दाढ़ी सफेद देख कर लोग अब मुझे बुढ़ा समझने लगे है अरे जनाब ये मेहनत और तजुर्बे की सफेदी है अभी तो अपनी उम्र जवान हुई है । कम उम्र में तजुर्बा ढेर सारा औऱ ठोकरे बहौत खाई है इस लिए आपकी नज़र में हम बूढ़े हो गए है।
किसी की हालत और कपड़ो से उसकी पहचान करना छोड़ दो यहाँ फ़क़ीर भी किराये की बीएमडब्लू से घूमता है और ज़मीदार फाटे हाल धोती कुर्ते में ।
सरकारी कुर्सी पर बैठ सूट बूट वाला कमीशन की भीख मांगता है । और उसी दफ्तर में पानी पिलाने वाला चपरासी करोड़ पति होता है । मंत्रियों के दरबार मे तलवे घिसने वाला बंगले में ऐश करता है । और दिन भर भटक कर सयम को कलम रगड़ कर खबर लिखने वाला फाटे हाल है ।
तो वैसे आपको बात दु की में परसाई जी को अधिक पड़ता हूँ लेकिन फैज की एक कविता याद आयी जो शायद मेरे इस बुढ़ापे की कहानी आपको महसूस करा दे ?
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