सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया कांड के दोषियों को दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा है. बलात्कार और बर्बर हत्या के इस मामले में दोषियों ने खुद को कसूरवार ठहराये जाने और सुनायी गयी सजा को अदालत में चुनौती दी थी. जस्टिस दीपक मिश्रा, आर भानुमती और अशोक भूषण को मिला कर बनी तीन जजों की बेंच ने 44 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद 27 मार्च को इस बारे में अपना फैसला सुरक्षित रखा लिया.शुक्रवार को अदालत ने दोषियों को दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा.
इस मामले में दोषी करार विनय शर्मा (23), अक्षय ठाकुर (31), मुकेश (29) और पवन गुप्ता को सितंबर 2013 में दिल्ली की एक ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी. 13 मार्च 2014 को दिल्ली हाई कोर्ट ने उन्हें दोषी करार देने और मौत की सजा सुनाये जाने के फैसले को बरकरार रखा. इसके बाद दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने 2014 में उनकी मौत की सजा पर रोक लगा दी. लेकिन अब देश की सबसे बड़ी अदालत ने उनकी सजा पर मुहर लगा दी है.
इस मामले के एक अभियुक्त राम सिंह ने 11 मार्च 2003 को दिल्ली की तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली थी जबकि एक अन्य अभियुक्त के खिलाफ जुवेनाइल बोर्ड में मुकदमा चला क्योंकि घटना के समय वह नाबालिग था. बोर्ड ने उसे सामूहिक बलात्कार और हत्या का दोषी पाया और उसे प्रोबेशन होम में तीन साल गुजारने को कहा गया.
यह मामला दिसंबर 2012 है जब एक मेडिकल छात्रा के साथ चलती बस में छह लोगों ने क्रूर तरीके से हिंसा और सामूहिक बलात्कार किया था. गंभीर रूप से घायल होने के कारण पीड़िता की मौत हो गई थी. देश ही नहीं दुनिया भर का ध्यान खींचने वाली इस घटना के बाद महिला सुरक्षा को और गंभीरता से लेने, मामले की त्वरित सुनवाई करने और कानूनों को सख्त बनाए जाने पर खासा ध्यान दिया गया. बावजूद इसके यौन अपराधों की खबरें लगातार सुर्खियां बनती हैं. भारत के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि 2015 में भारत में 34 हजार से ज्यादा बलात्कार हुए. महिला कार्यकर्ताओं का कहना है कि असल संख्या कहीं ज्यादा हो सकती है क्योंकि ऐसे बहुत से मामले पुलिस तक पहुंच ही नहीं पाते हैं.
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