गुनाहों का किस्सागो
एक खोजी पत्रकार का लेखक में तब्दील होना
यह ऐसा दौर है, जिसमें रिश्तों की गर्माहट क्षीण होती जा रही है, धन और मन के बीच की कड़ी टूटती जा रही है, ऐसे में इंसानियत और अपराध के बीच कोई जोड़ खोज पाना संभव नहीं रह गया है। इस दौर में भी एक शख्श ऐसा है जो अपराध जगत को समाज के ताने-बाने में देख रहा है, सबको देखने के लिए मजबूर कर रहा है। वह अपने नजरिए से अपराध जगत और अपराधियों को देखने के लिए मजबूर नहीं करता है बल्कि लालायित कर देता है। यह व्यक्ति है विवेक अग्रवाल। पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय से अपराध जगत पर खोजी पत्रकारिता और शोध करते हुए विवेक ने न जाने क्या-क्या न किया, न क्या-क्या न सुना और सहा। वो अपनी कलम की धार तब भी कुंद होने से बचाते चले, आज भी उसे सान पर चढ़ाए हुए हैं।
विवेक अग्रवाल पिछले 3 दशकों से भी अधिक समय से अपराध, कानून, सैन्य, आतंकवाद और आर्थिक अपराधों की खोजी पत्रकारिता कर रहे हैं। वे पत्रकारिता के हर आयाम के लिए काम कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में कस्बाई पत्रकारिता करते हुए मयानगरी मुंबई महानगर में सक्रिय हुए। एकीकृत मध्यप्रदेश में सन 1985 में बतौर स्वतंत्र पत्रकार स्थानीय व राष्ट्रीय अखबारों में सक्रिय हुए थे। मुंबई में अपराध जगत की पत्रकारिता करना उनके लिए एक स्वर्णिम मौका बना।
पत्रकार - लेखक विवेक अग्रवाल तीन दशकों से अपराध, रक्षा, कानून व न्याय और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर मीडिया के सभी स्वरूपों के लिए रिपोर्टिंग करते आए हैं। उनकी रिपोर्टिंग अपराध से आतंक तक, न्याय से घोटालों तक विस्तार रखती है।
मुख्यधारा के अखबारों में विवेक ने 1992 में मुंबई के हमारा महानगर से काम शुरू किया। सन 1993 में वे राष्ट्रीय अखबार जनसत्ता से बतौर अपराध संवादताता जुड़े और मुंबई माफिया पर दर्जनों खोजी रपटें प्रकाशित कीं। एक दशक बाद वे देश के पहले वैचारिक चैनल जनमत से समाचार जगत के नए आयाम में कदम रखा, जो बाद में लाईव इंडिया बना। महाराष्ट्र के सबसे शानदार चैनल मी मराठी की खबरों के प्रमुख रहे। खोजी पत्रकार के रूप में उन्होंने एक जबरदस्त पारी देश के इंडिया टीवी में भी खेली। महाराष्ट्र व गोवा राज्य प्रभारी के रूप में वे न्यूज एक्सप्रेस की आरंभिक टीम का हिस्सा बने। इन चैनलों में भी विवेक ने खूब खोजी खबरें कीं।
मुंबई माफिया और अपराध जगत पर उनकी विशेषज्ञता का लाभ हॉलैंड के मशहूर चैनल ईओ तथा एपिक भी उठा चुके हैं। कुछ समय वे फिल्म एवं टीवी धारावाहिक लेखन को भी समर्पित कर चुके हैं।
विवेक अग्रवाल वर्षों से मुंबई माफिया की खोजी रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते हैं। उनके पत्रकारिता कैरियर की कुछ प्रमुख उपलब्धियों में 1993 के मुंबई में हुए 13 बमकांड, 2008 के 26/11 आतंकी हमले, 2010 के पुणे बमकांड की कवरेज तो हैं ही, अनेक माफिया सरगना, मैच फिक्सिंग, सट्टेबाजी, कालाबाजारी, तस्करी, टैक्स चोरी इत्यादि के सनसनीखेज खुलासे शामिल हैं।
