महिला दिवस विशेष
बुलंद हौसलों और अदम्य साहस से बनाई अपनी पहचान
नारी के कई रूप हैं, नारी जननी है ,मार्गदर्शिका है, बेटी है बहन, है प्रेमिका है, पत्नी है और सबसे बढ़कर एक बहुत प्यारी दोस्त भी है। प्रकृति की एक बेहद ही खूबसूरत रचना नारी के बारे में सदियों से बहुत कुछ लिखा जा चुका है। और भारत में तो नारी की पूजा भी होती है।
ये तब की बात है जब मै चपन में जब भी अपने गाव जाता तब बोझ उठाते देखता उन औरतों को जो सर पर पीतल की गघरी रख मेरे घर के सामने से निकला करतीं थीं और मेरी माँ को बड़ी बाई राम राम हो का हुंकारा भरती ण् घर के भीतर से मां सबकी आवाज़ पर जवाब दे पाती न दे पाती पर तय यही था कभी कभी कोई महिला अपने सरपर डबल डेकर का घड़ा लिए माँ से मिलने आजाती और हाल चाल जान कर रफू हो जाती
जब बड़ा और समझ दार हुआ तो देखा की सरकार और कई बड़ी संस्था हर साल महिला दिवस के नाम पर एक दिवस मानते है और खुद को समूचा उड़ेल देते हैंए नारों भाषणों सेमिनारों और आलेखों में। बड़े.बड़े दावे बड़ी.बड़ी बातें बड़ी.बड़ी कल्पनाएं। लेकिन इन बड़ी बातों के पीछे का यथार्थ इतना क्रूर कि एक कोई घटना तमाचे की तरह गाल पर पड़ती है और हम फिर बेबस असहाय अकिंचन से हो जाते हैं । वेसे तो महिला दिवस उन जुझारू और जीवट महिलाओं की स्मृति में मनाया जाने वाला दिन है जो काम के घंटे कम किए जाने के लिए संघर्ष करती हुई शहीद हो गई।
मुझे लगता है जब हम मिनिस्टश् होते हैं तब जोश और संकल्पों से लैस हो दुनिया को बदलने निकल पड़ते हैं। तब हमें नहीं दिखाई देती अपने ही आसपास की सिसकतींए सुबकतीं स्वयं को संभालतीं खामोश स्त्रियां। न जाने कितनी शोषित पीड़ित और व्यथित नारियां हैं जो मन की अथाह गहराइयों में दर्द के समुद्री शैवाल छुपाए हैं। कब.कबए कहां.कहां कैसे.कैसे छली और तली गई स्त्रियां। मन कर्म और वचन से प्रताड़ित नारियां। मानसिकए भावनात्मक और सामाजिक.असामाजिक कुरीतियों विकृतियों की शिकार महिलाएं। सामाजिक ढांचे में छटपटातींए कसमसातीं औरतए जिन्हें कोई देखना या सुनना पसंद नहीं करता। क्यों हम जागें किसी एक दिन। क्यों न जागें हर दिनए हर पल अपने आपके लिए।
मगर तब महिला दिवस किस द्धश् की तरह लगता है जब नन्ही.सुकोमल बच्चियां निम्न स्तरीर तरीके से छेड़छाड़ की शिकार होती हैं। शर्म आती है इस दिवस को मनाने से जब श्एक बेटी की चीख़ भी दरिन्दे मूह दबाकर रोक देते है और एक समय विशेष के बाद एक राजनीतिक चादर में गठरी बनाकर न जाने कौन से बगीचे के कोने में फेंक देते है। पहले उस राजनीतिक चादर की गठरी खोलनी होगीए जिसमें नारी जाति की अस्मिता टुकड़े करके रखी गई है। नन्ही बालिकाएं अभी समझ भी नहीं पाती हैं कि उनके साथ हुआ क्या है और शहर का मीडिया खबर के बहाने टीआरपी.और सर्कुलेश के लिए दौड़ पड़ता है। कितना गिर गए हैं हम और अभी कितना गिरने वाले हैं। रसातल में भी जगह बचेगी या नहीं एक अजीब.