Saturday ,12th October 2024

मणिपुर में चार दिनों से बंद हैं अखबार और टीवी चैनल

पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में अखबारों के दफ्तरों और पत्रकारों पर हमले की घटनाएं नई नहीं हैं. यह बात अलग है कि इन घटनाओं को मुख्यधारा की मीडिया में जगह नहीं मिल पाती. ताजा मामले में एक मीडिया हाउस पर बम से हमले के विरोध में संपादकों और पत्रकारों के धरने पर होने की वजह से बीते चार दिनों से राज्य में न तो कोई अखबार छपा है और न ही टीवी चैनलों पर खबरों का प्रसारण हो रहा है. मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने उक्त हमले की जांच चार-सदस्यीय विशेष कार्य बल (एसआईटी) को सौंपी है. लकिन इस मामले में अब तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सका है. इस बीच, मणिपुर राज्य मानवाधिकार आयोग ने राज्य सरकार से इस मामले में 25 फरवरी को रिपोर्ट मांगी है. आयोग ने मीडिया से भी अपना आंदोलन वापस लेने का अनुरोध किया है. एक महिला हमलावर ने रविवार को राजधानी इंफाल स्थित मणिपुरी भाषा के प्रमुख अखबार पोक्नाफाम के दफ्तर पर बम से हमला किया. उसने दफ्तर पर एक चीन-निर्मित ग्रेनेड फेंका लेकिन वह फटा नहीं. पुलिस का कहना है कि अगर वह ग्रेनेड फट गया होता को भारी तादाद में कर्मचारियों और वहां पहुंचने वाले लोगों की मौत हो सकती थी. अब तक किसी भी संगठन ने इसकी जिम्मेदारी नहीं ली है. पुलिस की जांच में भी कोई ठोस सुराग नहीं मिल सका है. सीसीटीवी फुटेज में एक मोटरसाइकिल सवार अकेली महिला को अखबार के दफ्तर के सामने रुक कर बम फेंकते हुए देखा गया है. "मीडिया पर एक कायराना हमला" पत्रकार संगठनों की अपील पर इस हमले के खिलाफ लामबंद होकर तमाम अखबार और संपादक हमलावरों की गिरफ्तारी की मांग में सोमवार से धरने पर बैठ गए. चौतरफा बढ़ते दबाव के बीच मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इस मामले की जांच एसटीएफ को सौंप दी है. मुख्यमंत्री ने विधानसभा में एक बयान में कहा, "यह मीडिया पर एक कायराना हमला था. मैं इसकी निंदा करता हूं. हमलावरों को शीघ्र गिरफ्तार कर लिया जाएगा.” उन्होंने मीडिया संगठनों से आम लोगों के हित में काम शुरू करने की अपील करते हुए अखबारों को सुरक्षा मुहैया कराने का भी भरोसा दिया है. वैसे, मणिपुर में पत्रकारों और अखबारों पर हमले की घटनाएं नई नहीं हैं. पहले भी इंफाल में कई अखबारों के दफ्तरों पर हमले हो चुके हैं और उनके खिलाफ संपादक व पत्रकार कई सप्ताह तक धरना भी दे चुके हैं. राजधानी से 32 अखबारों का प्रकाशन होता है जिनमें से ज्यादातर स्थानीय भाषा के हैं. इसके अलावा केबल टीवी के कई चैनलों का भी प्रसारण किया जाता है. इससे पहले बीते साल एक उग्रवादी संगठन की धमकी की वजह से राज्य में दो दिनों तक न तो कोई अखबार छपा और न ही टीवी चैनलों का प्रसारण हुआ. 25 और 26 नवंबर 2020 को कोई अखबार नहीं छपा. पत्रकारों ने इसके विरोध में मणिपुर प्रेस क्लब के सामने धरना भी दिया. वर्ष 2013 में जब कुछ संगठनों ने अपने बयानों को बिना किसी काट-छांट के छापने की धमकी दी थी, तो चार दिनों तक अखबारों का प्रकाशन बंद रहा था. उससे पहले 2010 में भी दस दिनों तक अखबार नहीं छपे थे. अब ताजा हमले के बाद ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट्स यूनियन और एडिटर्स गिल्ड ऑफ मणिपुर के बैनर तले संपादकों और पत्रकारों ने हमलावरों की गिरफ्तारी, पत्रकारों और मीडिया घरानों को सुरक्षा मुहैया कराने समेत कई मांगों के समर्थन में धरना शुरू किया है. इन संगठनों के एक साझा प्रतिनिधिमंडल ने अपनी मांगों के समर्थन में मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन भी सौंपा है. इस बीच, मणिपुर राज्य मानवाधिकार आयोग के कार्यवाहक अध्यक्ष खैदम मानी ने राज्य सरकार से इस मुद्दे पर 25 फरवरी तक रिपोर्ट देने को कहा है. उन्होंने मीडिया संगठनों से भी राज्य के आम लोगों के हित में काम शुरू करने की अपील की है. प्रदर्शनकारी संगठनों के एक प्रवक्ता ने कहा है कि ऑल मणिपुर वर्किंग जर्नलिस्ट्स और एडिटर्स गिल्ड ऑफ मणिपुर की साझा बैठक में आगे की रणनीति तय की जाएगी. मणिपुर में उग्रवादी संगठनों की धमकियों के बीच जान हथेली पर लेकर काम करना पत्रकारों की नियति बन गई है. इन संगठनों का इस कदर खौफ है कि कोई भी संपादक या पत्रकार किसी संगठन का नाम नहीं लेना चाहता. एक वरिष्ठ पत्रकार नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं, "राज्य में पत्रकार दुधारी तलवार पर चल रहे हैं. यहां कभी उग्रवादी संगठन हमें धमकियां देते हैं तो कभी राज्य सरकार.”

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