बलात्कार की वारदातों पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी का यह कहना कि मीडिया इस मामले को बेवजह तूल दे रहा है. उनके मुताबिक देश का मीडिया जिस तरह से बलात्कार के मामलों की जिस तरह की रिपोर्टिंग कर रहा है, उसकी वजह से ये बातें लोगों के ज़ेहन में बैठती जा रही हैं. दूसरे देशों में ऐसा नहीं होता. ऐसा लगता है कि बलात्कार की वारदातों के लिए मीडिया जिम्मेदार है और अगर वह रिपोर्टिंग न करे, तो बलात्कार बंद हो जाएंगे या उसमें कमी आ जाएगी. यह वही मेनका गांधी हैं जिन्होंने इससे पहले एक बार कहा था कि बलात्कार की वारदातों के लिए बॉलीवुड और क्षेत्रीय सिनेमा जिम्मेदार है जिसमें रोमांस की शुरुआत ही छेड़छाड़ से होती है. ये और इस तरह के बयान किसी अन्य के नहीं बल्कि एक केंद्रीय मंत्री होने के नाते सरकार के हैं. इसलिए इसे इस अर्थ में ही देखे जाने की जरूरत है. इसमें ऐसे अपराध को लेकर सरकार की समझ पर भी सवाल उठते हैं. सबसे पहला सवाल यही उठता है कि अगर मीड़िया और सिनेमा जिम्मेदार है, तो उस सख्त कानून के बारे में क्या राय है जो निर्भया कांड के बाद संसद ने आनन-फानन में बनाया था.
ध्यान देने की बात है कि इस समय जेवर में हुए सामूहिक बलात्कार कांड के बाद न केवल उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार बल्कि उसी के चलते केंद्र सरकार भी गंभीर आलोचनाओं को झेल रही है. इससे कुछ समय पहले ही एक अन्य भाजपा शासित राज्य हरियाणा में भी बलात्कार की वारदात के बाद वहां की सरकार निशाने पर रही थी. हरियाणा में तो छात्राओं ने अनशन तक किया था जिसकी वजह से सरकार को झुकना पड़ा था. उत्तर प्रदेश में बलात्कार की वारदात ने केंद्र सरकार को भी इसलिए कठघरे में खड़ा कर रखा है कि भाजपा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में भाजपा ने खराब कानून व्यवस्था के साथ बुलंदशहर सामूहिक बलात्कार कांड को भी मुद्दा बनाया था. अब जेवर में उसी तरह की जघन्य वारदात हो गई. अस्पताल में भर्ती अपने एक रिश्तेदार को मदद पहुंचाने जा रहे एक परिवार की गाड़ी को हाईवे पर रोककर महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और विरोध करने पर एक परिजन की गोली मारकर हत्या कर दी गई. आरोपी भी गिरफ्तार नहीं किए जा सके. अपराध की घटनाएं भी कम होने या रुकने के बजाय बढ़ती जा रही हैं. कानून व्यवस्था के मसले पर हालात कमोबेश उसी तरह के दिख रहे हैं जैसे पिछली सरकार में थे. विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसे बहुत मजबूती से उठाया था और कहा था कि राज्य में उनकी सरकार बनने पर अपराधियों पर पूर्ण अंकुश लगा दिया जाएगा. ऐसा न होने और उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था न संभलने को लेकर वहां की योगी सरकार विपक्ष के निशाने पर आ गई.
कहा जा रहा है कि योगी सरकार की सख्ती से बौखलाए अपराधी ऐसी वारदातें कर रहे हैं ताकि सरकार को कठघरे में खड़ा किया जा सके. यह भी कहा जा रहा है कि योगी सरकार ने तय कर रखा है कि अपराध पर सख्ती होगी और कोई अपराधी बच नहीं पाएगा, तो ऐसा ही होगा. अभी तो सरकार के कितने दिन हुए ही हैं. आने वाले समय में अपराधों और अपराधियों पर अंकुश लग जाएगा. इस सबके बावजूद कहीं न कहीं राज्य और केंद्र सरकार दोनों की काफी किरकिरी हो रही है. ऐसे में मुद्दे को शिफ्ट करने की कोशिश के रूप में ही मेनका गांधी के ताजा बयान को लिया जा सकता है. जहां तक मीडिया का सवाल है, यह तो तथ्यात्मक रूप से सही नहीं माना जा सकता कि विदेश का मीडिया बलात्कार की खबरों की रिपोर्टिंग या इस तरह की रिपोर्टिंग नहीं करता, जिस तरह भारत में किया जा रहा है. इसके अलावा, प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और कुछ हद तक सोशल मीडिया का काफी बड़ा हिस्सा इस समय कुछ ज्यादा ही सरकारी भोंपू बन गया है. सरकारी भोंपू कभी भी कुछ ऐसा दिखा अथवा पढ़ा नहीं सकता जो सरकार के विपरीत जा रहा हो. कुछ इसी तरह की स्थिति सिनेमा की भी कही जा सकती है.
भारतीय संस्कृति’ के पैमाने पर अश्लीलता और हिंसा पर जरूर बातें होती हैं. भारत में तो फिर भी फूलों को झुका और जोड़कर प्रेम के दृश्य फिल्माए गए हैं. दुनिया के सिनेमा खासकर पश्चिम का सिनेमा, जिसे ज्यादा खुला कहा जा सकता है, उसको लेकर भी इस तरह की बातें सामान्यता नहीं कही जातीं कि उसकी वजह से बलात्कार की वारदातें हो रही हैं. ऐसे में लगता है कि मीडिया और सिनेमा को जिम्मेदार ठहराकर कहीं न कहीं इसे सीमित करने की कोशिश है. अभी तक इसे अच्छा कहा जा सकता है कि मेनका गांधी ने गीत, संगीत, नृत्य और नाटक को जिम्मेदार नहीं ठहराया है. यद्यपि अन्य स्तरों पर यह भी किया जा रहा है. मोबाइल पर प्रतिबंध के रूप में इसे भी देखा जा सकता है. दरअसल, यह ऐसी सोच का प्रतिफल है जिसमें किसी भी तरह की रचनात्मकता को ही खत्म करने की साजिश की बू आती है. रचनात्मकता में थोड़े दिमाग की भी जरूरत होती है और दिमाग चलेगा तो कुछ नया भी करेगा. पोंगापंथ कुछ नया स्वीकार नहीं कर पाता.
इसीलिए बलात्कार के मूलभूत कारणों की खोज करने और उसका समाधान खोजने के बजाय मुद्दे को भटकाने की कोशिश कहीं ज्यादा नजर आती है. अन्यथा वह यह नहीं कहतीं कि वैवाहिक बलात्कार की अवधारणा भारतीय संदर्भ में लागू नहीं की जा सकती. निश्चित रूप से उन्होंने फिल्म ‘पिंक’ नहीं देखी होगी जिसमें कहा जाता है कि किसी लड़की के न कहने का मतलब न होता है. फिल्म ‘अनारकली आफ आरा’ में इसे और आगे बढ़ाया जाता है और यह भी जोड़ दिया जाता है कि न का मतलब न होता है, भले ही वह आपकी पत्नी क्यों न हो.आखिर मोहन भागवत भी तो कह चुके हैं कि बलात्कार सिर्फ इंडिया में होता है. भारत यानी गांवों में नहीं. शायद जेवर, बुलंदशहर या रोहतक गांव न हों.
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