सिंधी समाज की आंखों का तारा गैर सिंधी पत्रकार...
लेखक - स्वतन्त्र पत्रकार है
"राजेन्द्र सिंह जादौन "
अगर बात सिंधी समाज की हो तो भारत का इतिहास इससे अछूता नहीं। सिंधी समाज ने अपनी पहचान मेहनत व ईमानदारी से बनाई है। भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद सिंधी समाज यहां सिर्फ मातृ-भाषा लेकर आया और आज अपने बलबूते पर आगे बढ़ा है। सिंधी समाज का इतिहास गौरवशाली रहा है।
इसी समाज का एक तबका भोपाल से सटे बैरागढ़ में निवास करता है जहां प्रेम शालीनता और शांति हमेश रहती है और अगर बात हिंदी की, की जाय तो संस्कृत से बनी सिन्धी और सिन्धी से बनी हिंदी। आज के तकनीकी युग में हिंगलिश और वहीं संघर्ष करता एक पत्रकार।
जी हां बचपन से सरकारी सिस्टम से नाराज इस पत्रकार का एक ही सपना था कि अगर सिस्टम को बदलना है तो पत्रकार बनो और अपनी कड़ी मेहनत और संघर्ष से ये पत्रकार बन गया। .
साप्ताहिक अखबार अनमोल सन्देश से अपनी पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले इस पत्रकार का सिस्टम को बदलने का जुनून इसे सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़ाता रहा। अनमोल सन्देश के बाद राष्ट्रीय गरिमा, राजधानी न्यूज, टीवी 24, साधना न्यूज, आईबीसी 24 और उसके बाद देश के सबसे बड़े संस्थान पत्रिका अखबार में आज ये अपने इस जूनून के चलते सेवा दे रहे हैं।
इनका जूनून सिस्टम बदलने तक सीमित नहीं था इन्होनें इसे एक वर्ग को पत्रकारिता करने के लिए चुना जो राजनीति के चलते हमेश सिर्फ राजनेताआंे का सीकर रहा। जी हां वो वर्ग है मेहनती और लगनशील सिन्धी समाज और ये जा धमके इन सिंधियो को पत्रकारिता के माध्यम से उनके अधिकार दिलाने .. और सिन्धी समाज ने भी इनको हाथो हाथ लिया और आज ये सिन्धी समाज की आंख का तारा गैर सिंधी पत्रकार हैं। यह पत्रकार न सिर्फ सिंधी समाज के बीच अपने आप को स्थापित करता है बल्कि भोपाल के राजा भोज एयरपोर्ट पर भी बाज की नजर रखता है।
पत्रकारिता को लेकर जब इस पत्रकार से मेरी चर्चा हुई तो उनका सरल और सौम्य स्वभाव कुछ इन पंक्तियो के साथ शुरु हुआ ..
हालत पे रोता ब्रजेश क्यों है.....
हालाते गम आज भी वहीं हैं ...
पत्रकारिता यूं तो कहने के लिए बड़ा ही नोबल प्रोफेशन है, और कुछ हद तक यह सच भी है। यह एक ऐसा मंच है जहाँ से आप न सिर्फ अपनी बात बड़े पैमाने पर कह सकते हो, साथ ही साथ अपनी नजर से लोगों को दुनिया के अलग-अलग रंग-रूप भी दिखा सकते हो।
ये तो पत्रकारिता तक की बात थी, लेकिन एक सच्चे और अच्छे पत्रकार के जीवन में जब घुस कर देखियेगा तो वो बड़ा अजीब अनुभव देगा। उसका अपना जीवन ठीक उस दिये जैसा दिखेगा, जिसके कारण रोशनी तो होती है लेकिन उसके अपने चारों तरफ अँधेरा होता है।
इसलिए ऐसे साथी जिनके पास पत्रकारिता को लेकर एक स्पष्ट दूर दृष्टी नहीं हो वो इस पेशे में न ही आयें तो बेहतर होगा। पत्रकारिता का स्वरुप बदलते बदलते इतना बदल गया है कि कभी-कभी पत्रकार को एहसास होता है वो पत्रकारिता नहीं पी आर कर रहे हैं।
आजादी के बाद से तकनीक ने भी पत्रकारिता करने के ढंग को बदला। खास तौर पर युवाओं को इसने अपनी ओर आकर्षित किया। अब पत्रकार बनने की जगह युवा एंकर बनने के सपने देखने लगे, वही सपना लिए वो आई आई एम सी, जामिया और अन्य प्राइवेट मीडिया स्कूल की तरफ चले जाते हैं पर जब हकीकत से रूबरू होते है तो दिल को बड़ा धक्का लगा। उसके बाद जब पत्रकारिता की डिग्री लेकर बाहर निकलते है और इंटर्नशिप के लिए संघर्ष शुरु होता है तो बचा खुचा सपना भी हाथ निकल जाता है ।
पर यह हो सकता है कि आने वाले दिनों में पत्रकारिता के क्षेत्र में जॉब तो बहुत हों, लेकिन एथिक्स को एक कोने में रखना पड़ सकता है। रही बात संगठन के अंदर के माहौल की तो निराश लोगों से मिलने पर निराशा हाथ आएगी, सफल लोगों से मिलने पर उर्जा और उत्साह।
ये सारी बातें अनुभव आधारित हैं किसी किसी की किस्मत एक्सेप्शन होती है। हां ये बात उन लोगों पर एकदम लागू नहीं होती जिनके पास अपना पत्रकारीय विजन है। उन्हें इस फील्ड में मजा आएगा, रोज-रोज नई चुनौतियां उन्हें अवसर सी लगेंगी। और युवाओ को मैं शुभकामनायें ही दे सकता हूँ।
कोई भी संस्थान किसी को पत्रकार नहीं बना सकती है। वो आप स्वयं ही बन सकते हैं, संस्थान आपको तराश कर. तीक्ष्ण और तीव्र जरुर बना देगी। गुरु द्रोण मिले तो एक आध अर्जुन भी जरुर बनेंगे।
ब्रजेश शर्मा से बातकर पत्रकारिता का एक नया अनुभव में बटोर कर लाया और आपके सामने रखा और ब्रजेश को मेरी ढेर सारी शुभकामनायें कि वो इसी तरह सिन्धीं समाज के दिलों पर राज करें और उनके संघर्ष को अपनी कलम की ताकत से देश दुनिया तक ले जायंे ...
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