Thursday ,21st November 2024

तीन तलाक खत्म होने से सब ठीक हो जाएगा?

भारत में कुछ मुस्लिम संगठनों को छोड़ दें तो हर तरफ तीन तलाक को खत्म करने की मांग उठ रही है. लेकिन सवाल यह है क्या सिर्फ तीन तलाक को खत्म कर देने से मुस्लिम महिलाओं सी समस्याएं खत्म हो जायेंगी?

महिलाओं अधिकारों के लिए काम करने वाली वकील फ्लाविया एग्नेस कहती हैं कि तीन तलाक पर प्रतिबंध लगाकर भी इस बात को सुनिश्चित नहीं किया जा सकता कि इसके बाद महिलाओं को उनके पति छोड़ें नहीं. वह महिलाओं को शिक्षित कर जागरुक और आर्थिक रूप से सक्षम बनाने पर जोर देती हैं.

हाल के समय में फोन, एसएमएस, व्हाट्सअप, स्काईप और अखबार में विज्ञापन देकर जिस तरह तलाक देने के मामले सामने आए हैं, उसने एक नई बहस को जन्म दिया. मामला देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंचा और सरकार ने तीन तलाक को खत्म करने पर जोर दिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कह चुके हैं कि तीन तलाक महिलाओं की जिंदगियों को बर्बाद कर रहा है. लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे संगठन इसे धार्मिक मामलों में दखलंदाजी बता रहे हैं. दुनिया के बहुत से मुस्लिम देशों में तीन तलाक पर प्रतिबंध है, लेकिन भारत में यह अब भी चलन में है.

महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले एक संगठन मजसिल की सह-संस्थापक और वकील फ्लाविया एग्नेस कहती हैं कि मौजूदा बहस का सारा फोकस तीन तलाक पर ही है, लेकिन असल में मुख्य मुद्दा यह है कि महिलाओं की मदद किस तरह की जाए ताकि उन्होंने अपने आर्थिक और कानूनी अधिकारों के बारे में जानकारी हो.

वह बताती हैं, "ज्यादातर मामलों में पतियों द्वारा छोड़ी गई मुस्लिम महिलाएं जब कोर्ट जाती हैं तो उन्हें अपने पति से गुजारा भत्ता चाहिए. फिर पति का वकील गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी से बचने के लिए तलाकनामा भेजता है."

एग्नेस कहती हैं कि एक झटके में तीन तलाक कह कर पत्नी से अलग होने की इस प्रथा पर रोक लगा दें तो भी इस बात की गारंटी नहीं दी सकती है कि कोई पुरुष अपनी पत्नी को छोड़ेगा नहीं, उसे वासप उसके माता-पिता के घर नहीं भेजेगा या फिर उसे मारना पीटना छोड़ देगा.

उनका कहना है कि मुसलमान महिलाओं में साक्षरता को बेहतर बनाने की जरूरत है. साथ ही उन्हें अपनी सुरक्षा से जुड़े कानूनों के बारे में जागरुक करना होगा. एग्नेस के मुताबिक इसी से वह अपने जिंदगी के लिए बेहतर फैसला कर पाएंगी.

तीन तलाक पर प्रतिबंध की लगातार मांग उठ रही है. लेकिन ऐसे कोई आंकड़े मौजूद नहीं है कि कितनी महिलाएं असल में इससे प्रभावित हुई हैं. आलोचकों का कहना है कि यह संख्या बहुत कम है. लेकिन तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाने वाले संगठनों में से एक भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन से जुड़ीं नूरजहां नियाज कहती हैं, "अगर एक महिला को भी इस तरीके से तलाक दिया जाता है, तो भी यह समस्या है." वह एक ऐसे मामले का जिक्र करती हैं जिसमें पति ने अपनी पत्नी को उस वक्त तलाक दे दिया जब वह सोयी हुई थी.

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