भेलसा की तोप अब भोपाल के बाद रायपुर में चलेगी ...
लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार और विचारक है
“ राजेंद्र सिंह जादौन “
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से सटे भेलसा (विदिशा) का ये नौजवान एक किसान , सरकार और व्यापार से जुड़े परिवार में जन्मा और आपने आपको साबित करने अथक प्रयास करता रहा। इस परिवार ने कभी नहीं सोचा होगा की उनका ये सपूत कभी इस तरह उनका नाम ऊँचा करेगा... पर कहते है ना जय जवान जय किसान। जब किसान अपनी फसल को सींच कर बडा करता है और जब फसल तैयार होती है तभी किसान के चहरे पर चमक आती है। ठीक उसी तरह आज इस पूत ने भी अपने पिता का नाम लिखा है
.. इंजीनियरिंग की पढाई में मन नहीं लगा तो एक साल बाद ही छोड़ दी और भोपाल के माखनलाल विश्वविद्यालय में पत्रकारिता में दाखिला ले लिया। विदिशा से भोपाल ये भेलसा की तोप रोज सलमी देने आती। एक साल अध्यन करने के बाद घर से संपन्न इस नौजवान ने खुद को साबित करने के लिए लगातार स्ट्रगल किया। कई बार तो हालात ये तक बने दिन के 24 घंटो में से कई घंटे रेलवे स्टेशन और ट्रेन में ही बिताने पड़े। औसतन देखा जाए तो ये नौजवान घर से निकलने और भोपाल आने तक करीब 4 घंटे रोज रेल की पटरियों से जुड़ा रहा।
पढ़ाई के साथ अपना जेब खर्च चलाने के लिए एक लोकल चैनल राजधानी में बतोर रिपोर्टर नोकरी भी कर ली। पढाई के साथ साथ चैनल की नोकरी एक चैलेंज था, पर इस नौजवान ने बिलकुल तोप के गोले की तरह इसे अपने अंदर समां लिया। और रोज भोपाल की गलियों में ये तोप सुबह सवेरे नजर आने लगी। चेहरे पर बगैर थकान लिए लगातार काम करना बहुत अच्छे से आता है इन्हे। टाइम मैनेजमेंट एैसा है कि दिन की हर घड़ी का हिसाब रखते हैं ये। लगातार 5 वर्ष राजधानी चैनल को अपनी सेवा देने के बाद अब ये भेलसा की तोप आईबीसी 24 न्यूज चैनल में रायपुर में अपने गोले दागने के लिए पहोच गई है।
इस भेलसा की तोप से जब मेरी मुलाकात हुई तो मैं भी इनके व्यक्तित्व और व्यवहार से बेहद प्रभावित हुआ। पत्रकारिता को लेकर एक नयी सोच रखने वाले भाई का व्यवहार एैसा है कि अच्छे अच्छे इनकी तारीफों के पुल कसीदते हैं। जैसे ही मुझे पता लगा कि ये भेलसा की तोप रायपुर में चलने जा रही है।
तो सोचा क्यों न आप सभी को इनके बारे में बताया जाए इनका कहना है की पत्रकारिता इनका जुनून है, और इस जुनून को पूरा करने में बेहद आनंद आता है। पर जब तक देश में साक्षरता भलीभाँति नहीं फैलती और जब तक देश की दरिद्रता कम नहीं होती, तब तक देश के करोड़ों आदमी समाचार-पत्र नहीं पढ़ सकते और तब तक छापेखाने उतने उन्नत नही हो सकते, जितने कि विदेशों में हैं, या यहाँ अंग्रेजी पत्रों के हैं। एक दिक्कत और भी है, हमारा देश पराधीन है। हम ऐसे शासन की मातहती में साँस लेते हैं, जिसकी अंतरात्मां काले कानूनों के सहारों पर विश्वोस करती है। यहाँ पर राजविद्रोह होना अनिवार्य है। इस अस्वाभाविक परिस्थिति के कारण हिंदी के समाचार-पत्रों का विकास और भी रूका हुआ है,