वे फिलहाल लेखन के साथ डॉक्यूमेंट्री निर्माण और विभिन्न मीडिया संस्थानों से बतौर सलाहकार जुड़े हैं। वे अब अपनी सेवाएं बतौर विशेषज्ञ, चैनल, अखबार, पत्रिका आरंभ करने और उन्हें स्थापित करने के लिए प्रदान कर रहे हैं। इन दिनों कोलकाता की पाक्षिक पत्रिका और मुंबई के एक खोजी पोर्टल को विशेषज्ञ सेवाएं दे रहे हैं।
कराची स्थित घर मोईन पैलेस में बने स्वीमिंग पूल के सामने खड़े दाऊद इब्राहिम के अनदेखे और ताजातरीन फोटो के साथ खोजी पत्रकार – लेखक विवेक अग्रवाल की बहुप्रतीक्षित किताब मुं’भाई आ चुकी है। दाऊद के इस ताजा फोटो की जानकारी देते हुए विवेक अग्रवाल बताते हैं, “इनमें अंडरवर्ल्ड के इतिहास के सबसे खतरनाक और बड़े डॉन दाऊद इब्राहिम के कराची में सबसे सुरक्षित पनाहगाह और घर के अंदर लिया सबसे ताजातरीन फोटो है, जो किसी खुफिया अथवा जांच एजंसी तक के पास नहीं है।” विवेक अग्रवाल से हमेशा यह पूछा जाता है कि वे माफिया की खबरों का खतरनाक काम क्यों करते हैं तो हमेशा एक ही जवाब आता है कि चुनौतियों के बिना जीवन अधूरा है। यह काम खतरनाक नहीं है, बशर्ते आप अपने काम के प्रति ईमानदार रहें। किसी गिरोह विशेष के खिलाफ लिखना, या किसी गिरोह सरगना विशेष के पक्ष में लिखना, किसी भी पत्रकार की सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। निष्पक्ष लेखन और पत्रकारिता का सम्मान तो मुंबई अंडरवर्ल्ड भी करता है। वाणी प्रकाशन से प्रकाशित खोजी पत्रकार विवेक अग्रवाल की बहुप्रतीक्षित किताब मुं’भाई मुंबई के माफिया जगत के ढेरों अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालती हैं। ये पुस्तकें ऐसे तथ्य उजागर करती हैं, जिनसे दुनिया वाकिफ नहीं है। यह किताब कई अनदेखी तस्वीरों का खुलासा भी करती है जो प्रेस और मीडिया की पहुंच से अब तक दूर रही हैं। इस किताब में मुंबई के कुख्यात माफिया सरगनाओं, उनकी पत्नियों-प्रेमिकाओं, संबंधियों, साथियों, उनके घरों और अड्डों की जानकारियां और फोटो हैं।
मुं’भाई और मुं’भाई रिटर्न्स के लेखन में किस्सागोई की तकनीक में पत्रकारिता का तड़का लगा कर पेश किया है। यह पुस्तक मनोरंजन का मसाला न होकर मुंबई के गिरोहों और उनके तमाम किरदारों का जीवंत और प्रामाणिक दस्तावेज है। पुस्तक के अंत में गिरोहबाजों, प्यादों, खबरियों, सुपारी हत्यारों, खुफिया व पुलिस अधिकारियों तथा मैच फिक्सिंग में प्रचलित शब्दों व मुहावरों का पूरा जखीरा मौजूद है।
देश के विख्यात खोजी पत्रकार विवेक अग्रवाल की देश के सबसे विख्यात प्रकाशन समूह वाणी प्रकाशन से आई किताब मुं‘भाई में पहली बार मुंबई के गिरोहों पर ऐसे अछूते विषयों पर काम हुआ है, जिनके बारे में आज तक कोई सोच भी नहीं पाया है। यह किताब एक प्रकार से मंबई के गिरोहों पर सबसे सटीक और जीवंत दस्तावेज के रूप में सामने आती है।
मुं‘भाई’ और मुं‘भाई’ रिटर्न्स श्रृंखला की दो पुस्तकें हैं, तीसरी मुं‘भाई’ रीगेन भी जल्द ही आ रही है।
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