संक्रमण की ताजा लहर के बीच ऑक्सीजन की इतनी कमी हो गई है कि अस्पतालों को अदालतों के दरवाजे खटखटाने पड़ रहे हैं. जानिए आखिर क्यों कई राज्यों में ऑक्सीजन की कमी देखने को मिल रही है. चाहे भीख मांगिए, उधार लीजिए या चोरी कीजिए, आपको ऑक्सीजन का इंतजाम करना ही पड़ेगा." यह शब्द हैं दिल्ली हाई कोर्ट के दो जजों की एक पीठ के जो इस समय कई अस्पतालों द्वारा ऑक्सीजन की आपूर्ति सुनिश्चित करवाने के लिए दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई कर रही है. याचिका मैक्स समूह ने दायर की है जिसके दिल्ली में कई निजी अस्पताल हैं. समूह का दावा है कि उसके सभी अस्पतालों में कई मरीज ऑक्सीजन पर निर्भर हैं लेकिन उन्हें उपलब्ध कराने के लिए खुद अस्पतालों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पा रही है. मैक्स समूह इस हाल में अकेला नहीं है. दिल्ली के लगभग सभी छोटे बड़े अस्पतालों में ऑक्सीजन की भारी कमी हो गई है. 20 अप्रैल को दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने जानकारी दी थी कि राजधानी के कम से कम 18 अस्पतालों में सिर्फ 8 से 12 घंटों के लिए ऑक्सीजन उपलब्ध है. इनमें मैक्स और सर गंगाराम जैसे बड़े अस्पताल शामिल थे. कई अस्पतालों ने पुलिस को सूचना दी और फिर पुलिस ने किसी तरह उन तक ऑक्सीजन पहुंचाया. कुछ ऐसे भी अस्पताल थे जिन्हें किसी भी तरह की मदद नहीं मिल पा रही थी, तो उन्हें मजबूर हो कर सोशल मीडिया का सहारा लेना पड़ा. मामला जब अदालत में पहुंचा तो जजों ने ऑक्सीजन के इस संकट पर बहुत ताज्जुब व्यक्त किया और केंद्र सरकार को कहा कि वो स्थिति को सुधारने के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं कर रही है. अदालत की फटकार के फलस्वरूप केंद्र ने तात्कालिक रूप से दिल्ली को मिलने वाली ऑक्सीजन का कोटा बढ़ा दिया है. लेकिन संकट अभी टला नहीं है. भारत में कितनी ऑक्सीजन की जरूरत है? कुछ आंकड़ों के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी के फैलने से पहले भारत में प्रतिदिन 700 टन ऑक्सीजन की जरूरत थी, लेकिन महामारी के दौरान 2020 में इसकी मांग चार गुना बढ़ कर प्रतिदिन 2800 टन पर पहुंच गई. इस समय देश में महामारी पहले से भी ज्यादा तेजी से फैल रही है और अनुमान है कि इस समय देश में प्रतिदिन 5,000 टन ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है. महामारी से पहले 70 प्रतिशत ऑक्सीजन का इस्तेमाल अलग अलग उद्योगों में होता था, लेकिन अब सरकार ने सिर्फ 9 आवश्यक उद्योगों को छोड़ कर बाकी सब को ऑक्सीजन की आपूर्ति रोक कर उसे अस्पतालों के लिए उपलब्ध कराने का आदेश दिया है. अनुमान है कि अब सिर्फ 15 प्रतिशत ऑक्सीजन उद्योगों को दी जा रही है. कैसे होता है ऑक्सीजन का वितरण? चिकित्सा के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ऑक्सीजन भारत में कोई नियंत्रित उत्पाद नहीं है. बस इसका दाम राष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल्स प्राधिकरण (एनपीपीए) तय करता है. हालांकि इस समय महामारी से जन्मे हालत को देखते हुए इसकी आपूर्ति केंद्र ने अपने हाथों में ली हुई है. केंद्र सरकार का एक सशक्त समूह इसकी निगरानी करता है, जिसके अध्यक्ष हैं केंद्र सरकार के उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीआईपीपी) के सचिव. राज्यों का कोटा यही समिति निर्धारित करती है. समिति में राज्यों के प्रतिनिधि भी हैं और साथ में और भी कुछ मंत्रालयों और ऑक्सीजन बनाने वाली सभी बड़ी कंपनियों के नुमाइंदे भी हैं. क्या देश में ऑक्सीजन की आपूर्ति की कमी है? कुछ रिपोर्टों के अनुसार, देश में इस समय प्रतिदिन 7,000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन हो रहा है, जबकि मांग सिर्फ करीब 5,000 टन की है. इस लिहाज से देश में असल में आवश्यकता से ज्यादा ऑक्सीजन उपलब्ध है. जानकारों का कहना है कि संकट उपलब्धता का नहीं, ऑक्सीजन को जगह जगह पहुंचाने का है. सभी राज्यों में ऑक्सीजन बनाने के संयंत्र नहीं हैं इसलिए जहां इसका उत्पादन होता है वहां से यह उन राज्यों में पहुंचाई जाती है जहां इसका उत्पादन नहीं होता. जैसे महाराष्ट्र और गुजरात में सबसे ज्यादा ऑक्सीजन बनती है, लेकिन वहीं मध्य प्रदेश में ऑक्सीजन बनाने का एक भी संयंत्र नहीं है. महाराष्ट्र और गुजरात दोनों ही राज्य महामारी की शुरुआत से ही सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में से रहे हैं, इसलिए वो ज्यादा ऑक्सीजन दूसरे राज्यों को देने की स्थिति में नहीं हैं. जानकार कहते हैं कि आंध्र प्रदेश, ओडिशा और झारखंड जैसे प्रदेशों में अतिरिक्त ऑक्सीजन उपलब्ध है, लेकिन चुनौती इसे वहां से दूसरे राज्यों में पहुंचाने की है. इसके लिए रेलवे ने विशेष माल गाड़ियों पर लाद कर ऑक्सीजन के बड़े बड़े टैंकर एक जगह से दूसरी जगह ले जाने की शुरुआत की है. इसके अलावा 50,000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन आयात करने की भी तैयारी की जा रही है. लेकिन अब ऐसा लग रहा है कि राजनीति भी नई समस्याएं खड़ी कर रही है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार ने आरोप लगाया है कि उत्तर प्रदेश और हरियाणा में बीजेपी की सरकारें वहां के ऑक्सीजन संयंत्रों से ऑक्सीजन दिल्ली आने नहीं दे रही हैं. पड़ोसी राज्यों ने इन आरोपों से इंकार किया है.
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