सा तर्क भी उछलता है कि महिलाएं स्वयं को परोसती हैं तब पुरुष उसे छलता है। या तब पुरुष गिरता है। सवाल यह है कि पुरुष का चरित्र इस समाज में इतना दुर्बल क्यों है स्त्री इस शरीर से परे भी कुछ हैए यह प्रमाणित करने की जरूरत क्यों पड़ती है वह पृथक है मगर इंसान भी तो है। उसकी इस पृथकता में ही उसकी विशिष्टता है। वह एक साथी सहचर सखीए सहगामी हो सकती है लेकिन क्या जरूरी है कि वह समाज के तयशुदा मापदंडों पर भी खरी उतरे
वैसे तो हमारे देश में होंनहार बेटियों की कमी नहीं पर आज आपके सामने प्रदेश की उस होनहार बेटियों का जिक्र कर रहा हू जिसने अपने दम पर अपनी पहचान बनाई है ना केवल सिन्धी समाज का गौरव बढ़ा रही है अपितु पत्रकारिता में अपना एक खासा मुकाम भी रखती है यह वो आम महिला हैं जिन्होंने अपने दम पर अपने ख्वाबों को पूरा किया और सिन्धी समाज को गौरवान्वित किया। जिनकी बात में कर राहू उनके बारे में पढ़कर आप सब की छाती भी चौड़ी हो जायेगी। आप भी गर्व से कहेंगे वाकई यह सिन्धी समाज की बेटी हैं जिसके आगे सिर नतमस्तक हो जाता है।
में बात कर रहा हू एक एसी महिला पत्रकार की जो मध्य प्रदेश की राजधानी के व्यापरिक नगरी बैरागढ़ में रहती है जब मेने उससे उसके इस संघर्ष के बारे में जानना चहा तो उसने कहा
हांए मैं नारी हूं। मां, पत्नी ,प्रेमिका ,मित्र ,बहू, बेटी, बहन ,ननद ,भाभी, देवरानी, जेठानी, चाची, ताई, मामी, बुआ मौसी ,दादी, नानी, बॉस, सहकर्मी अनंत सूची है। इन मीठे मोहक रिश्तों को अपने आंचल में बांधे मैं तलाशती हूं खुद को। मैं मिलती हूं खुद से। रिश्तों के इतने सुरीले.सुरम्य आंगन में खड़ी मैं बनाती हूं एक रिश्ता अपने आप से।
जी हांए मेरा एक रिश्ता और है और वह है मेरा मुझसे। खुद का खुद से। स्वयं का स्वयं से। अपना सबकुछ देने के बाद भी मैं बचा कर रखती हूं खुद को खुद के लिए। मैं नहीं भूलती उस खूबसूरत रिश्ते को जो मेरा मुझसे है। यह रिश्ता मुझसे मेरा परिचय करवाता है। यही रिश्ता कहता है मुझसे मुझमें ही झांकने के लिए। कितने मधुर सपने हैं मेरे भीतर जो साकार होने के लिए कसमसा रहे हैं। यह रिश्ता मुझे चुनौती देता हैए ऐसा क्या है जो मैं नहीं कर सकतीघ् फिर यही कहता है मुझसे.सब कुछ तो कर सकती हो तुम। यह रिश्ता मुझ पर मेरा विश्वास स्थापित करता है और मैं जीत जाती हूं दुनिया की हर जंग। मैं अपने आप से लड़ती भी हूंए मैं अपने आप से प्यार भी करती हूं। मैं अपने आप का सम्मान करती हूं। यही रिश्ता समझाता है मुझे. मेरे लिए मैं क्या हूं और मेरी जिंदगी के क्या मायने हैं। क्या आपका है अपने आपसे यह रूहानी रिश्ताघ् महिला दिवस पर बस यही कहना है ढेर सारे रिश्तों के बीच बनाएं एक गहराए नाजुकए मधुर और मजबूत रिश्ता अपने आप से
