एक पत्रकार जब कलम उठाता है तो बहुत से विचारों से निकलता हुआ उसका मन उनसे भर जाता है और फिर जाकर के किसी भाव को व्यक्त करने के लिए वो शब्दरूपी सागर में गोते लगा कर कीमती शब्दों का निर्माण करता है जो वाक्य बनते हैं I किसी भी स्थिति को दर्शाने के लिए पत्रकार वाक्यों का निर्माण करता है जिनसे वो सभी पाठकों को उचित शब्दों से अपनी बात को रख सके।
वैसे तो सबका अपना अपना स्वाद है। अपनी अपनी सोच है। वही पत्रकार घटिया है जो आपके विचारों के अनुसार ना बोले कांग्रेस समर्थकों के लिये कुछ पत्रकार हिन्दू मानसिकता के है और बीजेपी वालों के लिये कुछ सच दिखने वाले घटिया है। कुछ समय पहले तक पत्रकार सूचना ढूंढते थे और उसे बिना लाग लपेट के जनता तक पहुंचाते थे, लेकिन अब सब अपना अपना एजेंडा चलाते हैं, देश की राजनिती को बदलने का प्रयास करते हैं। इस स्थिति में कोई भी पत्रकार को बढ़िया अथवा घटिया का लेबल नही दिया जा सकता, क्योंकि वो पत्रकारिता करते ही नही हैं, वो तो व्यापार करते हैं?
अच्छा पत्रकार अपने आसपास की वर्तमान सामाजिक परिदृश्यों को साहित्यिक भाषा में किस प्रकार कुछ व्यंग्यो के साथ प्रस्तुत करना है यह भली भांति समझता है और अपने लेख में रोचकता का समावेश करना कभी नहीं भूलता। एक कुशल पत्रकार की भाषा पर पकड़ अच्छी हो ती है। वैसे तो मैं भी पत्रकार हूँ परन्तु कुशल बनने का प्रयास आज भी जारी है?
अगर आप आज के दौर में ईमानदार ढूढ़ने निकले हैं और वो भी पत्रकारों की जमात में यह आपकी ज्यादती है । भारत के अधिकाँश मीडिया समूह.विदेशी संस्थाओं से चलाये जाते हैं। ढेर सारे तो सीधे विदेशी धार्मिक संस्थाओं और छद्म सामाजिक संगठनों से संचालित हैं। विदेशी धन से चलने वाले है। पत्रकार अपना एजेंडा अपने स्वामियों के सुविधा के अनुसार तय करते हैं। सरकारों की तारीफ करना, सरकारों की बुराई करना, कम्पनियों के व्यवसायिक हितों को प्रभावित करने जैसे कार्य इन मीडिया हाउसों द्वारा किया जाता है। पूरे भारत के राजनैतिक विमर्श की रूपरेखा लुटियंस मीडिया के 500 पत्रकार तय करते हैं। गरीबी के एजेंडे को उभारते ये पत्रकार सैकड़ों करोड़ के मालिक हैं और करोड़ों के मासिक वेतन पर काम करते हैं।
विदेशी हाथों में खेलते सभी डिजाइनर पत्रकार एक एनजीओ के घटक के रूप में कर रहे हैं। इसमें से अधिकतर वामपंथी संगठनों से जुड़े हैं। अब स्वेदशी दक्षिणपंथी मीडिया हाउस भी इस दौड़ में विपक्ष की भूमिका में हैं। इसका इलाज आसान है । अमेरिका की तरह मीडिया हाउसों को विदेशी संगठनों द्वारा चलाने की अनुमति तत्काल हटा लेनी चाहिए। इस माहौल में आप ईमानदार पत्रकार ढूढ़ने निकले हैं। तो आपके हाथ इक्का दुक्का ही लगेंगे जो इस व्यवसायक परिवेश से दूर फटेहाल मिलगे।
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