Sunday ,8th September 2024

हिंदू खतरे में हैं !

राजेंद्र शर्मा 

अब सेकुलर वाले क्या कहेंगे? क्या हिंदू अब भी खतरे में नहीं है? क्या हिंदुओं के खतरे में होने बात सिर्फ अफवाह है, जो हिंदुओं के खतरे में होने की दुकान चलाने वालों ने फैलायी है? अगर हिंदुओं के खतरे में होने की बात कोरी गप्प है, तो वह क्या है जो हाथरस में भोले बाबा के चक्कर में हुआ है। दो-चार नहीं, दस-बीस नहीं, पूरे सवा सौ से ज्यादा लोग भीड़ में कुचलकर मारे गए हैं या नहीं। बेशुमार लोग घायल हुए हैं, सो ऊपर से। सब के सब, जी हां, सब के सब, हिंदू थे या नहीं? 

हिंदू खतरे में नहीं होते, तो क्या इतनी आसानी से, इतनी तादाद में मारे जाते? हिंदू खतरे में नहीं होते, तो क्या इतने खस्ता हाल इंतजामों के बाद भी, इतनी बड़ी तादाद में जुटते? बेशक, जुटने वाले खासतौर पर गरीब थे। नहीं, बाबा गरीब नहीं है, पर बाबा के भक्त जरूर गरीब थे। अमीर बाबा के गरीब भक्त! सही है, गरीब भी खतरे में हैं, पर हिंदू तो कुछ ज्यादा ही खतरे में हैं। गरीब भी ज्यादा हिंदू ही हैं, इसलिए यह कहना मुश्किल है कि हिंदू ही गरीब होने से खतरे में हैं या गरीब ही हिंदू होने से ज्यादा खतरे में हैं। पर खतरे में दोनों हैं।

खतरे में हैं, तभी तो उनके लिए इतने खराब इंतजाम थे। खतरे में नहीं होते, तो उनके लिए भी तो वही राजा अंबानी के बेटे की शादी के लिए मुंबई में जैसे इंतजाम कराए जा रहे हैं, उनके जैसे नहीं भी सही, उनकी उतरन के जैसे इंतजाम तो करा ही सकता था। तब न भीड़ बेकाबू होती, न भगदड़ मचती, न लोग अपने जैसों के पांवों तले कुचले जाते।

पर इंतजाम न होने से कुचले गए, इसीलिए तो कहा कि हिंदू खतरे मैं हैं। लोग भगदड़ में कुचले गए, फिर भी अगर इंतजाम होता, तो इतने नहीं मारे जाते। मगर इतने मारे गए, क्योंकि जो कुचले गए, उन्हें फौरन अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस नहीं थी। जो अस्पताल पहुंचा भी दिए गए, उनके इलाज के लिए साधन नहीं थे। डाक्टर थे भी, तो बिजली नहीं थी। हिंदू खतरे में नहीं होता, तो क्या अस्पतालों में ऐसी हालत होती। 

हिंदू खतरे में नहीं होता तो क्या हादसे के शिकार परिवारों को मदद देने में इतनी कंजूसी होती? हिंदू खतरे में नहीं होता तो क्या सब कुछ होने के बाद भी कार्रवाई में इतनी ढील होती? सूरज पाल उर्फ भोले बाबा उर्फ साक्षात हरि में और एफआईआर में इतनी दूरी होती? हिंदू खतरे में नहीं होता, तो हाथरस में पीड़ित परिवारों को धीरज बंधाने के लिए, सिर्फ विपक्ष के नेता राहुल गांधी की आमद होती!

मगर इससे कोई यह नहीं समझे कि हिंदू सिर्फ हाथरस और उसके आस-पास के इलाके में ही खतरे में हैं। और तो और, बारिश से भी सारे देश में सबसे ज्यादा हिंदू ही खतरे में हैं। बाढ़ और उससे हुई तबाही में मरने वालों और जैसे-तैसे कर के बचने वालों में, सबसे ज्यादा क्या हिंदू ही नहीं हैं? असम हो, उत्तराखंड हो, हिमाचल हो, यूपी हो, मध्य प्रदेश हो, और तो और, राजस्थान तक में बाढ़ में सबसे ज्यादा शामत किस की आयी है। बिहार में जो पंद्रह दिन में एक दर्जन पुल ढहे हैं, उनकी ज्यादा मार किस के हिस्से में आयी है? हिंदू ही असली खतरे में हैं!

