Sunday ,8th September 2024

दूसरो की रोशनी चुराकर चमकने की निर्लज्ज चाहतें

(आलेख : बादल सरोज)

अभी तक देशों के अपने राष्ट्रीय पशु, पक्षी, पेड़, पर्वत, झंडे और दीगर प्रतीक चिन्ह होने के रिवाज प्रचलन में हुआ करते थे । मोदी राज में इनमें खूब इजाफे हुए हैं, कई-कई नयी चीजें जुडी हैं। इन्हीं में से एक है राष्ट्रीय विवाह, जो मार्च से शुरू हुआ है और अभी तक है कि चल ही रहा है। इसकी बेसुरी धमाधम शुरू हो चुकी है और गूँज-अनुगूंज उत्तरोत्तर तेज से तेजतर होने वाली है। कोई भ्रम न रह जाए, इसलिए अंबानी की अपनी सरकारों ने इसे बाकायदा सूचना निकाल कर एक सार्वजनिक (पढ़ें : राष्ट्रीय) आयोजन का दर्जा दे दिया है। 

देश की वाणिज्यिक राजधानी मानी जाने वाली मुम्बई में 12 जुलाई से 14 जुलाई तक घोषित रूप से दफ्तर, बाजार, यहाँ तक कि नेशननल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) बंद रहेगा। शादी के लिए तैयार महल और उसमें आये मेहमानों के ठहरने की जगहों की कई किलोमीटरों की परिधि में आने वाली सड़कें भी "इंडिया दैट इज भारत" के नागरिकों के लिए बंद कर दी गयी हैं। इसमें खर्चा कितना होगा, इसका अंदाजा भी लगाना सामान्य इस्तेमाल में लाये जाने वाले कैलकुलेटर्स को जाम कर सकता है। एक मोटा अनुमान इस शादी के पहले हुए दो शादी-पूर्व आयोजनों – प्री वेडिंग सेरेमनी -- को देखकर लगाने की कोशिश की जा सकती है। 

जामनगर के जंगल में मंगल की तरह मार्च महीने के तीन दिनी समारोह में 1259 करोड़ रूपये खर्च हुए थे। 29 मई से 1 जून तक हुयी दूसरी प्री-वेडिंग 7500 करोड़ रुपयों के पांच तारा आलीशान पानी के जहाज – क्रूज – पर 4380 किलोमीटर तक समन्दर पर चली ; इटली से जेनेवा, रोम से फ्रांस कहीं लंच, कहीं डिनर, कहीं ब्रेकफास्ट करते हुए यह कान्स तक पहुंची। इसमें शामिल हुए दुनिया भर से बुलाये गए कोई 800 मेहमान इस ऐश्वर्य के पर्याय जल-महल के जिन कमरों – रईस कमरों में नहीं रहते, वे उन्हें सुइट कहते हैं – में रहे, उन एक-एक का किराया ही दसियों लाख रुपयों में था। इसमें जामनगर से दो गुने से भी कहीं ज्यादा के खर्च की खबर है। मगर ऐसा लगता है, जैसे अंबानी ने वैभव की अश्लीलता की अब तक की सारी हदें लांघने और मनुष्यता को लजाने वाली फिजूलखर्ची के दिखावे की हवस को बढ़ाते जाने की ठान ली है। मुम्बई में होने जा रही इस शादी में, जिसे अंबानी की सरकारों ने लगभग राष्ट्रीय समारोह का दर्जा दे दिया है, इसी मनोरोग के तीसरे आयाम की फूहड़ता दिखाई जा रही है। इस शादी में बुलावे के लिए भेजा गया निमंत्रण कार्ड ही प्रति कार्ड 7 लाख रूपये का है। 

