को क्या कहकर समझाएंगे! मान लीजिए, उंगली पकडक़र लाने वाली बात का रामलला ने बुरा मान ही लिया और अयोध्या में हरा ही दिया, तो अब बद्रीनाथ में किसलिए हरवा दिया? क्या उनके सिर्फ नान-बायोलॉजीकल और ईश्वर का दूत होने की जलन से? मोदी जी को देवताओं से ऐसी उम्मीद तो नहीं थी।

खैर! अगर पब्लिक यूं ही पगलाई रही, तो मोदी जी के पास इसके सिवा दूसरा रास्ता नहीं रह जाएगा कि इस पब्लिक को ही भंग कर दें और अपने लिए एक नयी सच्ची हिंदू, सच्ची राष्ट्रवादी पब्लिक चुन लें। और फिर जनतंत्र हत्या दिवस चाहे हर रोज मनाएं!         

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