देश में पता नहीं कितने मर्द डिप्रेशन का शिकार है और पीड़ित भी क्योकि उनकी पत्नियों का दिमाग वाट्सअप और सोशल नेटवर्क ने हेग कर दिया है ?
एक मर्द के लिए डिप्रेशन का कारण सिर्फ एक औरत होती है आपसे कह दिया जाए कि आपका पति शायद मानसिक रूप से थोड़ा कमजोर है, बूढ़ा है शायद उसे कुछ चीजों से डर भी लगता है, शायद उसे डिप्रेशन है, तो आप यह बात कैसे मान लेंगे?
कोरोना काल ने देशों की अर्थव्यवस्था को भले ही बिगाड़ हो लेकिन इस ने सब से बड़ा नुकसान उन घरो का भी किया है जहा कभी सुकून से लोग रहते थे ये हाल मीडिया कर्मियों के घरो के भी है जो लॉक डाउन में दिन रात अपनी खबरों में अख़बार और चेंनल को फायदा पहोचने लगे हुआ थे . न्यूज चैनल हों या डिजिटल प्लैटफॉर्म, सबकी व्यूअरशिप बढ़ी है. जब लोग घर से नहीं निकले तो मनोरंजन का साधन सिर्फ टीवी और इंटरनेट ही एकमात्र जरिया था . न्यूज चैनल खास कर इस मनोरंजन में बड़ा योगदान दे रहे थे।
डिजिटल के आने के बाद से घरो के किस्से कहानिया और मिया बीबी के झगडे ,प्रेमी जोड़ो का बिछड़ना कई ऐसे अहम् मुद्दों पर डिजिटल ने लोगो के विचार बदल दिए है। खासकर अगर लॉक डाउन के किस्सों और डिजिटल की बात करू तो कई घरो के बुरे हाल है कई प्रेमियों की प्रेमिकाए उन्हें छोड़ कर चली गयी तो कई पत्नियों के अपने पतियों से तलाक तक का सफर सुरु हुआ।
डिजिटल के आने के बाद से गली के आवारा लड़के फेसबुक और वाट्सअप पर आपको छेड़ छाड़ और फ्लड करते दिख जायेगे और तो और कई घरो को तभा करने में भी इस चका चोंध डिजिटल का ही योग दान है। अब अगर किसी महिला का वट्सअप मित्र उसे वाट्सप पर या एफबी पर उसके पति को देख कर ये बोले की तुम इतनी खूब सूरत और तुम्हारा पति बुद्धा है तो महिला भी एक बार जरूर सोचने पर मजबूर हो जायगी या अगर कह दिया जाए कि आपका पति या बॉयफ्रेंड शायद मानसिक रूप से थोड़ा कमजोर है, शायद उसे कुछ चीजों से डर भी लगता है, शायद उसे डिप्रेशन है, तो आप यह बात कैसे मान लेंगे? अरे भई, वो आपके साथ इतने वक्त से है और आपकी हर मुश्किल में आपके साथ खड़ा हुआ है और आप एक झटके में उसे निचा दिखा कर चली जाती है ! जैसे "मर्द को दर्द नहीं होता" और उसे आप डिप्रेशन की और धकेल देती है . एक पुरुष अपने परिवार के लिए सुपरमैन जैसा होता है, वो कोई आम इंसान नहीं होता. डर तो उसे छू भी नहीं सकता. हां, वो बेचारा भोला भाला जरूर हो सकता है. इतना भोला कि किसी "चुड़ैल" के जाल में फंस जाए. भोली सूरत बना कर वो उस पर काला जादू कर दे. अब इसमें उस मर्द की क्या गलती है ?
