देश ने कश्मीर में अपनी 15 अरब डॉलर की पनबिजली परियोजनाओं में तेजी से काम करना शुरू कर दिया है. सरकारी अधिकारियों के मुताबिक इस्लामाबाद की ओर से दी जा रहीं चेतावनियों को दरकिनार करते हुये इस ओर कदम बढ़ाये गये हैं.
पाकिस्तान की ओर से कहा जाता रहा है कि ये पनबिजली योजनायें पाकिस्तान में जल आपूर्ति को प्रभावित कर सकती हैं. लंबे समय से अधर में लटकी इन योजनाओं में पिछले कुछ महीने के दौरान आई तेजी को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान से भी जोड़कर देखा जा रहा है. प्रधानमंत्री ने पिछले वर्ष सुझाव दिया था कि अगर पाक द्वारा आतंकवादियों को पनाह देना बंद कर दिया जाता है, तो भारत जलमार्ग साझा करने के प्रस्ताव पर अमल करेगा.
पाकिस्तान इसे सिंधु नदी और इसकी सहायक नदियों के जल को बांटने के लिये विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई संधि का उल्लंघन मानता है. पाकिस्तान का 80 प्रतिशत कृषि क्षेत्र सिंधु नदी पर निर्भर करता है.
इस मसले पर भारत के ऊर्जा मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी प्रदीप कुमार पुजारी ने कहा, "ये सब जल परियोजनाएं नहीं हैं, बल्कि जल प्रबंधन के लिये कुछ रणनीतिक रूप से उठाये गये कदम हैं."
पाकिस्तान, भारतीय-कश्मीर में किसी भी प्रकार के दखल से इनकार करता रहा है. पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नफीस जकारिया ने इसे तकनीकी मामला बताते हुये कहा कि वे इस मसले पर जल ऊर्जा मंत्रालय से बात करेंगे. उन्होंने कहा, "इस महीने के अंत में भारत, लाहौर में होने वाली सिंधु आयोग की बैठक में भाग लेगा और लंबे समय से अटकी बातचीत हो सकेगी."
जल संसाधन मंत्रालय और केंद्रीय ऊर्जा प्राधिकरण के अधिकारियों ने बताया कि पिछले तीन महीने में कश्मीर के भीतर छह पनबिजली योजनाएं अपने परीक्षण में सफल रही हैं या इन्हें पर्यावरण और वन विशेषज्ञों की अनुमति मिल गई है. ये परियोजनाएं सिंधु नदी की सहायक नदी चिनाब पर हैं. अधिकारियों ने नाम ना बताने की शर्त पर बताया कि इन पनबिजली परियोजनाओं के जरिये जम्मू कश्मीर की वर्तमान 3,000 मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता में तेज बढ़ोत्तरी होगी. जल संसाधन मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि पिछले 50 सालों में पनबिजली क्षमता में इतनी तेजी नहीं आई, और एक दिन में छह-सात परियोजनाओं को हरी झंडी दिखा देंगे तो निश्चित ही पाकिस्तान की चिंता बढ़ जायेगी.
विदेशी मामलों में अमेरिका की संसदीय समिति ने साल 2011 में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि भारत इन परियोजनाओं का इस्तेमाल पाकिस्तान में सिंधु के पानी को नियंत्रित करने के लिये कर सकता है. वहीं भारत का तर्क है कि ये परियोजनाएं किसी भी तरह से संधि का उल्लघंन नहीं करती क्योंकि ये रन-ऑफ-द-रिवर योजनाएं हैं और इसके जल का इस्तेमाल बिजली उत्पादन के लिये किया जायेगा ना कि किसी भंडारण में. वहीं पर्यावरण समूहों ने भी सरकार द्वारा इन परियोजनाओं को जल्दबाजी में मंजूरी दिये जाने पर सवाल उठाये हैं.
पिछले साल सिंधु जल संधि की एक बैठक में प्रधानमंत्री ने अधिकारियों को संबोधित करते हुये कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकता. हाल के दिनों में सियालकोट, क्वार, पक्कल डल, बुरसार, कीरथई परियोजनाओं को तकनीकी मंजूरी दी गई है. सियालकोट परियोजना लगभग एक दशक से अधर में लटकी हुई थी.
दक्षिण एशिया नेटवर्क के कॉर्डिनेटर हिमांशु ठक्कर के मुताबिक, कुछ परियोजनाओं के प्रभावों का भी सही आकलन नहीं किया गया है और न ही इस पर सार्वजनिक विचार-विमर्श किया गया है. ठक्कर ने बताया कि चिनाब का क्षेत्र बहुत ही संवेदनशील है और यहां बाढ़ और भूकंप का खतरा बना रहता है लेकिन वहां भी परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है.
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