बैरागढ़ की इस महिला पत्रकार के ने इस व्यापरिक नगरी में अपनी एक अलग पहचान बनाई है अखबारों और टीवी चेंनलो पर रोज़ आप कई खबरों से रूबरू होते होंगे पर इस महिला पत्रकार ने इस छोटे से व्यापरिक शहर में खबरों के इस बाज़ार को चेलेंज के रुपमे लिए और खोजी पत्रकारिता को प्राथमिकता देते हुए कई एसी खबरे बहार निकली जो सोचना भी संभव नहीं है जिसके लिए कई बार धमकिया एनोटिस जैसे कई उतर चढाव से भी गुज़ारना पड़ा पर अंगद की तरह आपने पैर को जमाये बेठी ये महिला पत्रकार किसी भी चीज़ से नहीं डरी और खबरों के इस मैदान में लड़ाई छोटे.बड़े स्तर पर अब भी जारी है
संजना प्रियानी से जब इस बात पर चर्चा हुई तो उन्होंने कहा की वह एक आम नागरिक की तरह रहती है अपने बच्चो को स्कूल भेजने के बाद सुबह से उनकी ये जंग सुरु हो जाती है में संतनगर के लोगों और उनकी ज़िंदगी की जटिल सच्चाई और गहराई से समझ पाती हूं और उसे सच्चाई से लिख रही हू इसीलिए सत्ताधारी लोगों को डर लगा और भय लग रहा होगा इस लिए कई बार मुझे दबाने की कोशिस भी की जाती है मेने मजाक में संजना से कहा की महिला होते हुए इतने सरे रिस्तो में बंधी हो तो तुम पत्रकार हो ही नहीं सकती ये नामुमकिन है तो उसका ज़वाब था की इसी नामुमकिन को औरतें मुमकिन बताने में लगी हैं डर को समझकर उससे लड़कर और बेहतर समझ बनाकर वो कहती हैं मेरे लोगों के मुद्दों और सरोकारों को मैं कैसे छोड़ देती इसलिए डर को छोड़ दिया और सिन्धी भाषित लोगो के मुद्दों को अपना मुद्दा बना लिया
आज मेरा अपना एक मुकाम है मेरा अस्तित्व है अपनी एक अलग पहचान है जो पहचान मैंने स्वयं अपने बुलंद हौसलों और अदम्य साहस से बनाई है जब उन दिनों की कशमकश के बारे में सोचती हूँ तो लगता है कि कितने मानसिक दबाव और जद्दोजहाद के बीच मैंने अपने सपनों को जिंदा रखाण् दोस्तों और परिचितों के कितने उलाहने सुने पर अपना जुनून नहीं छोड़ाए अपना दृढ़ विश्वास नहीं टूटने दियाए लगनए कड़ी मेहनतए धैर्य लक्ष्य पर नजरए काम के प्रति ईमानदारीए और आत्मविश्वास के सहारे संघर्षरत रहीण् अकेली अपने ही दम पर ना भावनात्मक सहयोग न आर्थिक सहयोगण् लेकिन हाँ ताने व उलाहने जरूर सभी लोगों के साथ रहे खैर मेंरे लिए तो हर सजा वरदान है उसमें भी मैं कुदरत का शुक्र ही मनाती रही उसने मुझे जिंदगी के हर रंग से नवाजा है में आगे भी इस खबरों की जंग में डटी रहूँगी
मेरा उन सभी बहनों से ये कहना है की वे महिलाएं जो तमाम विषमताओं के बीच भी टूटती नहीं हैं रुकती नहीं हैं झुकती नहीं हैं। अपने.अपने मोर्चों पर डटी रहती हैं बिना थके। सम्माननीय है वह भारतीय नारी जो दुर्बलता की नहीं प्रखरता की प्रतीक है। जो दमित है प्रताड़ित है उन्हें दया या कृपा की जरूरत नहीं है बल्कि झिंझोड़ने और झकझोरने की आवश्यकता है। वे उठ खड़ी हों। चल पड़ें विजय अभियान पर। विजय इस समाज की कुरीतियों परए बंधनों पर और अवरोधों पर।
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