Thursday ,21st November 2024

जी हां, मै दुनिया भर का ठेका अपने सिर पर लेकर आपतक खबरे पहुंचाने वाला पत्रकार हूं...

जी हां, मै दुनिया भर का ठेका अपने सिर पर लेकर आपतक खबरे पहुंचाने वाला पत्रकार हूं...
 
लेख - राजेंद्र सिंह जादौन 
 
 पत्रकारिता और पत्रकार पर मेरी चर्चा मेरे पत्रकार मित्र " राकेश व्यास " से हुई राकेश एक सहज और सरल व्यक्तित्व के धनि व्यक्ति है पर जब मेरी चर्चा इस विषय पर गहराई में हुई तो " राकेश का एक जवाब कुछ यूँ था जो आपके सामने है जो उन्होंने आज की पत्रकारिता पर तंज कस्ते हुए आपने आपको पत्रकारी में आने के बाद कोसते हुए कहा। 
जी हां मै पत्रकार हूं... दुनिया भर का ठेका अपने सिर पर लेकर आपतक खबरे पहुंचाने वाला पत्रकार, दीवाली, होली और राखी जैसे त्योहारों पर घर ना जाकर खबरों में जूझते रहने वाला पत्रकार, जी हां मैं पत्रकार हूं, जी हां मै भोपाल  एक पत्रकार राकेश व्यास  हूं  ... जिसके  सच लिखने के कारण सरकार बोखला जाती है । अगर में कुछ अपने पेशे से जुड़े पत्रकारों की बात करू तो , कुछ यु होगा की मैं वो पत्रकार हूं जो अगर नेताओं की चापलूसी करे तो करोड़पति बन जाता है पर ईमानदारी से ये पत्रकार अपनी सैलरी से घर तक नहीं चला पाता। मैं पत्रकार हूं अगर सत्ता के साथ चलू तो राज्यसभा भेजा जाता हूं और विरोध में लिखूं तो जेल भेजा जाता हूं। मैं आज का वो पत्रकार हूं जिसे समय के साथ बदलना पड़ गया। मैं सिस्टम के डमरू पर नाचता पत्रकार हूं। मैं समय के साथ कलम का सौदा करता पत्रकार हूं। मैं चैनल को विज्ञापन के लिए कुर्सी के सामने नतमस्तक पत्रकार हूं। जी हां मैं आज का पत्रकार हूं। सत्ता में बैठे लोगों के हाथ का खिलौना पत्रकार। विरोध करुंगा तो मैं मार दिया जाऊंगा। ईमानदारी से काम करुंगा तो मौत हार्टअटैक या ब्रैन हेमरेज से हो जाएगी। इसलिए सत्ता के साथ साथ चलता है आज का पत्रकार, फिर भी कल उसकी नौकरी रहेगी या नहीं इसकी कोई गारंटी नहीं होती। पर फिर भी हां मैं पत्रकार हूं।
पत्रकारिता की पहुँच और आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का व्यापक इस्तेमाल आमतौर पर सामाजिक सरोकारों और भलाई से ही जुड़ा है, किंतु कभी कभार इसका दुरपयोग भी होने लगा है। और अगर आज की पत्रकारिता की बात करू तो संचार क्रांति तथा सूचना के आधिकार के अलावा आर्थिक उदारीकरण ने पत्रकारिता के चेहरे को पूरी तरह बदलकर रख दिया है। विज्ञापनों से होनेवाली अथाह कमाई ने पत्रकारिता को काफी हद्द तक व्यावसायिक बना दिया है। मीडिया का लक्ष्य आज आधिक से आधिक कमाई का हो चला है। मीडिया के इसी व्यावसायिक दृष्टिकोन का नतीजा है कि उसका ध्यान सामाजिक सरोकारों से कहीं भटक गया है। मुद्दों पर आधारित पत्रकारिता के बजाय आज इन्फोटेमेंट ही मीडिया की सुर्खियों में रहता है।
इंटरनेट की व्यापकता और उस तक सार्वजनिक पहुँच के कारण उसका दुष्प्रयोग भी होने लगा है। इंटरनेट के उपयोगकर्ता निजी भड़ास निकालने और अतंर्गततथा आपत्तिजनक प्रलाप करने के लिए इस उपयोगी साधन का गलत इस्तेमाल करने लगे हैं। यही कारण है कि यदा-कदा मीडिया के इन बहुपयोगी साधनों पर अंकुश लगाने की बहस भी छिड़ जाती है। गनीमत है कि यह बहस सुझावों और शिकायतों तक ही सीमित रहती है। उस पर अमल की नौबत नहीं आने पाती। लोकतंत्र के हित में यही है कि जहाँ तक हो सके पत्रकारिता हो स्वतंत्र और निर्बाध रहने दिया जाए, और पत्रकारिता का अपना हित इसमें है कि वह आभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उपयोग समाज और सामाजिक सरोकारोंके प्रति अपने दायित्वों के ईमानदार निवर्हन के लिए करती रहे।

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