सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को दिए अपने नोटिस में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को श्याम बेनेगल समिति की सिफारिशों को लागू करने का निर्देश देने के लिए कहा है. अपनी याचिका में पालेकर ने कहा कि सीबीएफसी (सेंसर बोर्ड) के पास कानूनी पृष्ठभूमि से जुड़ा कोई व्यक्ति नहीं है लेकिन बोर्ड लगातार फिल्म निर्माताओं के अभिव्यक्ति से जुड़े मौलिक अधिकार के उल्लंघन का निर्देश दे रहा है. पालेकर ने सिनेमेटोग्राफी अधिनियम 1952 और सिनेमेटोग्राफ (सर्टिफिकेशन) नियम, 1983 के प्रावधानों को चुनौती देते हुये कहा कि इंटरनेट युग में फिल्मों की प्री-सेंसरशिप करना बेतुका है. पालेकर के मुताबिक "आज इंटरनेट और सोशल मीडिया के प्रभाव को देखते हुए ऐसे नियमों में बदलाव की जरूरत है. जब टीवी और इंटरनेट पर परोसा जाने वाला कंटेट सेंसरशिप (नियमन) के दायरे से मुक्त है तो सिनेमा हाल के लिए उसमें बदलाव करना या सामग्री में कट लगाना या उसे हटाना हमारे समानता के अधिकार पर हमला है." पालेकर ने सुप्रीम कोर्ट के 1970 के उस फैसले का भी जिक्र किया है जिसमें फिल्मों पर सेंसरशिप को जायज करार दिया गया था, उन्होंने कहा उस वक्त सिनेमा, संचार का एक प्रभावी माध्यम हुआ करता था लेकिन आज समाज में बदलाव आया है.
फिल्म के सेंसर पर नियमित रूप से विवाद उठते रहे हैं. उड़ता पंजाब फिल्म पर हुए विवाद के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने श्याम बेनेगल समिति बानाई थी जिसने जून 2016 में सरकार को सेंसर बोर्ड में सुधार से जुड़ी अपनी सिफारिशों के साथ अंतरिम रिपोर्ट सौंपी थी. समिति ने एक नई श्रेणी "एडल्ड विद कॉशन" मतलब "वयस्क लेकिन सावधानी से" जोड़ने का सुझाव दिया था. इसके साथ कि यूनिवर्सल अंडर एडल्ट सुपरविजन (वयस्कों की देखरेख में) मतलब U/A रेटिंग के तहत दो अन्य श्रेणियों मसलन U/A12+ और U/A15+ को बनाये जाने की सिफारिश की थी. इस साल मार्च में ही बेनेगल ने कहा था कि सिफारिशें लागू नहीं किये जाने के मसले पर उन्हें जानकारी नहीं है.
सेंसर बोर्ड के नियमों पर अभिनेत्री रवीना टंडन ने भी विरोध जताया है. टंडन की आने वाली फिल्म "मातृ" पर बोर्ड ने सवाल उठाये हैं. रवीना ने कहा है कि "सीबीएफसी कुछ कानूनों से जुड़ा है जो सालों पहले बनाये गये थे लेकिन अब समय बदल गया है और हम प्रगतिशील भारत के बारे में बात करते हैं. इसलिए कानूनों में संशोधन की आवश्यकता है."
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