थर्ड जेंडर की भावनाओ का कांग्रेस ने किया स्वागत
लेख . राजेंद्र सिंह जादौन
देश के इतिहास में महाभारत के पात्र शिखंण्डी के बाद शबनम मौसी एक ऐसा नाम जिसे हिंदुस्तान भर में जाना जाता है क्योकि ये भारत की पहली किन्नर है जो विधायक बनी ! यह देश के कई चर्चित चेहरों में से एक हैंए इन्होंने सन 2000 में विधानसभा का चुनाव लड़कर और जीतकर इतिहास रच दिया था । लोग इनसे इतने प्रभावित हुए थे कि निर्देशक योगेश भारद्वाज ने किन्नरों की समस्या और शबनम मौसी के सफर पर एक फिल्म ही बना डाली।
सन 2005 में आई इस फिल्म में मुख्य भूमिका आशुतोष राणा ने निभाई थी। फिल्म की कहानी समाज में रह रहे लोगों की मानसिकता पर केंद्रित थीए कि किस तरह से लोग एक किन्नर को अपमानित करते हैं उसका तिरस्कार करते हैंए और बाद में वही लोग उसको अपना मुखिया चुनते हैं और सर.आंखों पर बिठा लेते हैं।
वैसे तो शबनम मौसी का नाम देश की पहली किन्नर विधायक के तौर पर इतिहास में दर्ज हो चुका हैए अब से 18 साल पहले पूरे भारत में उनके नाम की चर्चा थी। लेकिनए अब वो बिल्कुल अकेली और उदास हैं। ये अकेलापन और उदासी उनकी जिंदगी में पहली बार नहीं आई हैए बल्कि जिंदगी का हिस्सा रही है। महाराष्ट्र के एक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुईं शबनम मौसी के पिता आईपीएस अधिकारी थे। इसके बाद भी उन्हें आदिवासियों ने पालाए वो चाहती हैं कि अगले जन्म में वही आदिवासी उनके माता.पिता बनें। शबनम मौसी दूसरी दिशा में सिर घुमाकर कहती हैंए मैं अपने माता.पिता के बारे में कुछ नहीं जानतीए जब उन्होंने ही मुझे प्यार नहीं दिया तो हम उनके बारे में क्या सोचें और क्या जानें।
लेकिन एक बार फिर शबनम मौसी ने राजनिति में अपने कदम आगे बढ़ाये है और मध्यप्रदेश कांग्रेश में शामिल होने की मंशा ज़ाहिर की जिसे प्रदेश कांग्रेस ने इज्ज़त दी है और शबनम मौसी को सम्मान पूर्वक पार्टी में शामिल करने की बात कही है ण्ण्
अगर शबनम मौसी कांग्रेश में शामिल होती है तो कांग्रेश देश की पहली ऐसी पार्टी होंगी जो थर्ड जेंडर को उनका सम्मान देगी .....................
वेसे तो देश के किसी भी कानून में थर्ड जेंडर को शामिल करने के बारे में अभी तक सोचा नहीं गया है। न तो कोई ठोस कानून बनाने पर विचार किया गया और न ही किसी मौजूदा कानून में कोई संशोधन किया गया है। आपराधिक और दीवानी कानूनों में लिंग की दो ही श्रेणियोंए यानी पुरुष और महिला को मान्यता प्राप्त है।
थर्ड जेंडर के साथ हमारा रवैया इसी से साफ होता है। जहां तक भाषणए बहस वगैरह का सवाल हैए हम उबाल पर आ जाते हैं। सबके अधिकारों की वकालत करते हैं। लेकिन इस टोकनिज्म से आगे बढ़ते हुए कभी ष्इन अ सेट ऑफ रिलेशनशिप्सष् में उसे मंजूर नहीं करते। जाहिर सी बात हैए थर्ड जेंडर अब भी हमारे लिए एब्स्ट्रैक्ट से ज्यादा कुछ नहीं।
थर्ड जेंडर अपने यहां अछूत से कम नहीं। टॉलरेंस का यह लेवल हिजड़ों के मामले में कुछ ऊपर है। इसकी वजह भी है। सांस्कृतिक और पौराणिक रूप से उन्हें हमारे समाज और जीवन का हिस्सा माना जाता रहा है। रामायण में जिक्र है कि भगवान राम ने हिजड़ों को बच्चे के जन्म और विवाह जैसे मौकों पर आशीर्वाद देने की शक्ति दी थी। शिव का अर्धनारीश्वर रूप भी स्त्री और पुरुष का मेल है।
लेकिन बावजूद इन सबकेए उन्हें भी हमने हमेशा एकल रूप में देखा है। एक बुत की तरह उनकी जगह तय है। वे अपनी जगह से हिलकर अपनी बात कहेंगे तो तकलीफ होगी। वे कहेंगेए बच्चा गोद लेना है तो हम उन्हें गोद लेने का अधिकार नहीं देंगे। संपत्ति पर अधिकार मांगेंगे तो उत्तराधिकार कानून में उनके लिए जगह नहीं बनाएंगे। उनके शादी.ब्याह के बारे में तो कल्पना भी नहीं करेंगे। चूंकि हिजड़े भी किसी ष्सेट ऑफ रिलेशनशिप्सष् में फिट नहीं होते।
हलाकि शीर्ष अदालत ने 15 मईए 2014 के आदेश के जरिए फैसले में ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर के रूप में मान्यता दी थीण् साथ ही उन्हें नौकरियोंए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधा में पिछड़े वर्ग के रूप में आरक्षण दिया थाण् अदालत ने कहा था कि ट्रांसजेंडर को संविधान के तहत वे सारे अधिकार हैं जो आम नागरिक को हैंण् सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किन्नरों या थर्ड जेंडर की पहचान के लिए कोई कानून न होने की वजह से उनके साथ एजुकेशन या जॉब के सेक्टर में भेदभाव नहीं किया जा सकता। अब इस फैसले के 4 साल बाद थर्ड जेंडर को उनके असली अधिकार के लिए कांग्रेस ने पहल की और शबनम मौसी की इच्छा का स्वागत किया है पर देखना ये होगा की क्या ये भावना सफल होगी या तिरस्कार का शिकार होगी ..................
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