Sunday ,5th January 2025

बांग्लादेश और बंगाल : मानवाधिकार का दोहरा मापदंड

-अमित त्यागी (वरिष्ठ स्तंभकार एवं विचारक )
बंगलादेश में 1951 से 2008 के बीच लगभग 4.9 करोड़ हिन्दू विलुप्त हो गए हैं। 1951 में पूर्वी बंगाल में हिन्दुओं की जनसंख्या 33 प्रतिशत थी जो 1971 में बांग्लादेश के गठन तक 20 प्रतिशत रह गयी। 2001 में बांग्लादेश में हिन्दू जनसंख्या सिर्फ 10 प्रतिशत बची। वर्तमान में हिन्दू जनसंख्या 8 प्रतिशत से भी कम हैं। जनसंख्या कम होने की वजह देश से पलायन नहीं है। इसकी वजह हिंदुओं पर निरंतर अत्याचार और  जबरन धर्म परिवर्तन रहा है। बांग्लादेश की वर्तमान घटनाएँ तो सिर्फ एक बानगी है। इसी तरह की निरंतर घटनाएँ होती रही हैं। 1971, 1989, 1993 में भी बांगलादेश में हिन्दू नरसंहार के बड़े दौर रहे हैं। इस पर राजनीतिक दलों, इस्लामी संगठनों, मुस्लिम पड़ोसी देशों की चुप्पी बांग्लादेश के हिंदुओं का मानवाधिकार हनन है। भारत की सरकारें बांगलादेश के विषय पर पिछले कुछ दशकों में खामोश रही क्योंकि उस पर लेफ्ट इकोसिस्टम का कब्जा रहा था। अब पिछले कुछ वर्षों से भारतीय सरकार बांग्लादेश के विषय पर सक्रिय हुयी है। 
न्यूयार्क टाइम्स के पत्रकार सिडनी शानबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार 1971 में 20 लाख से अधिक हिन्दू मारे गए थे। इसके बाद 1974 में एक कानून बनाया गया कि जो हिन्दू देश से चले गए हैं, या जिन्हे देश ने शत्रु घोषित कर दिया है उनकी जमीने सरकार अपने कब्जे में लेकर वहाँ के मुसलमानों को दे देगी। इसका दुष्परिणाम हुआ। बांग्लादेश में हिन्दुओं को मार कर भगाने एवं शत्रु घोषित करवाने का क्रम चल निकला। इस कानून ने ज़मीन पर कब्जा करवाने का क्रम शुरू करवा दिया। अन्तराष्ट्रिय मानवाधिकार के पैरोकार इस पर भी चुप ही रहे। जिस समय बांग्लादेश बना था उस समय मुजीबुर रहमान का सहयोग भारत सरकार ने किया था। वहाँ का एक वर्ग इस बात से बेहद आहत रहता है कि जिस भारत से अलग होकर उन्होने एक मुस्लिम देश बनाया था उसके सहयोग से बांग्लादेश का अस्तित्व है। यह कट्टरपंथी समूह सदा हावी होने का प्रयास करता है और शेख हसीना के भारत से मधुर संबंध को स्वीकार नहीं करता है। कभी शेख हसीना का समर्थक रहा भारत का वर्तमान विपक्ष शेख हसीना को अपने दुश्मन की तरह देखता है। भारत का विपक्ष हिन्दुओ पर अत्याचार पर तो शांत रहता है किन्तु शेख हसीना को अत्याचारी और तानाशाह बताकर उनके हश्र को सही ठहरता है। 
स्वामी चिन्मयदास की गिरफ्तारी पर भारतीय जन मानस में तो प्रतिक्रिया हुयी किन्तु अल्पसंख्यक की बात करने वाला लेफ्ट इकोसिस्टम बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार हनन पर खामोश है। बांग्लादेश का विषय सिर्फ पड़ोसी देश या हिन्दुओ का विषय नहीं है। भाषा के आधार पर बने बांग्लादेश का प्रभाव भारत के पश्चिम बंगाल पर भी पड़ता है। ऐसा ही उत्पीड़न पश्चिम बंगाल में भी चल रहा है। हिन्दू अस्मिता की बात करने वाले वहाँ भी प्रताड़ित हैं। कट्टरपंथी समूह हावी हैं। बंगाल और बांग्लादेश में जिस तरह मानवाधिकार के पैरोकार चुप्पी साढ़े हैं वह इसके अस्तित्व पर ही प्रश्न चिन्ह लगा देता है।  

