देश के दस प्रमुख विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भेजे पत्र में सरकार पर केंद्रीय एजेंसियों को हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने का आरोप लगाया है. उनका आरोप है कि असली मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए सरकार विपक्ष के खिलाफ एजेंसियों का इस्तेमाल कर रही है'
पत्र में कहा गया है, "कानून को बिना किसी डर या उत्साह के लागू किया जाना चाहिए. लेकिन इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. मौजूदा समय में मनमाने ढंग से, चुनिंदा और बिना किसी औचित्य के कई विपक्षी दलों के प्रमुख नेताओं के खिलाफ इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. इस अभियान का एकमात्र उद्देश्य प्रतिष्ठा को नष्ट करना और भाजपा से वैचारिक व राजनीतिक रूप से लड़ने वाली ताकतों को कमजोर करना है. यह हमारे देश के लोगों का ध्यान आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि, बढ़ती बेरोजगारी और आजीविका के नुकसान और जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की बढ़ती असुरक्षा की उनकी सबसे जरूरी दैनिक चिंताओं से ध्यान हटाने के लिए भी किया जा रहा है।
एजेंसियों की सबसे ज्यादा सक्रियता उन मामलों में ही देखने को मिल रही है जिसमें गैर-बीजेपी दलो के नेता या मंत्री शामिल हैं? क्या यह भी संयोग है कि पार्टी बदल कर बीजेपी का दामन थामने वाले दागी नेताओं के मामले में इन एजेंसियों की धार कुंद पड़ जाती है? लेकिन इस मामले में अदालतें भी कुछ काम नहीं कर सकतीं. इसलिए उनकी शरण में जाना समय की बर्बादी है. इसका मुकाबला राजनीतिक तौर पर ही किया जा सकता है।
बीजेपी के जिन नेताओं के दामन पर दाग और भ्रष्टाचार में शामिल होने के आरोप लग चुके हैं उनमें कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री ,असम के मुख्यमंत्री और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अलावा कर्नाटक के ही रेड्डी बंधु शामिल हैं. रेड्डी बंधुओं पर तो 16 हजार करोड़ से ज्यादा के खनन घोटाले में शामिल होने का आरोप है। हिमंता बिस्वा सरमा के कांग्रेस में रहते बीजेपी ने उन पर अमेरिकी कंपनी लुइस बर्गर को ठेके सौंपने के आरोप लगाए थे. उनके बीजेपी में शामिल होते ही यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। बहुचर्चित व्यापम घोटाले का अब कहीं जिक्र भी नहीं होता. सीबीआई इस मामले में शिवराज सिंह चौहान को क्लीन चिट दे चुकी है. इसी तरह उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना नेता राणे के खिलाफ भी कई मामले थे. लेकिन राणे के बीजेपी में शामिल होने के बाद अब उनके खिलाफ मामलों की चर्चा नहीं होती
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, "दोनों केंद्रीय एजेंसियों की हाल की कार्रवाइयों से साफ है कि बीजेपी और गैर-बीजेपी दलों के नेताओं के खिलाफ जांच के मामले में उनका रवैया अलग-अलग है. यही वजह है कि विपक्ष इन एजेंसियों के कामकाज को राजनीतिक बदले की कार्रवाई का आरोप लगा रहा है
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