भारत में कोरोना वायरस की दूसरी लहर कहर बरपा रही है. ऐसे में महाकुंभ जैसे आयोजनों ने आग में घी का काम किया. लेकिन उस आयोजन के सबक भूल अब अमरनाथ यात्रा की तैयारी की जा रही है. राज्य प्रशासन की योजना बालताल और चंदावड़ी में अस्थायी शिविर स्थापित करने की है. बालताल से श्रद्धालुओं को 14 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी होगी. चंदावड़ी से भक्तजन 32 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद अमरनाथ की पवित्र गुफा तक पहुंच पाएंगे. हालांकि अधिकारियों ने फिलहाल ऑनलाइन नामांकन का काम रद्द कर दिया है लेकिन उनका कहना है कि यात्रा 28 जून से 22 अगस्त तक तय समय से ही होगी. हाल ही में हरिद्वार में महाकुंभ का आयोजन हुआ था जिसकी दुनियाभर में आलोचना हुई थी. इस आयोजन में लाखों लोग तब जमा हुए थे जब पूरे देश में कोरोना वायस के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो रही थी. महाकुंभ में शामिल हुए सैकड़ों श्रद्धालु और कम से कम नौ बड़े संत कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं. महाकुंभ के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ती देखने के बाद बहुत से मंचों से इस आयोजन को स्थगित करने की मांग की गई थी. लेकिन स्थानीय अधिकारियों ने इस मांग पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. अब कई स्वास्थ्य विशेषज्ञ अमरनाथ यात्रा को लेकर भी चिंता जता रहे हैं. कश्मीर के राजनीतिक दल भी इस यात्रा को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं हैं. स्थानीय नेशनल कान्फ्रेंस के नेता तनवीर सादिक कहते हैं कि पूरे भारत में हालात खराब हैं. वह कहते हैं, "बेहतर होगा कि इस साल अमरनाथ यात्रा प्रतीकात्मक ही हो और कुछ लोगों को ही पवित्र गुफा की यात्रा करने की इजाजत दी जाए. नहीं तो यहां तबाही मच सकती है.” इस यात्रा की तैयारी जनवरी से ही चल रही है जब सरकार ने छह लाख श्रद्धालुओँ की अर्जियां आमंत्रित की थीं. लेकिन प्रशासन के भीतर भी लोग हालात को लेकर चिंतित हैं. जम्मू सचिवालय में एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर डॉयचे वेले को बताया, "वैक्सीन आने और रोज आने वाले मामलों की संख्या कम होने के बाद अधिकारियों की चौकसी कम हो गई. सारे कामकाज सामान्य हो गए. और अब सब कुछ बिखर रहा है.” अमरनाथ यात्रा को आयोजित करने वाले श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड का कहना है कि अप्रैल में भारत के अलग-अलग हिस्सों से 30 हजार श्रद्धालुओँ ने यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है. 2019 और 2020 में यह यात्रा नहीं हुई थी. 2019 में धारा 370 खत्म होने के बाद तनाव के चलते भारत सरकार ने यात्रा रद्द कर दी थी जबकि 2020 में देशव्यापी लॉकडाउन के कारण यात्रा नहीं हो पाई. लेकिन इस बार सरकार यात्रा कराने को लेकर काफी उत्सुक दिखती है. यहां तक कि महाकुंभ के बाद मामलों में आए उछाल से भी कोई सबक नहीं सीखा गया है. कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी के नेता ठाकुर पूरन सिंह की कुंभ से लौटने के बाद ही मौत हुई थी. हिंदू-बहुल जम्मू इलाके में कुंभ करके लौटे सैकड़ों लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं. कश्मीर में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है. राज्य में एक करोड़ तीस लाख लोगों के लिए सिर्फ 2,599 कोविड बेड हैं जिनमें 324 आईसीयू बेड हैं. इनमें से 1,220 बिस्तर पहले से ही इस्तेमाल में हैं. अमरनाथ यात्रियों के लिए जो स्वास्थ्य सलाह जारी की गई है, उसमें वायरस और उससे बचने के बारे में कोई जिक्र नहीं है. स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता शेख गुलाम रसूल कहते हैं कि असावधानी स्थानीय लोगों और यात्रियों दोनों के लिए खतरनाक हो सकती है. वह बताते हैं, "ऊंचाई पर ऑक्सीजन का स्तर बहुत कम होता है. और यह बीमारी तो सांस पर ही वार करती है. यह आयोजन बहुत खतरनाक हो सकता है और इसे संभालना हमारे खराब स्वास्थ्य ढांचे के बस की बात नहीं होगी. सरकार को जिम्मेदारी से व्यवहार करते हुए इस यात्रा को स्थगित कर देना चाहिए.” कश्मीर इलाके में ही रविवार को 2,300 नए कोविड-19 केस सामने आए और 21 लोगों की मौत हुई. नए मामलों में 2,00 से ज्यादा मामले आप्रवासी मजदूरों के हैं. उत्तराखंड में डिवेलपमेंट फॉर कम्यूनिटीज फाउंडेशन नामक संस्था ने हरिद्वार के कुंभ मेले में कोरोना वायरस मामलों पर नजर रखी थी. इस संस्था के संस्थापक अनूप नौटियाल कहते हैं कि इस वक्त कोई भी आयोजन घातक हो सकता है क्योंकि वायरस की दूसरी लहर तेजी से फैल रही है. वह कहते हैं, "सरकार ने भरसक कोशिश की कि लोग कोविड-सुरक्षित रहें और नियमों का पालन करें. उसके बावजूद हमने देखा कि इतनी बड़ी संख्या में लोगों के जमा होने पर जमीन पर इन नियम-कायदों को लागू करवा पाना कितना मुश्किल था.” विश्लेषकों का कहना है कि घाटी में पर्यटन को बढ़ावा देना भारत सरकार की प्राथमिकता है क्योंकि इसे इलाके में सामान्य होते इलाकों के रूप में देखा जाता है.
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