मध्यप्रदेश की पत्रकारिता में भी बसता है गुरु द्रोन का शिष्य अर्जुन
लेख - राजेंद्र सिंह जादौन
वैसे तो पत्रकारिता में कई गुणी जनो का सहयोग मुझे मिला और इसी लिए मेने भी ठान लिया की हम पत्रकार दिनभर बिना धुप ,बारिश ,ठण्ड देखे बस खबर के लिए निकल पड़ते है और खबर आप तक पहोचते है पर इन खबरों को आपतक लाने वाले मेरे वो मित्र किन किन कठिनाइयों से गुज़रे है वो भी आप जाने वैसे तो आज पत्रकारिता के लिए कई बड़े संस्थान है पर मुझे लगता है की कोई भी संस्थान किसी को पत्रकार नहीं बना सकता है। वो आप स्वयं ही बन सकते हैं, संस्थान आपको तराश कर. तीक्ष्ण और तीव्र जरुर बना देगा पर अगर आपको गुरु द्रोन मिले तो एक आध अर्जुन भी जरुर बनेंगे। इसी कड़ी में आपको उस एक अर्जुन से रूबरू करा रहा हूँ जिसका नाम है " अमिताभ अनुराग " जो इस वक्त इंडिया न्यूज़ मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ के राजनीति सम्पादक है।
अमिताभ अनुराग का पत्रकारिता को लेकर जो कहना है उसमे आप स्वतहि उनके अनुभव से उनके अर्जुन होने का अंदाज़ा लगा लेंगे हमारे देश में पत्रकार को समाज का चौथा स्तम्भ माना जाता है क्योंकि पत्रकार समाज की भलाई के लिए काम करता है। कभी-कभी तो सच्चाई उजागर करने के चक्कर मे पत्रकारों को बहुत सी यातनाएं झेलनी पड़ती है। आज से तीन-चार दशक पहले पत्रकारिता करना भी इतना आसान नहीं था क्योंकि पत्रकारिता को एक मिशन माना जाता था। जान जोखिम में डालकर भी पत्रकार अपना कृतव्य निभाता था। दूर-दराज के पत्रकारों को तो अपने समाचार पत्र के लिए डाक द्वारा समाचार भेजे जाते थे। जोकि तीन चार दिन तक तो कार्यालयों में पहुंचते थे उसके बाद संपादक महोदय देखते थे। अगर वह प्रकाशित होने के योग्य होते थे तो प्रकाशित हो जाते थे। जब समाचार प्रकाशित होकर पत्रकार के सामने समाचार पत्र होता था तो उसे बहुत तसल्ली मिलती थी। उस जमाने के पत्रकारों ने बहुत मेहनत की है लेकिन आज जमाना बदल गाया है न तो वह पत्रकार रहे न ही पत्रकारिता। क्योंकि पत्रकारिता को अब मिशन नहीं प्रोफेशन बना दिया है। पत्रकारिता की जगह अब चाटूकारिता ज्यादा होने लगी है। बहरहाल जिन लोगों ने तीन-चार दशक पहले अगर पत्रकारिता की है उनका अनुभव उनका कार्य सराहनीय रहा है। समाज की भलाई के लिए और सच्चाई उजागर करने के लिए पत्रकारों को कभी-कभी सरकार और प्रशासन से भी दो-दो हाथ करने पड़ जाते हैं लेकिन अपने कृतव्य में भी कभी पीछे नहीं हटते थे।
पत्रकारिता और प्रजातंत्र एक-दूसरे के पूरक हैं. प्रजातंत्र के बिना सच्ची पत्रकारिता का अस्तित्व नहीं है और स्वतंत्र पत्रकारिता के बिना प्रजातंत्र अधूरा है. आज़ादी की लड़ाई में शामिल स्वतंत्रता सेनानियों ने अ़खबार को हथियार बनाया था. यही वजह है कि भारत में सामाजिक और राजनीतिक दायित्वों का निर्वाह किए बिना पत्रकारिता करना स़िर्फ एक धोखा है. हर क़िस्म के शोषण के ़िखला़फ आवाज़ उठाना और प्रजातंत्र की रक्षा करना पत्रकारिता का पहला दायित्व है. जब इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई और प्रजातंत्र का गला घोंटा, तब हर पत्रकार का यह ़फर्ज़ था कि वह उस तानाशाही के ़िखला़फ आवाज़ उठाता, लेकिन कुछ लोगों ने इसका उल्टा किया.
आज हालत यह है कि सरकार के साथ-साथ मीडिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ रहे हैं. लोगों में यह धारणा बनती जा रही है कि मीडिया भी दलाल बन गया है. यह धारणा कुछ हद तक ग़लत भी नहीं है. जब देश के बड़े-बड़े संपादकों और पत्रकारों के काले कारनामों का खुलासा होता है तो अ़खबारों में छपी खबरों पर विश्वास करने वालों को सदमा पहुंचता है. नेताओं और अधिकारियों के भ्रष्टाचार से आज प्रजातंत्र खतरे में पड़ गया है, उसी तरह पत्रकारिता की विश्वसनीयता खत्म होने से प्रजातंत्र का बचना मुश्किल हो जाएगा. प्रजातंत्र को ज़िंदा रखने के लिए सामाजिक सरोकारों के साथ विश्वसनीय पत्रकारिता ही व़क्त की मांग है.
