कोरोना दूसरी लहर ने भारत में आम जनजीवन को तो प्रभावित किया ही है, अर्थव्यवस्था की भी चूलें हिला दी हैं. हालत ये हो गई है कि कभी भविष्य की सुपरपावर कहे जाने वाले देश के बारे में अब निवेश ग्रेड को लेकर सोचा जा रहा है. पिछले साल भारत की क्रेडिट रेटिंग्स में एक के बाद कई कटौतियां की गईं थीं जिसके बाद 'निवेश ग्रेड' का उसका दर्जा बामुश्किल ही बचा हुआ है. और अप्रैल से जारी दूसरी कोविड लहर के बाद तो एसएंडपी, मूडीज और फिच जैसी एजेंसियां काफी चिंतित हैं. ये एजेंसियां भारत की भविष्य की विकास दर में या तो कटौती कर चुकी हैं या करने की चेतावनी दे चुकी हैं. ये पूर्वानुमान भी जाहिर किया गया है कि सरकार पर कर्ज इस साल जीडीपी का 90 फीसदी पहुंच सकता है, जो एक रिकॉर्ड होगा. ऐसा हुआ तो भारत एक अपवाद होगा. जो देश फिच की बीबीबी श्रेणी में हैं, उन पर औसत कर्जा 55 फीसदी है. भारत भी अब तक इसी श्रेणी में है. लेकिन जिन देशों को सबसे निचली श्रेणी 'जंक' में रखा गया है, उनका औसत भी 70 फीसदी है. वैसे तो कोविड-19 के कारण हर देश कर्ज के बोझ तले दबता जा रहा है, इसलिए रेटिंग देने वाली कंपनियों का कहना है कि वे दर्जा कम करने का फैसला मौजूदा लहर के बीत जाने के बाद ही करेंगी. लेकिन बॉन्ड आदि में निवेश करने वाले निवेशक फैसले करने लगे हैं. एनएन इन्वेस्टमेंट पार्टनर्स के एशियन डेट प्रमुख योएप हुन्त्येन्स मानते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था जल्द वापसी करेगी. वह कहते हैं, "हम अब भी भारत को निवेश ग्रेड ही मानते हैं. लेकिन इसके 50-50 चांस हैं कि कोई एक एजेंसी भारत की रेटिंग कम करेगी, संभवतया अगले साल तक." एक और लॉकडाउन का डर भारत में एक और लॉकडाउन की मांग बढ़ती जा रही है ताकि नए वायरस को फैलने से रोका जा सके. इस कारण काफी लोग चिंतित हैं. जैसे कि जेपी मॉर्गन का कहना है कि रेटिंग एजेंसियां उम्मीद पर ही चल रही हैं और खतरा मोल ले रही हैं. एम एंड जी के एल्डार वाखितोव कहते हैं कि उनकी कंपनी के मॉडल काफी समय से रेटिंग में कटौती के संकेत दे रहे हैं. यूबीएस कहता है कि ब्राजील और अर्जेंटीना के बाद भारत जल्दी ही दुनिया का तीसरा सबसे कर्जदार देश हो जाएगा. ब्राजील और अर्जेंटीना, दोनों की रेटिंग 'जंक' है. यूबीएस के विश्लेषकों का अनुमान है कि भारत को अपना कर्जा कम करने और स्थिरता लाने के लिए सालाना कम से कम दस फीसदी की दर से बढ़ने की जरूरत है. 1988 से यह दस फीसदी तो क्या उसके आस-पास भी नहीं रहा है. पिछले साल पूर्ण लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था को पहली तिमाही में 24 प्रतिशत सिकोड़ दिया था. मूडीज ने पिछले हफ्ते अनुमान जताया कि दीर्घकाल में भारत की विकास दर 6 प्रतिशत रह सकती है. यूबीएस के नए बाजारों के लिए रणनीति बनाने वाले विभाग के प्रमुख माणिक नारायण कहते हैं, "हमें रेटिंग में कटौती के खतरे का पता है. ऐस बिल्कुल हो सकता है. लगता है कि यह 'यदि नहीं कब' का मामला है." रेटिंग घटी तो क्या होगा? भारत के वित्त मंत्रालय और केंद्रीय बैंक दोनों ने ही इस बारे में पूछे गए सवालों के जवाब नहीं दिए. लेकिन ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका का अनुभव बताता है कि यदि भारत की रेटिंग कम होती है तो समस्याओं का जंजाल उसे घेर सकता है. 'जंक' रेटिंग वाले देशों के बॉन्ड और कंपनियों को कुछ विशेष माने जाने वाले इंडेक्स में शामिल नहीं किए जाते. यानी कई निवेशक अपना पैसा निकाल लेते हैं और हालात और ज्यादा गंभीर हो जाते हैं. एनएन के हुन्त्येन्स मानते हैं कि भारत की रेटिंग कम हुई तो 90 प्रतिशत कंपनियां प्रभावित हो सकती हैं और हो सकता है कि रिलायंस जैसे विशालकाय कंपनियां बच जाएं लेकिन भारी मात्रा में बिक्री देखने को मिल सकती है.
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