*थोड़ा नर्म थोड़ा गर्म है ये भोपाली पत्रकार*
लेखक : राजेंद्र सिंह जादौन
लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार है
अक्सर इसी सोच में रहता था की कब अपना करियर बनेगा और कब पूरा नहीं तो कमसे कम आधा शहर मामू को जानेगा .और मामू ने भी धीरे से अपना करियर पत्रकारिता को चुनलिया पीपीपी , यानि एक परम्परा जी हां जनाब ये हैं भोंपाल के एक ऐसे युवा पत्रकार जो पत्रकारिता की परम्परा का निर्वहन कर रहे है। बीयू से पत्रकारिता की पढाई भाईजान ने की और ज़ी24 घण्टे छत्तीसगढ़ टीवी चैनल में अपनी ट्रेनिग पूरी करके भाई मिया जब रायपुर से भोपाल आए तो इनके गुरु के आशीर्वाद से टाइम टुडे टीवी चैनल से इनने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत की जनाब थोड़े गर्म मिज़ाज तो है ही और उसूलों के पक्के भी सो क्या था एक दिन भाई जान का मूड क्या बिगड़ा यहां से विदाई ले ली आखिर पत्रकारिता करने निकले थे कुछ और कैसे करते।
लेकिन एक बात तो मियां भाई की माननी ही पड़ेगी खाली नहीं बैठे एक नए चैनल में एंट्री दे दी कुछ दिन वह काम किया लेकिन चैलन चल नहीं पाया। तभी अपने नम्र सुभाव और अच्छे संबंधों के चलते देश के पहले एचडी न्यूज़ चैनल में अपनी जगह बना ली नाम था *न्यूज़ एक्सप्रेस*। इन्होंने यहाँ बतौर सीनियर रिपोर्टर रहकर चैनल को नए आयाम दिए और जब न्यूज़ एक्सप्रेस की तफ्तार बढ़ी और प्रादेशिक चैनल आया तो कुछ तथाकथित पत्रकारों ने मियां के काम को देखते हुए साजिश रच डाली फिर क्या था ये तो इनके मिज़ाज के बहार की बात थी तो कुल जमा तीन-साढ़े तीन साल का टाइम दे कर चैनल से विदा ले ली। लेकिन मामू कहा रुकने वाले थे उनकी प्रतिभा को एक भन्नाट से कलमकार ने पहचान लिया सो देश के जाने-माने न्यूज़ चैनल *एबीपी न्यूज़* में सिटी रिपोर्टर बना दिया। उसूलों के पक्के इस इस नए जमाने के पत्रकार ने बहुत कुछ सीखा है अपने छोटे से पत्रकारिता जीवन से सो मियां खा अपनी एक वेब न्यूज़ पोर्टल *mpheadline.com* के नाम से चलते है, जिसमे आए दिन तीखे तीखे तीर छोड़ते रहते है...वही आजकल भाई मियां जनसम्पर्क की पत्रिका *सन्देश* में भी राग अलापते मिल जायगे।
मिया मामू अपने उसूलो के पक्के है . जब दिनेश शुक्ल से पत्रकारिता के विषय को लेकर मेरी चर्चा हुई तो उन्होंने कुछ इस अंदाज़ में अपना दूसरा रूप दिखाया और कहा दरअसल पत्रकारिता को लेकर काफी भ्रम की स्थिति बनी हुई है। पत्रकारिता का मूल चरित्र सत्ता विरोधी होता है। यानी चीजों का आलोचनात्कम विश्लेषण। वह तटस्थ भी नहीं होती। व्यापक जनता का पक्ष उसका पक्ष होता है। और कई बार ऐसा भी हो सकता है कि सत्ता के खिलाफ विपक्ष के साथ वह सुर में सुर मिलाते दिखे। ऐसे में उसे विपक्ष का दलाल घोषित करना बेमानी होगा। क्योंकि उस समय दोनों जनता के सवालों पर सरकार की घेरेबंदी कर रहे होते हैं। इससे जनता का ही पक्ष मजबूत होता है। दरअसल पत्रकारिता तीन तरह की होती है। एक मिशनरी, दूसरी नौकरी और तीसरी कारपोरेट। पहला आदर्श की स्थिति है। दूसरी बीच की एक समझौते की। और तीसरी पत्रकारिता है ही नहीं। वह मूलतः दलाली है। तो ऐसे में उसकी साख का क्या होगा? इससे पत्रकारिता और उसकी विश्वसनीयता को कितनी चोट पहुंचेगी? क्या सत्ता के आगे सारे समझौते जायज हैं और ऐसे समझौते करने वालों को किस श्रेणी में रखा जाए? क्या सत्ता का अपना कोई सिद्धांत नहीं होता है विचारधारा और सिंद्धांतविहीन राजनीति कहीं बाझ सत्ता और पत्रकारिता को तो जन्म नहीं दे रही है.
कहते है कि जीवन में मिली ठोकरे और उससे मिला अनुभव बहुत कुछ सीखा देता है सो हमारे युवा साथी ने पत्रकारों की तकलीफों को बहुत बारीकी से देखा और *युवा पत्रकार संघ* नाम का एक संघठन खड़ा कर दिया भाई मियां की कल्पना भी खूब है सो हमारे पत्रकार भाइयों ने मियां का नाम जानते ही तन,मन,धन से उनके इस प्रयास के साथ हो लिए सो आजकल मियां इस *युवा पत्रकार संघ* का संचालक भी कर रहे है और ये नर्म गर्म मामू सबको साथ लेकर एक नया आयाम लिखने को निकल पड़े है। आपको उत्सुकता होगी आखिर ये युवा पत्रकारिता का सितारा है कौन... तो जनाब ये जर्मलिज्म में अपनी अलग पहचान रखने वाले पत्रकार है *दिनेश शुक्ल* ... उनकी प्रतिभा को सलाम और पत्रकारिता में नए आयाम स्थापित करने के लिए दिनेश शुक्ल जी को मेरी ढेर सारी शुभकामनाएं और मेरी आशा है कि वो युवाओं के आदर्श बने।
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