जाहिर है कि खतरा सिर्फ जान या माल का ही नहीं होता है। खतरा चोरी का भी कम नहीं होता है ; मेहनत की चोरी का भी और सपनों की चोरी का भी। नीट में क्या हुआ? फिर नेट में भी। फिर नीट पीजी वगैरह में भी। जिन लाखों बच्चों की मेहनत से लेकर सपनों तक की चोरी हो गयी, बल्कि डाका पड़ गया, वो कौन थे? जाहिर है कि उनमें भी ज्यादा हिंदू ही थे। हिंदू खतरे में हैं, तभी तो सरकार यह कह रही है कि जो चोरी हुई भी है, इतनी बड़ी चोरी भी नहीं है कि ज्यादा कुछ करना जरूरी हो। 

पानी के भरे ताल में से यहां-वहां, किसी ने बाल्टी, किसी ने केन, किसी ने बोतल से कुछ पानी निकाल भी लिया तो क्या? ताल का पानी खराब हो गया थोड़े ही मान लेंगे। करेंगे, आइंदा चोरी रोकने के भी इंतजाम करेंगे। पानी की सुरक्षा बढ़ाएंगे। और पुलिस वगैरह लगाएंगे। सब करेंगे, बस ताल को खाली कर के दोबारा भरने को हमसे कोई न कहे। वर्ना सब गड़बड़ हो जाएगा। हर बार चोरी होगी और हर बार, दोबारा भरना lशुरू करना पड़ जाएगा। हम बार-बार कब तक इम्तहान कराएंगे? साफ है कि सबसे ज्यादा हिंदू बच्चों की मेहनत, हिंदू बच्चों के सपने खतरे में हैं, तभी तो सरकार कह रही है कि जो हुआ सो हुआ, हम अब इम्तहान दोबारा नहीं कराएंगे!

और नीट-नेट में मामूली खाते-पीते घर के बच्चों के सपने खतरे में हैं, तो अग्निवीर में उनसे भी गरीब ग्रामीण परिवारों के बच्चों के सपने। सपने, इस बेरोजगारी के जमाने में भी, टिकाऊ तरीके से अपने घर-परिवार की मदद करने के और देश के रक्षक बनकर, इज्जत की रोटी कमाने के सपने। ज्यादा तो हिंदू ही हैं, जिनके सपने अग्निवीर के नाम पर दु:स्वप्न में बदले जा रहे हैं। हिंदू खतरे में हैं ; शहादत में इज्जत तक नहीं पाने के खतरे में।

जाहिर है कि भूख में, महंगाई में, बेरोजगारी, हारी-बीमारी में, गरीबी से भी, सबसे ज्यादा हिंदू ही खतरे में हैं। बेचारे मोदी जी भी क्या करें। हिंदू हैं ही इतने ज्यादा कि खतरा कोई भी हो, कैसा भी हो, सबसे पहले, सबसे ज्यादा हिंदू ही खतरे में आ जाते हैं। और तो और, इसी चक्कर में बेचारे मोदी जी का चार सौ पार का सपना तक खतरे में आ गया, बल्कि टूट ही गया। बेकारी, महंगाई वगैरह के  और संविधान, जनतंत्र वगैरह पर खतरे से हिंदू ऐसे डरे, ऐसे डरे कि फिर मोदी जी मटन, मुगल, मंगलसूत्र, मुजरा वगैरह का खतरा दिखाते ही रह गए, पर हिंदू उनके मन-मुताबिक नहीं डरे, तो नहीं ही डरे। उल्टे मोदी जी को ही डरा दिया, बनारस में भी और बाकी देश भर में भी। वह तो नीतीश-नायडू की बैसाखियां काम आ गयीं, वर्ना गंगा मैया का दत्तक पुत्र –जाहिर है कि हिंदू– इस बार तो खतरे में पड़ ही गया था। 

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