नेता, बाबा, पंडे, साधु आदि मनुष्य की आत्मा तक का व्यापार कर रहे
कर्नाटक के भूतपूर्व भाजपायी मंत्री ने नोटबंदी के बावजूद अपनी बेटी की शादी में पांच सौ करोड़ रुपये खर्च किए. भ्रष्टाचार मुक्त भारत बनाने का ऐलान करने वाले प्रधानमंत्री जाने क्यों खामोश रहे. नेता ही क्यों उद्योगपति, अभिनेता और सरकारी अफसरों के यहां शादी ब्याह, बर्थ डे और अन्य मांगलिक तथा शोक के कार्यक्रमों में भी हजारों व्यक्तियों को न्यौता देने का चलन शबाब पर है. कई टन भोजन तक बरबाद किया जाता है. खाने की प्लेट में इतना जूठन छोड़ा जाता है जितने में कई भूखों का पेट भर जाए. बचा खुचा खाना अधिकतर फेंका जाता है या पशुओं को खिलाया जाता है.
यह सब चोचलेबाजी भ्रष्टाचार से कमाई गई रईसी के कारण होती है. भारत में कुपोशित बच्चों को दूध, प्रोटीन तत्व, कैल्शियम तो दूर दो वक्त पेट भर भोजन तक नहीं मिलता. स्कूली बच्चों के दोपहर के भोजन में कीड़े-मकोड़े, छिपकली और इल्लियां मिलने तक की शिकायतें आती रहती है. इन स्कूली बच्चों के दोपहर के भोजन के लिए दलिया और अन्य खादान्न का प्रदाय नेताओं के परिवारों के जरिए या उनकी सिफारिश पर होता है. प्रदाय की दरें भी बाजार से ड्योढ़ी होती हैं. मध्य प्रदेश में ही कई बच्चे मिड डे मील खाकर बीमार हो गए. किसी छोटे मोटे कर्मचारी को शायद कोई सजा हुई हो. बड़े तो सब बच निकले.
पुलिस के बड़े अफसर तक शराब ज्यादा पीते हैं या खाना ज्यादा खाते हैं. कई बार तय नहीं हो पाता. पुलिस और अर्ध सैनिक बलों में स्वास्थ्य अच्छा होना जरूरी होता है. सरकार यदि श्वेत पत्र प्रकाशित करे तो मालूम हो कि पुलिस विभाग के अधिकारियों के इलाज के लिए सरकार ने कितना पैसा खर्च किया. भारत में दो छोर हैं. जिन्हें अपनी कमाई के आधार पर भोजन नहीं मिलता वे भूखे हैं.
जिनके पास धन और साधन हैं उन्हें अपच और अजीर्ण की बीमारी है. ऐसे ऐसे दृश्य तस्वीरों, कार्टूनों, कहानियों, उपन्यासों और फिल्मों में आते हैं जिनमें भूखे प्यासे लोगों को देखकर संवेदनशील मनुष्य की आंत तक जुबान पर आने लगती है. सरकार का अनाप शनाप खर्च पार्टियों पर होता है. जिनकी कोई जरूरत नहीं होती. सरकारी पार्टियों के लिए जिन होटलों को आदेश दिया जाता है वे दुगने चैगुने दामों पर भोजन की व्यवस्था करते है.
जनता का धन जनता के खून पसीने और आंसुओं की तरह है. उसे बेदर्दी से नेताओं और नौकरशाहों द्वारा अय्याशी के नाबदान में बहाया जा रहा है. जो किसान अनाज पैदा करता है वही भूखा है. आढ़तिए, कोचिए और बिचैलिए ही तो राजनीतिक लोग हैं. देश के भूखे लोगों को इनसे कैसे बचाया जाए. भूख ने दुनिया में क्रांतियां भी की हैं. हिन्दुस्तान भी जनअसंतोष के मुहाने पर बैठा है. गांधी से लेकर जयप्रकाश तक ने कहा था कि आजादी की लड़ाई में लड़े तो गरीब. इसलिए हुकूमत भी उनकी होनी चाहिए. पता नहीं उनकी जबानों पर सरस्वती कब बैठेगी. भूखे लोगों को रेवड़ की तरह हकालकर धार्मिक नेता, बाबा, पंडे, साधु आदि मनुष्य की आत्मा तक का व्यापार कर रहे हैं. भूख की आग के दावानल में इतिहास खाक हो जाता है.
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