निर्वाचन आयोग ने चुनाव प्रक्रिया में सुधार पर विचार करने के लिए एक सर्वदलीय बैठक बुलाई जिसमें सात राष्ट्रीय और 35 राज्य स्तर की मान्यताप्राप्त पार्टियों ने भाग लिया. कुलदीप कुमार का कहना है कि विश्वसनीयता दांव पर है.
इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन से संबंधित विवाद इस समय सबसे अधिक गरमाया हुआ है क्योंकि इसमें गड़बड़ी के आरोप एक नहीं बल्कि कई राजनीतिक पार्टियों की ओर से लगे हैं. हालांकि इस संबंध में आम आदमी पार्टी (आप) का नाम सबसे अधिक सुर्खियों में है. कुछ ही दिन पहले दिल्ली विधानसभा का एक विशेष सत्र इसीलिए बुलाया गया था ताकि उसमें आप के विधायक सौरभ भारद्वाज इस बात का प्रदर्शन कर सकें कि ईवीएम को कैसे हैक किया जा सकता है यानी उसमें किस तरह हेराफेरी की जा सकती है. उनके प्रदर्शन को निर्वाचन आयोग ने यह कह कर खारिज कर दिया था कि उन्होंने असली ईवीएम मशीन पर नहीं, उसके प्रोटोटाइप पर यह प्रदर्शन किया है और आयोग की मशीनें इस प्रकार की हैकिंग की किसी भी संभावना से मुक्त हैं.
लेकिन यह भी सही है कि आप नेता अरविंद केजरीवाल ही नहीं, बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती और एआईएडीएमके की महासचिव और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री स्वर्गीया जयललिता ने भी ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी होने के आरोप लगाए थे. सोलह राजनीतिक पार्टियों ने हाल ही में आयोग से निवेदन किया है कि वह मतपत्र वाली पुराने प्रणाली को बहाल कर दे क्योंकि ईवीएम में लोगों का भरोसा कम होता जा रहा है. लेकिन आयोग इस बात के लिए तो राजी हो गया है कि ईवीएम के साथ-साथ पर्ची निकालने की व्यवस्था भी की जाए. इस काम के लिए केंद्र सरकार ने धनराशि भी जारी कर दी है.
बैठक में आयोग ने राजनीतिक दलों में ईवीएम मशीन के लिए भरोसा पैदा करने की कोशिश की और विस्तारपूर्वक प्रदर्शित किया गया कि ईवीएम मशीनें किसी तरह से हैक-प्रूफ हैं और उनमें किसी भी तरह की गड़बड़ी नहीं की जा सकती. कुछ दिनों के बाद आयोग उन लोगों को अपना आरोप सिद्ध करने का मौका भी देगा जो यह कह रहे हैं कि इन मशीनों के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है. पंजाब अकाली दल के नेता मंजिन्दर सिंह सिरसा भी मानते हैं कि मशीनें ठीक हैं, लेकिन उन्हीं ने यह भी माना है कि 37 मशीनों के बारे में शिकायत होने के बाद 30 सही पायी गईं. यानी सात में कुछ गड़बड़ी थी. यदि यह सही है तो गड़बड़ी का प्रतिशत काफी ज्यादा है और इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती.
आरोपों-प्रत्यारोपों का सिलसिला तो चलता रहेगा लेकिन अब आयोग के लिए इस विवाद को केवल अपने दावों के आधार पर दबाना मुश्किल होगा. उसे इन मशीनों के बारे में प्रकट किये जा रहे संदेह को पूरी तरह से मिटाना होगा, वरना भारतीय चुनाव प्रणाली की साख पर आंच आने का खतरा है. पूरे विश्व की निगाह भारत में होने वाले चुनावों पर लगी रहती है और उनकी विश्वसनीयता को दांव पर नहीं लगाया जा सकता. ईवीएम मशीनों के अलावा भी अनेक ऐसे मुद्दे हैं जो बहुत महत्वपूर्ण हैं और जिन पर बैठक में चर्चा हो रही है. इनमें यह सवाल भी शामिल है कि क्या ऐसे उम्मीदवार को चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए जिसका नाम मतदातों को रिश्वत देने संबंधी आरोपपत्र में शामिल किया जा चुका हो? इसी के साथ यह मुद्दा भी जेरे-बहस है कि क्या चुनावों के दौरान मतदातों को रिश्वत देने के अपराध को गैर-जमानती अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिए ताकि आरोपी को जमानत पर छूटने की सुविधा न मिल सके? इसी के साथ इस प्रश्न पर भी विचार हो रहा है कि क्या पर्ची के आधार पर मतगणना के लिए आदेश जारी करने संबंधी नियमों में ढील दी जानी चाहिए?
भारत के निर्वाचन आयोग पर समय-समय पर आरोप लगते रहे हैं. किसी समय ऐसे आरोप लगाने वालों में भारतीय जनता पार्टी ही सबसे आगे हुआ करती थे. इसके बावजूद अभी तक उसकी निष्पक्षता और स्वतंत्रता अक्षुण्ण बनी रही है और उसकी विश्वसनीयता पर किसी को भी शंका नहीं है. दुनिया के अन्य देश भी भारत की चुनाव व्यवस्था की अक्सर तारीफ करते हैं. ऐसे में राजनीतिक दलों, निर्वाचन आयोग और केंद्र सरकार---सभी का यह दायित्व बनता है कि वे इस विश्वसनीयता को बरकरार रखने के लिए हर संभव प्रयास करें. यह बात अब सभी स्वीकार करने लगे हैं कि चुनाव सुधारों की जरूरत बढ़ती जा रही है. ऐसे में सभी पक्षों को अपेक्षित इच्छाशक्ति दिखानी होगी.
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