इस बारे में ज्यादा विस्तार से शादी के ट्रेलर - टीजर के पहले प्रहसन के समय  मार्च में “जामनगर में वैभव की अश्लीलता और सेठ जी के चिड़ियाघर में बदलता भारत” शीर्षक से लिखा जा चुका है। इन 4 महीनों में अंतर सिर्फ यही आया है कि अब भारत सचमुच में सेठ जी के चिड़ियाघर में बदल चुका है। जिस देश में खुद उसके प्रधानमंत्री के दावे के हिसाब से 80-85 करोड़ लोग सरकार के 5 किलो राशन और हजार-डेढ़ हजार रुपयों की बाट जोहते इतने हताश हो गए हैं कि किसी भी चिरकुट बाबा के यहाँ बीसियों हजार की भीड़ बनाकर भगदड़ में मौत के मुंह में जाने की जोखिम उठा रहे हैं, वास्तविक जीवन में कोई उम्मीद न देख काल्पनिक समाधान हासिल करने के लिए अंधविश्वासों की गहरी खाई में छलांग मारने को भी तत्पर हुए जा रहे हैं, ऐसे देश में इतनी विपुल मात्रा में धन का पानी की तरह बहाया जाना किसी भी सभ्य समाज के लिए क्षोभ और लज्जा का विषय है, एक राष्ट्रीय अपराध है। ऐसा करने की हिम्मत कहाँ से आती है? उस नाकाबिल और जरपरस्त राजनीति से आती है, जिसकी हैसियत 2014 में तब नए-नए चुने गए प्रधानमंत्री की पीठ पर हाथ रखकर मोटा भाई दुनिया भर को दिखा चुके हैं, जिन्हें अपने उत्पाद बेचने का मॉडल बनाकर विज्ञापनों में छपवा चुके हैं। उस मीडिया से आती है, जो इस बेहूदगी का लाइव प्रसारण करते और सेठ जी का महिमा गान करते हुए रीढ़विहीन होकर तलछट में रेंग रहा है और इसे राष्ट्रीय गौरव बता रहा है। उस विचार समूह से आती है, जिसकी मांद से निकले शाखा शृंगाल सेठ जी के इस शादी काण्ड में शामिल सारे अतिथियों के भारतीय (?) पोशाक पहनने को सनातन का दुनिया भर में प्रचार करने का कारनामा बताते हुए ट्विटर और इंस्टाग्राम पर कोहराम मचाये हुए हैं। यही है, संघ जिन्हें अपना गुरु मानता है, उन गोलवलकर के आर्थिक सूत्र “हाथी को मन भर चींटी को कण भर” के सूत्र को जनता के गले उतारने का जतन!! सनद रहे कि सेठ यह सारा तामझाम अपनी जेब से नहीं कर रहा है -- उसने इसकी वसूली के लिए अपने जिओ के दाम झटाक से बढ़ा दिए हैं।

इधर सेठ जी हमारी आपकी जेब से रोशनी चुराकर अपनी चमकार का मेला लगाए बैठे हैं, उधर मोदी जी अपनी उठी हुयी हाट को फिर से सजाने, जनता द्वारा खड़ी की गयी खाट को फिर से बिछाने के लिए कोना तलाशने में लगे हैं। लोकसभा चुनाव में साफ़-साफ़ हुयी हार के सच को नकारने, संसद के पहले सत्र में ही विपक्ष के सवालों से हांफते-हकलाते हुए पूरे देश के सामने लाइव बेनकाब हो जाने की झेंप मिटाने के लिए मेहनत करके रोशनी कमाकर लाये नक्षत्रों की रोशनी में खुद को चमकाने का कोई भी मौक़ा नहीं छोड़ना चाहते। यही कारगुजारी थी, जो उन्होंने क्रिकेट का अंतर्राष्ट्रीय मुकाबला जीतकर लौटी भारतीय टीम के साथ की। देश लौटकर उस टीम को जाना था मुम्बई, जहां शाम को उनके स्वागत में मरीन ड्राइव पर हुजूम जुटने वाले थे ; मगर उन्हें पहले बुला लिया गया दिल्ली, ताकि प्रधानमंत्री उनके साथ अपनी फोटू उतरवा कर इन खिलाड़ियों की अर्जित चमक में से रोशनी चुराकर जनता द्वारा अपने पर बरपाए अँधेरे में थोड़ी-बहुत कमी ला सकें। कोहली, बुमराह और सूर्यकुमार यादव सहित पूरी क्रिकेट टीम की चकाचौंध में से कुछ किरणें अपने कुम्हलाये चेहरे पर चुपड़ सकें। भारत की जनता का धर्म बन चुके क्रिकेट के इस उल्लास में साझेदारी से अलग उनकी मंशा निश्चित ही खिलाड़ियों के साथ किये अपनी पार्टी और सरकार के जघन्य अपराधों को छुपाने की रही होगी, किन्तु लोगों की याददाश्त इतनी भी कमजोर नहीं होती। उन्हें  याद है कि कुछ इसी तरह का स्वांग प्रधानमंत्री निवास में ओलम्पिक जीत कर लौटी महिला खिलाड़ियों के साथ भी किया गया था। नाश्ता भी कराया था, फोटो भी खिंचवाए थे, विडियो भी बनवाये थे। खुद को उनका अभिभावक और उन्हें अपने परिवार का हिस्सा तक बताया था। मगर जब उसी दौरान इन खिलाड़ीनों ने मोदी की पार्टी के सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह द्वारा किये गए यौन शोषण के बारे में शिकायत की थी, तब यही स्वयंभू अभिभावक सुट्ट लगा गए थे। बाद में इंसाफ की मांग को लेकर यही खिलाडिने मोदी की नाक के नीचे जंतर मंतर पर धरने पर बैठी, तब उनके साथ जो हुआ, वह इस देश के माथे पर लगाए गए कलंक की तरह आज भी लोगों की स्मृति में दर्ज है। इन्हें न सिर्फ जाट – जैसे जाट होना कोई अपराध हो – कहकर गालियाँ दी गयीं, बल्कि भाजपा-संघ और उनकी पूरी मंडली ने इन शानदार खिलाड़ियों को चुके और खत्म हो चुके खिलाड़ी तक बताया। हालांकि इन तोहमतों और बद्दुआओं को धता बताते हुए इन्हीं महिला पहलवानों में से एक बिनेश फोगाट दूर स्पेन में हुए एक मुकाबले में स्वर्ण पदक जीतने का करिश्मा दिखा आई है। यह उम्मीद करना व्यर्थ है कि मोदी अब विनेश को चाय पिलाने के लिए भी न्यौतेंगे।

