Sunday ,8th September 2024

राम नाम पर लूट है

 

कौन जानता था कि ये राम विरोधी इतने गिर जाएंगे। बताइए, पहले मोदी जी का विरोध करते-करते, राम का विरोध करने लगे। पर अब तो ये राम तो राम, रामकृपा का भी विरोध करने तक चले गए हैं। कहते हैं कि राम मंदिर बनने से पहले, राम की नगरी में जमीनों की खरीद-बिक्री में जो करोड़ों-अरबों रुपया बनाया गया है, वह तो राम के नाम पर ठगी है। राम के नाम पर ठगी यानी राम के साथ ठगी। यह तो राम के घर में लूट है।
हम पूछते हैं कि राम भक्तों के लिए लूट और ठगी जैसे अपराध विज्ञान के शब्दों के प्रयोग की इजाजत कैसेे दी जा रही है? डैमोक्रेसी का ये मतलब थोड़े ही है कि जो बाकी सब के लिए लूट और ठगी है, उसी को राम भक्तों के लिए भी लूट और ठगी मान लिया जाएगा। हर्गिज नहीं। वर्ना इस महान देश के बच्चे क्या अब तक बाबरी मस्जिद के गिरने को, बाबरी मस्जिद का गिरना ही मान और बता नहीं रहे होते। पर मोदी जी ने ऐसा होने दिया क्या? बच्चों को पढ़ाया जा रहा है कि बाबरी मस्जिद तो कभी थी ही नहीं। जब मस्जिद थी ही नहीं, तो मस्जिद के गिरने-गिराने की बात ही कहां से आयी? बस जमीन थी और तीन गुंबद थे। और राम जी के भव्य मंदिर के लिए जमीन की जरूरत थी। 

भव्य मंदिर के लिए जमीन तरह-तरह से आयी -- जीत कर आयी, खरीद कर आयी, धक्के से आयी। गरीबों के मंदिरों से आयी, गरीबों के घरों से आयी, गरीबों की दूकानों से आयी, गरीब गुंबदों से आयी। जमीन कैसे भी आयी, राम जी के काम के लिए आयी। और राम जी का काम तो राम जी का काम है, उसमें गलत तरीका क्या और सही तरीका क्या? सही-गलत के चक्कर में पड़े रहते, तो राम जी कबीर के अंदाज में आज भी बाजार में खड़े होते -- लिए लुकाठी हाथ, कि मैं घर जारों तास का, जो चले हमारे साथ!

खैर! अगर राम जी के काज में भक्तों ने चार पैसे कमा भी लिए, तो क्या हुआ? राम जी के काज में उनके भक्त पैसे नहीं कमाएंगे, तो क्या उनके विरोधी पैसे कमाएंगे। अयोध्या में नहीं कमाएंगे, तो क्या काबुल में कमाएंगे? इसे लूट नहीं राम जी की कृपा कहिए। फिर बेशक, कृपा की लूूट कहिए -- राम नाम पर लूट!

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