Sunday ,8th September 2024

वायनाड में प्रियंका को लाने के निहितार्थ

 

सुरेश हिंदुस्तानी

कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने केरल की वायनाड सीट से इस्तीफ़ा देकर उपचुनाव कराने का रास्ता साफ कर दिया है। अब राहुल गांधी उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से ही सांसद रहेंगे। इसके पीछे का कारण यही माना जा रहा है कि रायबरेली सीट गांधी परिवार के ज्यादा करीब है। राहुल गांधी के दादा फिरोज खान, दादी इंदिरा गांधी और माँ सोनिया गांधी भी यहां से सांसद रह चुकी हैं। इसलिए अब राहुल गांधी विरासत में मिले उत्तराधिकार को ही अपने पास रखकर राजनीति करने की ओर प्रवृत हुए हैं। वायनाड सीट छोड़ने के बाद यह सवाल उठने लगा था कि राहुल गांधी नहीं तो फिर कौन? हालांकि अब इस सवाल का जवाब भी मिलने लगा है। वायनाड सीट से राहुल गांधी की बहन प्रियंका वाड्रा को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी हो रही है। राष्ट्रीय राजनीति में शामिल हो चुकी प्रियंका वाड्रा के लिए यह पहला चुनाव होगा। कांग्रेस वायनाड को प्रियंका के लिए सबसे सुरक्षित सीट मान रही है। ऐसे में सवाल यह भी आता है कि गांधी परिवार आज अपने लिए सुरक्षित सीट की तलाश क्यों करती है। जबकि राष्ट्रीय नेता के रूप में मानने वाले ये दोनों नेता देश की अन्य सीट से लड़ने की हिम्मत नहीं कर पाते। इससे पीछे का कारण यही है कि कांग्रेस को आज भी इस बात का डर है कि राजनीति के यह उभरते सितारे चुनावी तूफ़ान में कहीं उड़ न जाएं।

लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद कांग्रेस उत्साह से भरी हुई है। इस स्थिति का राजनीतिक आकलन किया जाए तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस अपने आपको अपराजेय मान रही है, जबकि यकीनन स्थितियां ऐसी नहीं हैं। कांग्रेस आज भी बहुत पीछे है। कांग्रेस को उत्तरप्रदेश में जो सफलता मिली है, उसके कारण क्या हैं, यह कांग्रेस की लोकप्रियता नहीं है। उसे एक वोट खींचने का अभियान ही कहा जाए तो कोई अतिरेक नहीं होना चाहिए। एक वर्ग विशेष के ज्यादातर वोट प्राप्त करना लोकप्रियता का पैमाना नहीं माना जा सकता। उत्तरप्रदेश के मामले में स्पष्ट रूप से कहा जाए तो यह कहना तर्कसंगत ही होगा कि एक क्षेत्रीय राजनीतिक दल समाजवादी पार्टी के कंधों पर सवार होकर कांग्रेस अँधेरे से उजाले की ओर यात्रा करने में सफल हुई है। कांग्रेस को जो वोट मिला है, उसमें समाजवादी पार्टी का बहुत बड़ा हिस्सा है। समाजवादी पार्टी द्वारा किए गए परिश्रम की प्रशंसा करनी होगी कि उन्होंने बहुत ही अच्छी योजना बनाकर चुनाव लगा और भाजपा के सपनों पर एक ऐसा चश्मा लगा दिया, जहां से स्पष्ट छवि का दर्शन नहीं किया जा सकता।

देश की राजनीतिक स्थिति का अध्ययन किया जाए तो यह कहना ठीक ही होगा कि इस बार के चुनाव परिणामों ने क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को मजबूती के साथ ज़िंदा कर दिया है। वैसे तो लोकसभा का चुनाव राष्ट्रीय राजनीति का विषय होता है, क्योंकि लोकसभा चुनावों के माध्यम से किसी प्रदेश की नहीं, बल्कि देश की सरकार चुनी जाती है, लेकिन इस बार के चुनाव में क्षेत्रीय मुद्दे ज्यादा चले, जिसके कारण क्षेत्रीय राजनीतिक दल एक बार फिर से अस्तित्व में आ गए। ऐसे में यह आसानी से कहा जा सकता है कि यह चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए खतरे की घंटी बजाने वाले रहे। क्योंकि राजग और इंडी गठबंधन दोनों ही बिना क्षेत्रीय दलों के कुछ भी नहीं हैं। अगर दोनों ही गठबंधन से क्षेत्रीय दल अलग हो जाएं तो भाजपा तो पहले नंबर पर ही रहेगी, लेकिन कांग्रेस ज़मीन तलाशती दिखाई देगी। ऐसे में वायनाड में प्रियंका वाड्रा को चुनाव मैदान में उतारना कहीं भारी न पड़ जाए।

राजनीतिक स्थिति यह है कि जिस वायनाड के सहारे राहुल गांधी ने दक्षिण में अपने राष्ट्रीय नेता होने का प्रमाण प्रस्तुत किया, वैसा प्रस्तुतीकरण क्या उनकी बहन प्रियंका वाड्रा कर पाएंगी। हालांकि प्रियंका वाड्रा के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है। अगर प्रियंका चुनाव जीत जाती हैं तो यह उनका राजनीतिक अभ्युदय ही होगा और अगर चुनाव में पराजित होती हैं तो उनको राजनीति का एक नया अनुभव प्राप्त होगा जो उनको भावी राजनीति के लिए सुखद ही होगा। यह इसलिए भी कहा जा रहा है कि राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा में बड़ा अंतर है। राजनीति में कोई किसी का विकल्प नहीं हो सकता। राहुल गांधी के विकल्प के तौर पर अगर प्रियंका को देखा जा रहा है तो इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। वायनाड सीट को कांग्रेस भले ही सुरक्षित मानकर चल रही हो, लेकिन यह सुरक्षित सीट नहीं है, क्योंकि यह वामपंथी प्रभाव की सीट है। राज्य में उनकी वामपंथी दल की सरकार भी है। ऐसे वामपंथी दल यह कतई नहीं चाहेंगे कि उनका राजनीतिक प्रभाव कम हो। इसलिए ऐसा लगता है कि इस बार वायनाड में वामपंथी दल भी इस चुनाव को एक बड़ी चुनौती के रूप में लेंगे। इसके साथ ही यह भी सुनने में आ रहा है कि वायनाड के चुनाव को भारतीय जनता पार्टी भी बहुत गंभीरता से ले रही है। यहां से भाजपा की ओर से किसे मैदान में उतारा जाएगा, यह अभी साफ नहीं है, लेकिन भाजपा का एक तबका वायनाड से अमेठी की पूर्व सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति इरानी को चुनाव लड़ाने की मांग कर रहा है। अगर ऐसा होता है तो चुनाव में असली रोमांच दिखाई देगा। चुनाव कौन जीतेगा और कौन हारेगा, इसके मायने नहीं हैं। मायने तो इसके रहेंगे कि वायनाड में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार बनेंगे। प्रियंका वाड्रा के लिए वायनाड जीतना आसान नहीं होगा।

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