बहरहाल ये धब्बे इतने गहरे है कि क्रिकेट टीम के साथ फोटू सेशन की रंग-बिरंगी तस्वीरों से भी झलक-झलक कर दीखते रहेंगे। खेल के साथ ऐसा ही खेल वे नीरज चोपड़ा की माँ के हाथों का बना चूरमा खाने की इच्छा जताने का ढकोसला करके कर रहे थे। हालांकि उन्हें याद होगा कि जब सचिन-वचिन जैसे सूरमा इन महिला पहलवानों के पक्ष में बोलने और उनके साथ खड़े होने के लिए तैयार नहीं थे, तब कपिल देव के अलावा यह नीरज चोपड़ा और जिनके हाथों का बना चूरमा खाने को वे बेताब हैं, वही माँ देश की इन बेटियों के साथ थीं।

हमारे कालखंड का नीरो इधर फोटुओं में अपने परिधान और भंगिमाओं का मुजाहरा कर रहा था और उधर  हाथरस में एक कथित बाबा के समागम में जमा हुई भीड़ उत्तरप्रदेश सरकार की बदइंतजामी और इनके कुनबे द्वारा हवा दिए जा रहे अंधविश्वास के चलते एक-दूसरे के पांवों तले कुचली जा रही थी। उनके प्रति संवेदना जताने, राहत वगैरा की व्यवस्था करने और इसके दोषियों को दंडित करने की अपनी नैतिक संवैधानिक जिम्मेदारी को निबाहने की जगह उधार की रोशनी में चमकने की निर्लज्ज चाहतों का प्रदर्शन किया जा रहा था। ये अलग बात है कि लगभग गृह युद्ध जैसी आग में जलता मणिपुर इन चुराई हुई रोशनी के रेशे-रेशे को उधेड़ कर इसकी कालिमा पहले ही उजागर कर चुका है।  

विस्फोट की तरह सामने आती यही कालिमा हैं, जिन्हें ढांपने के अब तक के सारे धतकर्मों में नाकाम रहने के बाद न्याय और अपराध संहिताओं में तानाशाही पूर्ण बदलाव लाकर इधर पीड़ितों की आवाज घोंटने और उधर अपराधियों को बचने के रास्ते मुहैया करने के प्रबंध किये जा रहे हैं। इनके खिलाफ देश भर में विकसित होता प्रतिरोध, संसद में एकजुट हुए विपक्ष की सड़कों पर उतरने की तैयारी और जनता तथा उसके संगठनों में बढ़ता दिखता आत्मविश्वास, तय है कि इस चाल को भी विफल बनाएगा । 

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