व्हाट्सऐप ग्रुपों और सोशल मीडिया ने घरेलु महिला को जहा आत्मनिर्भर बनाया तो वही उन्हें बर्बाद भी किया इन सब से मुझे यही समझ आता है कि बतौर समाज हम यह मानने को तैयार ही नहीं हैं कि हमारे पति जो हमरे बच्चो के हीरो है उनको भी आपकी हरकतों से कभी डिप्रेशन भी हो सकता है. और इस यकीन की वजह भी आपका देर रात तक वाट्सअप पर ऑनलाइन रहना ही हैं. क्योंकि महिला कानून का सम्मन करने वाला पति अपनी इज़्ज़त को तर तर होते सिर्फ देख सकता है बोल कुछ नहीं सकता और एक "सीधी साधा पति " डिप्रेशन या किसी भी तरह के मानसिक रोग शिकार होता है एक पागल शख्स. पहले गांव में बिखरे हुए बाल और फटे हुए कपड़े पहने किसी लड़की को "पगली" बना कर दिखाया जाता था और अब सोशल नेटवर्क ने सब का दिमाग खरब कर के रख दिया है। और डिप्रेशन जैसे गंभीर मुद्दे को पेश किया है?
आंकड़ों के अनुसार भारत की करीब 6.5 फीसदी आबादी डिप्रेशन जैसे मानसिक रोगों की शिकार है. क्योंकि आम तौर पर भारत में डिप्रेशन पर बात ही नहीं होती है, तो इस आंकड़े पर बहुत भरोसा भी नहीं किया जा सकता. "सेक्स" और "डिप्रेशन" - ये दो ऐसे शब्द हैं जिनका इस्तेमाल भारतीय परिवारों में किया ही नहीं जाता. आप ऐसे कितने परिवारों को जानते हैं जहां किसी ने घर आकर अपने मां बाप से कहा हो कि मुझे डिप्रेशन है या फिर ऐसा कितनी बार हुआ कि खांसी, जुखाम, बुखार या डायबिटीज की तरह घरों में डिप्रेशन और उसके इलाज पर चर्चा चल रही हो?
ऐसे में कोई हैरत की बात तो नहीं अगर लॉकडाउन के बाद कई पत्नियों और बच्चो उनके पिता या पति के डिप्रेशन के बारे में ना पता हो. हंसते मुस्कुराते इंसान की वीडियो पोस्ट कर यह सवाल करना कि "इतना खुश इंसान डिप्रेस्ड कैसे हो सकता है", यही लोगों की समझ (या नासमझी) को दिखाता है. वैसे, दिल के मरीज को भी दिन रात दिल में दर्द नहीं होता. लेकिन जब होता है, तो वो उसकी जान ले सकता है. डिप्रेशन भी एक बीमारी है. बस, शारीरिक ना हो कर मानसिक है. लेकिन काम वो भी ऐसे ही करती है. पर खैर,
वो लोग , जो मेंटल हेल्थ को समझने के नाम पर अपनी कहानियां सुनाने में लगे हैं और दूसरों पर जहर उगल रहे हैं. अगर आपको सच में मेंटल हेल्थ की समझ होती, तो आप दूसरों को तनाव देने की जगह उसे कम करने पर काम करते. लेकिन, जनता को ऐसे लोग बहुत पसंद आ रहे हैं. जानते हैं क्यों? क्योंकि वाट्सअप और सोशल नेटवर्क साइडों ने अधिकतर महिला का दीमंग खरब कर दिया है और पुरुष बेचारा जीवन के अंतिम पढ़व से पहले मरा हुआ सा हो गया है ,
खुद को पत्रकार और इन्फ्लुएंसर कहने वाले इन लोगों के पास मौका है की महिला थानों में बैठकर सिर्फ ये देखे की कइने पुरुष इस पुरे लॉक डाउन के बाद पीड़ित है और डिप्रेशन का शिकार है जिनकी पत्निया कुछ ज्यादा जागरूक हुई है। साथ ही देश की जनता को डिप्रेशन और मेंटल हेल्थ के बारे में जागरूक करने का बीड़ा उठाये . लेकिन ऐसी रूखी सूखी खबरों में ना तो किसी को मजा आता और ना ही कमाई होती. एक दिन डिप्रेशन वाली कहानियां भी बिकेंगी. एक दिन "पुरुषो " की परिभाषा बदलेगी. वो परफेक्ट ना हो कर, आम इंसान होगा जिसकी अपनी कुछ समस्याएं भी होंगी. और ना तो वो हमें उन दिक्कतों के बारे में बताते हुए शरमाएगा और ना ही हम उसकी परेशानियों को सुनते हुए उसे जज करेंगे. पर ऐसे वक्त के लिए अभी शायद बहुत लंबा इंतजार करना होगा।
Comment Now