भारतीय हिंदुओं के मानवाधिकार का हनन है पूजा स्थल कानून 1991
भारतीय पूजा पद्वति में मंदिर एक पवित्र स्थान है जहां देव की प्राण प्रतिष्ठा की जाती है और वह स्वयं निवास करते हैं। यही कारण है कि अगर किसी देवालय को तोड़ भी दिया जाये तो भी वह देवालय ही रहता है। ढांचे का स्वरूप बदलने से देव का स्थान नही बदलता है। यदि मुस्लिम परंपरा की मस्जिद की बात करें तो मस्जिद सिर्फ नमाज़ अता करने का स्थान है। अरब में उस मस्जिद को भी तोड़ा जा चुका है जहां स्वयं पैगंबर साहब नमाज़ पढ़ा करते थे। 1991 में नरसिंह राव सरकार ने पूजा स्थल (विशेष प्रविधान ) कानून 1991 बनाया था जो किसी भी धर्मस्थल के 15 अगस्त 1947 वाले मूल स्वरूप में किसी भी बदलाव को रोकता है। अब इस कानून की वैधानिकता को चुनौती देते याचिका न्यायालय में लंबित है। इस याचिका पर न्यायालय ने सरकार को नोटिस जारी करते हुये उनसे जवाब मांगा। इस याचिका में कहा गया कि यह कानून आक्रांताओं द्वारा किए गए गैर कानूनी कार्यों को मान्यता देता है और यह कानून अदालत के जरिये अपने धार्मिक स्थलों और तीर्थों को वापस पाने के अधिकार से वंचित करता है। भारतीय कानून के अनुसार भगवान एक न्यायिक व्यक्ति होते हैं। यह कानून हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिखों को उनके पूजा स्थल और तीर्थों को वापस पाने के अधिकार से वंचित करता है जबकि मुस्लिम पक्ष को वक्फ कानून की धारा 7 के अनुसार अधिकार प्राप्त है। पूजा स्थल कानून भगवान राम और कृष्ण के बीच विभेद करता है। इस कानून के अंतर्गत राम जन्मस्थान को छोड़ दिया गया है किन्तु कृष्ण जन्मस्थान को नहीं छोड़ा गया है जबकि हिन्दू मान्यताओं के अनुसार दोनों ही विष्णु के रूप हैं। यदि संवैधानिक विषय की बात करें तो अनु0 25 के अंतर्गत हिन्दू, जैन, बौद्ध और सिखों को उनके धर्म के पालन और उसके प्रचार का अधिकार प्राप्त है किन्तु यह कानून इस अधिकार से भी वंचित करता है। यह अनु0 26 में मिले धार्मिक स्थल प्रबंधन के अधिकार को भी बाधित करता है। संवैधानिक दृष्टि से केंद्र को ऐसे कानून बनाने का अधिकार नहीं है क्योंकि संविधान के अनुसार तीर्थ स्थल और ला एंड ऑर्डर का विषय राज्य से संबन्धित है। बंगलादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अत्याचार हम सब देख रहे हैं। ऐसी ही स्थिति भारत में भी रही है। चूंकि भारत में अभी हिन्दू बहुसंख्यक है इसलिए लेफ्ट इकोसिस्टम कानून के माध्यम से भारत के हिंदुओं के मानवाधिकार का हनन करता रहा है। उसी का प्रतीक यह कानून भारत में हुयी हिंदुओं की प्रताड़ना, उनके अपमान और धार्मिक स्थलों को रौंदे जाने को जायज़ कृत्य बना रहा है

Comments 0

Comment Now


Total Hits : 298616