मैं यह धृष्टता तो नहीं कर सकता कि यह कहूँ कि संसार के अन्य बड़े पत्र गलत रास्ते पर जा रहे हैं और उनका अनुकरण नहीं होना चाहिए, किंतु मेरी धारणा यह अवश्य है कि संसार के अधिकांश समाचार-पत्र पैसे कमाने और झूठ को सच और सच को झूठ सिद्ध करने के काम में उतने ही लगे हुए हैं, जितने कि संसार के बहुत से चरित्रशून्यध व्यमक्ति। इस काम में तो वे इस बात का विचार तक रखना आवश्य क नहीं समझते कि सत्यक क्यो है? सत्य उनके लिए ग्रहण करने की वस्तु नहीं, वे तो अपने मतलब की बात चाहते हैं कि संसार-भर में यह हो रहा है। गिने –चुने पत्रों को छोड़कर सभी पत्र ऐसा कर रहे हैं।
जिन लोगों ने पत्रकार-कला को अपना काम बना रखा है, उनमें बहुत कम ऐसे लोग हैं जो अपनी चिंताओं को इस बात पर विचार करने का कष्ट उठाने का अवसर देते हों कि हमें सच्चाई की भी लाज रखनी चाहिये। केवल अपनी मक्खन-रोटी के लिए दिन-भर में कई रंग बदलना ठीक नहीं है। इस देश में भी दुर्भाग्य से समाचार-पत्रों और पत्रकारों के लिए यही मार्ग बनता जाता है। हिंदी पत्रों के सामने भी यही लकीर खिंचती जा रही है। यहाँ भी अब बहुत-से समाचार पत्र सर्वसाधारण के कल्यारण के लिए नहीं रहे। सर्वसाधारण उनके प्रयोग की वस्तु बनती जा रहे हैं।
पत्रकार कैसा हो, इस संबंध में दो राय हैं। एक तो यह कि उसे सत्य या असत्य , न्याय या अन्या के आंकड़ों में नहीं पड़ना चाहिये। एक पत्र में वह नरम बात कहे तो दूसरे में बिना हिचक वह गरम कह सकता है। जैसा वातावरण देखे, वैसा करे, अपने लिखने की शक्ति से डटकर पैसा कमाये, धर्म-अधर्म के झगड़े में न अपना समय खर्च करें न अपना दिमाग ही। दूसरी राय यह कि पत्रकार की समाज के प्रति बड़ी जिम्मेदारी है, वह अपने विवेक के अनुसार अपने पाठकों को ठीक मार्ग पर ले जाता है। वह जो कुछ लिखे, प्रमाण और परिणाम का लिखे और अपनी मति-गति में सदैव शुद्ध और विवेकशील रहे। पैसा कमाना उसका ध्याय नहीं है। लोकसेवा उसका ध्येंय है और अपने काम से जो पैसा वह कमाता है, वह ध्येाय तक पहुँचने के लिए एक साधन-मात्र है। संसार के पत्रकारों में दोनों तरह के आदमी हैं। पहले दूसरी तरह के पत्रकार अधिक थे, अब इस उननति के युग में पहली तरह के। उन्नति समाचार-पत्रों के आकार-प्रकार में हुई है। खेद की बात है कि उन्नकति आचरणों की नहीं हुई। हिंदी के समाचार-पत्र भी उन्नैति के राजमार्ग पर आगे बढ़ रहे हैं और वही पत्रकार संगठनों की कमी और कॉन्ट्रैक्ट (ठेका) आधारित नौकरी के चलते पत्रकारों की स्वतंत्रता खत्म हो रही है इसे भी बचाना जरुरी है
तो मित्रो भेलसा की इस तोप वैभव शर्मा को मेरी शुभ कामना की ये और तरक्की करे और पत्रकारों के हित में और समाज को नया समाज देने में अपनी कलम की तोप के गोले इसी तरह दागते रहे ..
साथ ही वैभव के करीबी मित्र राहुल गुप्ता, दीपक राय, अभिनव, मयंक, अंशुल, आशीर्वाद, नीरज, रोहित, सोमिल ने भी शुभकामनाएं दी !
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