देश में किसानों की आत्महत्याएं कितना संगीन मामला बन चुकी हैं, यह सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट को दिए गए आंकड़ों से साफ होता है. सरकार ने बताया है कि हर साल 12 हजार किसान आत्महत्या कर रहे हैं.
सरकार 2013 से किसानों की आत्महत्या के आंकड़े जमा कर रही है. इसके मुताबिक हर साल 12 हजार किसान अपनी जिंदगी खत्म कर रहे हैं. कर्ज में डूबे और खेती में हो रहे घाटे को किसान बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं.
सरकार के अनुसार 2015 में कृषि क्षेत्र से जुड़े कुल 12,602 लोगों ने आत्महत्या की. इनमें 8,007 किसान-उत्पादक थे जबकि 4,595 लोग कृषि संबंधी श्रमिक के तौर पर काम कर रहे थे. 2015 में भारत में कुल 1,33,623 आत्महत्याओं में से अपनी जान लेने वाले 9.4 प्रतिशत किसान थे.
2015 में सबसे ज्यादा 4,291 किसानों ने महाराष्ट्र में आत्महत्या की जबकि 1,569 आत्महत्याओं के साथ कर्नाटक इस मामले में दूसरे स्थान पर है. इसके बाद तेलंगाना (1400), मध्य प्रदेश (1,290), छत्तीसगढ़ (954), आंध्र प्रदेश (916) और तमिलनाडु (606) का स्थान आता है. 2014 में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 12,360 और 2013 में 11,772 थी.
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता में तीन जजों वाली एक बेंच किसानों की स्थिति और उसमें सुधार की कोशिशों से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई कर रही है. इसी के दौरान सरकार ने ये आंकड़े पेश किए हैं. यह याचिका सिटिजन रिसोर्स एंड एक्शन इनीशिएटिव की तरफ से दायर की गई है.
पिछले एक दशक के दौरान किसानों की आत्महत्या के हजारों मामले सामने आये हैं. अधिकतर किसानों ने कीटनाशक पीकर तो कुछ ने फांसी लगाकर अपनी जान दे दी. किसानों पर सबसे अधिक मार बेमौसम बारिश और सूखे से पड़ती है और कई बार दाम गिरने से भी इनकी कमाई पर असर पड़ता है.
किसानों की बदहाली की एक तस्वीर पिछले दिनों दिल्ली में भी दिखाई दी तमिलनाडु से आए किसानों ने अपने विरोध प्रदर्शन से तरीकों से सबका ध्यान खींचा.
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