योग गुरू रामदेव अब देश का एक बड़ा चेहरा बन चुके हैं और पारंपरिक खाद्य पदार्थ और स्वास्थ्यवर्धक वस्तुओं को बनाने वाली उनकी कंपनी पतंजलि भी देश का बड़ा ब्रांड बन चुकी है. सत्ताधारी दल भाजपा के साथ उनकी नजदीकियां किसी से छिपी नहीं है. साल 2014 में आम चुनाव के दौरान भाजपा के लिये वोट जुटाने में रामदेव की भी अहम भूमिका थी, जिसके बदले भाजपा के बड़े नेताओं ने भारत पर रामदेव के दृष्टिकोण का खूब प्रचार भी किया. दृष्टिकोण, जो लोकलुभावन हिंदू प्रधानता के दावों से जुड़ा है और जिसमें प्राचीन महिमा के बखान के साथ विदेशी प्रभाव पर संदेह व्यक्त किया जाता है.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स का दावा है कि मोदी के सत्ता संभालने के बाद भूमि अधिग्रहण में रामदेव की कंपनी को अब तक करीब 4.6 करोड़ डॉलर की छूट प्राप्त हुई है. इतना ही नहीं, कहीं तो जमीन मुफ्त में दे दी गयी है. निकटता का आलम ये है कि योगगुरू की कंपनी को सरकार के एक मंत्रालय और पार्टी के कई नेताओं से प्रोत्साहन भी मिल रहा है. सरकार और पतंजलि की यह साझेदारी भारत में प्रभाव और धन के अंदरुनी कामकाज का खुलासा करती है.
रॉयटर्स ने उस "शपथ पत्र" की भी समीक्षा की है जिसका वीडियो रामदेव के एक ट्रस्ट ने यूट्यूब पर जारी किया था और जिस पर भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने दस्तखत किये हैं. इस वीडियो में हिंदू धर्म में पवित्र माने जाने वाली गाय की सुरक्षा, भारतीयों की जिंदगी में सुधार लाकर इसे और भी स्वदेशी बनाना और असली भारतीय जैसी कई बातें शामिल थीं. वीडियो में जिन नेताओं को दस्तखत करते हुये दिखाया गया है वे आज विदेश मंत्रालय, वित्त मंत्रालय, आंतरिक सुरक्षा और परिवहन आदि मंत्रालयों से जुड़े हैं. हालांकि जब इन मंत्रियों से इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
रामदेव का कारोबार भाजपा के सत्ता में आने के बाद से खूब फला-फूला है. वित्त वर्ष 2013 में कंपनी का उपभोक्ता वस्तुओं में राजस्व 15.6 करोड़ डॉलर था, जो साल 2015 तक 32.2 करोड़ डॉलर के आसपास पहुंच गया. कंपनी टूथपेस्ट से लेकर घी और दैनिक उपभोग की लगभग सभी वस्तुएं तैयार कर रही है. यहां तक कि अब इस कंपनी के चावल, बिस्कुट, और चटनी भारतीय सुरक्षा बलों की कैंटीनों में बेचे जा रहे हैं और कई बार ये ब्रांड संसद में भी नजर आते हैं. पतंजलि अपने उत्पादों को आयुर्वेद से जुड़ा कहता है. इसके विज्ञापनों में भी उपभोक्ताओं को देशभक्ति जैसे संदेश देते हुये विदेशी कंपनियों से दूरी बनाये रखने को कहा जाता है.
रामदेव प्रधानमंत्री मोदी को अपना करीबी दोस्त बताते आये हैं लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से इस विषय पर कोई टिप्पणी नहीं की गयी.
अधिकारियों के मुताबिक साल 2014 के बाद पतंजलि ने कारखानों, शोध केंद्र आदि के लिये लगभग 2,000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया. 100 एकड़ जमीन के जो चार अधिग्रहण किये गये इनमें से दो भाजपा सरकार वाले राज्यों में है. भाजपीनीतराज्यों में पतंजलि को जमीन पर बाजार कीमतों के मुकाबले 77 फीसदी की छूट दी गयी. महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में कंपनी को काफी छूट मिली. सबसे बड़ा लेन-देन साल 2014 के दौरान असम में 1,200 एकड़ अविकसित भूमि का था. सरकारी कागजातों के मुताबिक यह भूमि पतंजलि योगपीठ को नि:शुल्क इस शर्त के साथ दी गई है कि इसका इस्तेमाल गायों के संरक्षण को लिए किया जायेगा. पंतजलि योगपीठ, पंतजलि के प्रबंध निदेशक बालकृष्ण और रामदेव द्वारा नियंत्रित एक ट्रस्ट है. उत्तर प्रदेश में पतंजलि को साल 2016 में 300 एकड़ जमीन बाजार की कीमत से 25 फीसदी कम पर बेची गयी. पतंजलि का बाजार में बढ़ता दखल अब इसके विदेशी प्रतिद्वंदियों पर दबाव बना रहा है.
मोदी के सत्ता में आने के छह महीने के अंदर ही प्रशासन ने पारंपरिक भारतीय चिकित्सा विभाग को एक स्थायी मंत्रालय में बदल दिया. अन्य बातों के इतर यह मंत्रालय योग अभ्यास और आयुर्वेदिक उत्पादों के उपयोग के लिए समर्पित है और इसमें पतंजलि एक बड़ा ब्रांड है. इतना ही नहीं मंत्रालय पतंजलि के कई उत्पादों का नियमन भी करता है. साल 2015 में वित्त मंत्रालय ने योगा को "धर्मार्थ उद्देश्य" के रूप में परिभाषित किया, और इसे कर बोझ को कम करने से जोड़ा गया.
इन सारे तथ्यों से एक बात तो साफ है कि मोदी कार्यकाल में जिस तरह का लाभ पतंजलि को हुआ है वह शायद ही किसी अन्य कंपनी को हुआ हो.
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