Saturday ,12th October 2024

छोटे से शहर की स्मृति औऱ सपनो की एक रिलीज फ़िल्म..?

 

प्रेरणा गौतम
भोपाल

कहते है सफ़लता का मूल मंत्र है कड़ी मेहनत + पक्का इरादा = सफ़लता और जिसने इस मूलमंत्र को समझ लिया वो कामयाबी के शिखर पर जरूर पहुँचता है । ये कहावत पढ़ने में जितनी आसान लगती है उतनी है नही क्योकि संघर्ष पथ पर वही चल सकता है जिसमे कुछ कर गुजरने का जज़्ज़ब होता है ।   

गंगा का एक घाट है ब्रज घाट जो गढ़मुक्तेश्वर में है ये एक छोटा सा कस्बा है इसी कस्बे से अपने सपनो को साकार करने स्मृति निकली,न किसी का साथ नाही कोई गॉड फादर पर सपना साकार करना उसका लक्ष्य था आज स्मृति गौतम ने अपने सपने को साकार कर ही लिया है,बतौर कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर (वेशभूषा निर्देशक ) कई दिग्गज अभिनेताओं के कॉस्ट्यूम डिज़ाइन किये जिसमे शत्रुघ्न सिन्हा, आशुतोष राणा,अनुपम खेर,शिल्पा शेट्टी , प्रदीप नागर, संजय कपूर,जतिन सरना,मुकेश तिवारी जैसे कई जाने माने अभिनेता शामिल है । न जाने कितने सालों संघर्ष के बाद भूख प्यास की चिंता किये बिना स्मृति आज माया नगरी में एक जाना माना चहरा है । इतने सालों की मेहनत, लगन,और रिश्तेदारों के ताने सहने के बाद वो इस मकाम पे पहुँची जहां से लोग सपने ही देखते रह जाते है माया नगरी में हर किसी को मुकाम नही मिलता ये वो नगरी है जहाँ सिर्फ लोग भीड़ का एक हिस्सा होते है लेकिन जिन्हें अपने हुनर का लोहा मनवाना आता है और जो संघर्ष के थपेड़े झेल सकते सफल वही होते है । कहा जाता है माया नगरी में रहते हुए माया से बच कर अपने जीवन के लक्ष्यों को हासिल करना जितना कठिन होता है उसकी जीत भी उतनी ही  खुशी से भरी होती है।

 बस  थोड़ा "सब्र"  काबिज करना पड़ता है, ऐसी ही एक छोटे से शहर की ये लाडली आज ज़िन्दगी के पंखों से ऊंची उड़ान भर रही है । स्मृति गौतम ने अपना उद्देश्य पहले से ही निश्चित कर लिया था कि एक दिन उसे अपना नाम माया नगरी में हासिल कर के ही दम लेगी स्मृति बताती है दिल्ली में रहकर फैशन डिज़ाइनर की डिग्री हासिल करने के बाद कुछ समय दिल्ली के कॉस्ट्यूम इंडस्ट्रीज में काम करते हुए लगा की उनकी ज़िंदगी बस यही तक सीमित नही है उन्हें कुछ बड़ा हासिल करना है  और फिर क्या उन्होंने कुछ मित्रों से संपर्क किया और बैग उठा कर और माता पिता का आशीर्वाद लेकर जा पहोंची मुम्बई , हज़ारो लोगो की तरह अपनी किस्मत को बस्ते में डाल अपनी कड़ी मेहनत के साथ लग गयी अपने सपने को साकार करने, न जाने कितनी बार नाकामयाबी का मुंह देखना पड़ा कितने ही प्रोजेक्ट से हाथ धोने भी पड़े क्योंकि लड़की होना आसान नही हर जगह आपको उसका मोल तो चुकाना ही होता है और अगर आप वो नही करते तो आपको बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है यही नही जब आपको किसी तरह मौका मिल भी जाता है और आप अपनी पूरी क्षमता से आगे कदम बढ़ाते है तब आपके आस पास के ही लोग जो कि आपके अपने  वेल विशेर्स होते हैं वही आपके लिए चक्रव्यूह भी बनाते है,और अगर लड़की अपनी माता पिता के संस्कार को साथ रखे तो ऐसी लड़कियों के लिए कामयाबी हासिल करना थोड़ा और मुश्किल हो जाता है  ।