मनुष्य स्वभाव से ही जिज्ञासु होता है। उसे वह सब जानना अच्छा लगता है जो सार्वजनिक नहीं हो अथवा जिसे छिपाने की कोशिश की जा रही हो। मनुष्य यदि पत्रकार हो तो उसकी यही कोशिश रहती है कि वह ऐसी गूढ़ बातें या सच उजागर करे जो रहस्य की गहराइयों में कैद हो। सच की तह तक जाकर उसे सतह पर लाने या उजागर करने को ही हम अन्वेषी या खोजी पत्रकारिता कहते हैं।
खोजी पत्रकारिता एक तरह से जासूसी का ही दूसरा रूप है जिसमें जोखिम भी बहुत है। यह सामान्य पत्रकारिता से कई मायनों में अलग और आधिक श्रमसाध्य है। इसमें एक-एक तथ्य और कड़ियों को एक दूसरे से जोड़ना होता है तब कहीं जाकर वांछित लक्ष्य की प्राप्ति होती है। कई बार तो पत्रकारों द्वारा की गई कड़ी मेहनत और खोज को बीच में ही छोड़ देना पड़ता है, क्योंकि आगे के रास्ते बंद हो चुके होते हैं।
इंटरनेट और सूचना के आधिकार ने पत्रकारों और पत्रकारिता की धार को अत्यंत पैना बना दिया लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि पत्रकारिता की आड़ में इन हथियारों का इस्तेमाल ’ब्लैकमेलिंग' जैसे गलत उद्देश्य के लिए भी होने लगा है। समय-समय पर हुये कुछ ’स्टिंग ऑपरेशन' और कई बहुचर्चित सी. डी. कांड इसके उदाहरण हैं।
स्टिंग पत्रकारिता के संदर्भ में फोटो जर्नलिज्म या फोटो पत्रकारिता से जुड़े जासूसों जिन्हें 'पापारात्सी' (Paparazzi) कहते है समाज की बेहतरी और उसकी भलाई के लिए खोजी पत्रकारिता का एक आवश्यक अंग 'पापारात्सी' है, लेकिन इसे भी अपनी मर्यादाओ के घेरे में रहना चाहिए। खोजी पत्रकारिता साहसिक तक तो ठीक है, लेकिन इसका दुस्साहस न तो पत्रकारिता के हित में है और न ही समाज के।
पत्रकारिता यूं तो कहने के लिए बड़ा ही नोबल प्रोफेशन है, और कुछ हद तक यह सच भी है। यह एक ऐसा मंच है जहाँ से आप न सिर्फ अपनी बात बड़े पैमाने पर कह सकते हो, साथ ही साथ अपनी नज़र से लोगों को दुनिया के अलग-अलग रंग-रूप भी दिखा सकते हो। ये तो पत्रकारिता तक की बात थी, लेकिन एक सच्चे और अच्छे पत्रकार के जीवन में जब घुस कर देखिएगा तो वो बड़ा अजीब अनुभव देगा। उसका अपना जीवन ठीक उस दिये जैसा दिखेगा, जिसके कारण रौशनी तो होती है लेकिन उसके अपने चारों तरफ अँधेरा होता है।
इसलिए ऐसे साथी जिनके पास पत्रकारिता को लेकर एक स्पष्ट दूर दृष्टी नहीं हो वो इस पेशे में न ही आयें तो बेहतर होगा। पत्रकारिता का स्वरुप बदलते बदलते इतना बदल गया है कि कभी-कभी पत्रकार को एहसास होता है वो पत्रकारिता नहीं पी आर कर रहे हैं।
आजादी के बाद से तकनीक ने भी पत्रकारिता करने के ढंग को बदला। जब से टी वी की पत्रकारिता शुरू हुई तब से यह फील्ड ग्लैमरस होता गया, और खास तौर पर युवाओं को इसने अपनी ओर आकर्षित किया। अब पत्रकार बनने की जगह युवा एंकर बनने के सपने देखने लगे, और वही सपना लिए वो प्राइवेट मीडिया स्कूल की तरफ चले गए । वहां के शिक्षक जब उन्हें पत्रकारिता की हकीकत से रूबरू करते है तो जैसे उनके पेरो टेल ज़मीं खासक जाती है और उनके दिल को बड़ा धक्का लगा लगता है । उसके बाद जब पत्रकारिता की डिग्री लेकर बाहर निकलते है और एक इंटर्नशिप के लिए संघर्ष शुरु होता है तो बचा कूचा सपना भी हाथ से निकल जाता है।
आजादी के बाद देश में कितने नए समाचार पत्र आए और कितने न्यूज़ चैनल तो बदलते परिदृश्य का सही आंकलन सम्भव हो पायेगा। आज न्यूज़ चैनल की भूमिका दिन ब दिन बढ़ती जा रही है एक बार मेरे जानने वाले एक नेता जी से हमारी बात हो रही थी उन्होंने हमसे कहा कि आगामी विधानसभा चुनाव में टीवी चैनल का जो रवैया और असर रहा है। ऐसे में आगे आने वाले दिनों में सभी पार्टी इसमें बहुत पैसे लगाएगी। तो यह हो सकता है कि आने वाले दिनों में पत्रकारिता के क्षेत्र में जॉब तो बहुत हों, लेकिन एथिक्स को एक कोने में रखना पड़ सकता है। रही बात संगठन के अंदर के माहौल की तो निराश लोगों से मिलने पर निराशा हाथ आएगी, सफल लोगों से मिलने पर उर्जा और उत्साह।
वैसे अंत में एक बात और की ज्ञान और विचारों को समीक्षात्मक टिप्पणियों के साथ शब्द, ध्वनि तथा चित्रों के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाना ही पत्रकारिता है। यह वह विद्या है जिसमें सभी प्रकार के पत्रकारों के कार्यो, कर्तव्यों और लक्ष्यों का विवेचन होता है। पत्रकारिता समय के साथ समाज की दिग्दर्शिका और नियामिका है।
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