विश्लेषकों का अनुमान, संपत्ति पर दावे के हक में नहीं नया कानून
देश से , चीन और पाकिस्तान जा चुके भारतीय परिवारों की जब्त संपत्ति पर दावे का अधिकार छीनने वाले पांच दशक पुराने कानून में संशोधन कर रहा है. विशेषज्ञों के अनुसार इसका मुस्लिमों पर बहुत बुरा असर पड़ेगा.
भारत-पाक युद्ध के तीन साल पहले लागू किया गया शत्रु संपत्ति कानून 1968 भारत सरकार को उन लोगों की संपत्ति को जब्त करने का अधिकार देता है जो पिछले युद्धों के बाद पाकिस्तान और चीन चले गये थे. भारत छोड़कर पाकिस्तान जाने वाले लोगों में ज्यादातक मुस्लिम थे. हालांकि पाकिस्तान ने भी भारत गये लोगों के संबंध में ऐसा ही कानून बनाया था और आज भी दोनों देशों के बीच तमाम विवाद बने हुये हैं.
पिछली तारीख से लागू होने जाने वाले इस संशोधित कानून में शत्रु की परिभाषा का दायरा बढ़ा दिया गया है. अब इसमें घोषित शत्रुओं के कानूनी उत्तराधिकारी भी शामिल होंगे, चाहे वह भारतीय नागिरक हों या ऐसे किसी देश के नागरिक जिसे भारत शत्रु देश नहीं मानता. राज्यसभा सांसद हुसैन दलवई का मानना है कि जब किसी परिवार के पास देश की नागरिकता है तब कैसे सरकार ऐसे परिवारों को शत्रु मानकर उन्हें उत्तराधिकार के अधिकार से वंचित कर सकती है. उन्होंने कहा कि यह संविधान विरोधी है और यह मुस्लिमों पर गलत ढंग से निशाना साधता है.
वहीं सरकार का तर्क है कि ये सारे संशोधन जनहित में किये जा रहे हैं ताकि हजारों-करोड़ों की संपत्ति किसी शत्रु या शत्रु से जुड़े किसी संगठन के पास न जा सके. पुराने कानून में शामिल खामियों को दूर करने के लिये ये कदम उठाये जा रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में महमूदाबाद के राजा के परिवार की याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया था कि वे भारतीय नागरिक शत्रु संपत्ति पर दावा कर सकते हैं जो कानूनी रूप से ऐसी संपत्ति के वारिस हैं. साल 1947 में विभाजन के बाद महमूदाबाद के राजा ने देश छोड़ दिया था और पाकिस्तान चले गये थे. ताजा संशोधन के मुताबिक देश में सिविल कोर्ट को शत्रु संपत्ति से जुड़ी याचिकाओं को सुनने का अधिकार नहीं होगा.
भारत की 13 फीसदी अल्पसंख्यक मुस्लिम आबादी संपत्तियों पर मालिकाना हक के मामले में अब भी पिछड़ी हुई है. यहां तक कि उन्हें संपत्ति खरीदने और किराये पर लेने के दौरान भी पूर्वाग्रह का सामना करना पड़ता है. शत्रु संपत्ति के उत्तराधिकारियों वाली संपत्तियों की संख्या पिछले कुछ वर्षों में 2100 से बढ़कर 16,000 तक पहुंच गई है जिनमें से अधिकतर का संबंध मुस्लिम परिवारों से था और इनका मूल्य तकरीबन 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक है.
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर बहस कर रहे वकील आनंद ग्रोवर का मानना है कि नये कानून के मसौदे की मंशा मुसलमानों को उनके पैतृक संपत्ति के अधिकार से वंचित करना है, जो सरकार ने जब्त कर ली है.
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