स्मृति बताती है उन्होंने 7 सालों तक मुम्बई में बेहद कठिन परिस्थितियों का सामना किया कभी कभी पैसे न होने के चलते भूखे भी रहना पड़ा तो कभी कभी ज़िन्दगी वड़ा पाओ सी लगी लेक़िन रिश्तेदारों के ताने गालियां उनके कानों में गूंजती रही और वो ज़िन्दगी को जीना भूल कर लक्ष्य की तरफ बढ़ती रही ।और आज ये मुकाम हासिल किया उनका उद्देश्य सिर्फ पैसा कमाना कभी नही था। 


स्मृति बताती है अपने संघर्ष के दिनों में उन्होंने बहौत कुछ सहा सिर्फ काम का नही बल्कि उनकी वजह से उनके माता पिता को भी लोग घर आ कर,फ़ोन पर उनके प्रति न जाने क्या क्या बोलते रहे मगर माता पिता ने कभी पलटकर कुछ नही बोला , स्मृति का कहना है मेरी मेहनत से ज्यादा मैं अपनी कामियाबी का श्रेय अपने माता और पिता को देना चाहती क्यों क्योंकि सिर्फ उन्होंने ही नही बल्कि उनके साथ उनके माता और पिता ने भी बोहोत कुछ सहा है उनके कारण।

मैं धन्य हु मुझे ऐसे माता पिता और ऐसा परिवार मिला और उनका साथ मिला तभी मैं आज जो कुछ भी बन पाई हूँ सब मेरे माता पिता का ही आशीर्वाद है । लेकिन हैं आज मेरी कामयाबी उनसब के लिए जवाब है जो उस समय मेरे माता पिता उन्हें नही दे पाए ।

स्मृति गौतम का मानना है सब की इच्छा होती है कोई अधिकारी बनना चाहता है कोई जज तो कोई लॉयर, जरूरी नही आप इन्हें सब डिग्री को प्राप्त करके अपना नाम बनाओ, जबकि जज और अधिकारी बनना काफी आसान होता है असली मेहनत तो आपको समाज से लड़ कर,समाज में अपना नाम हासिल करने में होती है,उनका कहना है जब उनका नाम बड़े पर्दे पर आया तो एक पल में सबके चेहरे मेरे सामने आ गए फिर चाहे लोगो के ताने हो या  माता पिता की ख़ुशी सब एक साथ उनके  सामने आगया ,और उनकी आंखे खुशी से भर गई और फिर उन्होंने बस यही बोला बस अब रुकना नही है, मेरा मानना है विजय का नगाड़ा जब बजता है तब शोर चारो दिशाओँ में  गूँजता है और फिर आपके अंदर पहले से ज्यादा शक्ति का संचार होता है  आखिर में यही कहूंगी  ।
हौसले अगर बुलंद हो ,तो एवरेस्ट भी आपको अपने घर की छत सी लगती है

  स्मृति गौतम अपने माता पिता के साथ साथ पूरे पारिवार का तो नाम रोशन किया ही और साथ साथ हज़ारों लोगों को भी प्रेरणा दी है जो सपने देखते तो है मगर समाज के कारण अपने सपने को पंख देने में संकोच कर देते हैं।

वैसे तो हर पिता का अपनी बेटियों से ज्यादा लगाव होता है पर पिता बेटियों को लेकर चिंतित भी होता क्योकि एक मशहूर शायर ने "एक छोटे गाँव की बेटीयो के पिता के लिए लिखा है छोटे से गाँव का एक बाप हूँ ।"

बेटीयो का बाप हूँ
डरता हूँ तेरे शहर से ।।
तेरे शहर में रहने वाले
 लोगो के आंखों में नाखू
निकल आये है ।

पर आज जब स्मृति की इस कामयाबी को उनके पिता जब देखते होंगे तो डर नही गर्व करते होंगे और आज शायद उन रिश्तेदारों को जबाव देने उनके पास भी शब्द होंगे जो ऊंचे ओहदो पर बैठकर ये कहते थे कि लड़की है क्या कर लेगी ...और पिता का जवाब होगा लड़की है लड़ सकती है। ?

 

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