सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस के मामले में भारतीय जनता पार्टी के लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती और कल्याण सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने का निर्देश दे दिया है. बाबरी मस्जिद को तोड़ने के मामले में एक मुकदमा अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ है और दूसरा भाजपा, शिव सेना और विश्व हिन्दू परिषद के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ है. अब इन दोनों मामलों की सुनवाई एक साथ लखनऊ में होगी और दो साल के भीतर पूरी की जाएगी.
इस मामले में सीबीआई आपराधिक साजिश के आरोप को बहाल करने के पक्ष में थी. यह सभी जानते हैं कि सीबीआई एक स्वायत्त जांच एजेंसी होने का दावा तो करती है लेकिन उसकी नकेल हमेशा केंद्र सरकार के हाथ में होती है. इसका अर्थ है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार सत्तारूढ़ पार्टी के वरिष्ठतम नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश का मुकदमा चलाने के खिलाफ नहीं है. इसका एक अर्थ यह भी है कि अब उन अनुमानों पर विराम लग जाएगा जो अगले राष्ट्रपति के लिए आडवाणी या मुरली मनोहर जोशी की उम्मीदवारी के बारे में लगाए जा रहे थे. इसके साथ ही मोदी को यह फैसला भी करना होगा कि क्या उमा भारती मुकदमे का सामना करते हुए केंद्रीय मंत्रिमंडल में रह सकती हैं और क्या कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल के पद पर बने रहेंगे?
आडवाणी और जोशी को यूं भी मार्गदर्शक मण्डल का सदस्य बनाकर पार्टी की रोजमर्रा की गतिविधियों और फैसलों से अलग-थलग कर दिया गया था ताकि भाजपा पूरी तरह से मोदी और उनके सबसे नजदीकी सहयोगी अमित शाह के कब्जे में आ जाए. और हुआ भी ऐसा ही. अब मोदी प्रधानमंत्री हैं और शाह पार्टी अध्यक्ष. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सिर्फ एक ही तात्कालिक असर पड़ेगा और वह है कि नरेंद्र मोदी को कुछ कड़े फैसले लेने होंगे और उमा भारती तथा कल्याण सिंह के भविष्य के बारे में तय करना होगा. जहां तक बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित मुकदमों का सवाल है, तो उनके चलने से मोदी और भाजपा को राजनीतिक रूप से फायदा ही होगा क्योंकि पिछले तीन सालों से वे विकास की बातें करने के बावजूद मुख्य रूप से हिन्दुत्व के एजेंडे पर ही अमल कर रहे हैं. पिछले कुछ समय से इस एजेंडे पर अमल करने में तेजी भी आई है और एंटी-रोमियो स्क्वाड, बीफविरोधी अभियान में उग्र गौरक्षक दलों द्वारा की जा रही हिंसक कार्रवाई तथा उत्तर प्रदेश में लाइसेन्स के बिना चल रहे निजी बूचड़खानों पर पाबंदी आदि के चलते इस एजेंडे को सुनियोजित रूप से आगे बढ़ाया जा रहा है. सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण का राजनीतिक और चुनावी लाभ हमेश भाजपा को ही मिलता आया है क्योंकि आत्मविश्वास की कमी से जूझ रही कांग्रेस और अन्य विरोधी पार्टियां सांप्रदायिकता विरोधी अभियान चलाने की हिम्मत नहीं जुटा पातीं क्योंकि उन्हें हिन्दू वोट के खो जाने का खतरा है. दिलचस्प बात यह है कि इसके बावजूद भी उन्हें हिन्दू वोट उस तरह से नहीं मिलता जिस तरह से वह भाजपा की झोली में जाता है.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अर्थ है कि इस मामले में अदालत का फैसला दो साल बाद यानी 2019 में आएगा. अधिक संभावना इसी बात की है कि फैसला लोकसभा चुनाव के आसपास ही आए. यदि फैसला आरोपी नेताओं के पक्ष में आया, तो भाजपा अपने पाक-साफ होने का दावा कर सकती है और कह सकती है कि उसके वरिष्ठतम नेताओं ने कानून का सम्मान किया, मुकदमों का सामना किया और इस अग्निपरीक्षा से वे बेदाग होकर बाहर निकले. यदि फैसला नेताओं के विरुद्ध आया, तो वह इन्हें रामजन्मभूमि मंदिर के ऊंचे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए शहीद होने वालों की तरह पेश कर सकती है. दोनों ही सूरतों में वह राम मंदिर के मुद्दे का चुनावी इस्तेमाल करने में सक्षम होगी. बाबरी मस्जिद को टूटे हुए इस वर्ष की 6 दिसंबर को चौथाई सदी बीत चुकी होगी. "सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे” का नारा लगाने वाली भाजपा को पिछले कई वर्षों में इस मुद्दे पर अपने समर्थकों और आलोचकों, दोनों की ओर से मखौल और आलोचना का सामना करना पड़ रहा था और सभी को यह लग रहा था कि इस मुद्दे का भरपूर राजनीतिक इस्तेमाल करने के बाद भाजपा ने इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया है. लेकिन अब आपराधिक साजिश के मुकदमे के दुबारा शुरू होने के कारण उसे इसे फिर से गरमाने का मौका मिल जाएगा. उसे ऐसे ही मौके की तलाश भी थी.
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