फिर याद आई वो रात जिसका खौंफ आज भी मुझमें समाया हुआ है
लेख - राजेंद्र सिंह जादौन
मैं भोपाल हूॅ.......... 1984 की उस काली रात का गवाह हूं। उन लासो के ढेर को देखा है मैनें। मानों कल ही की तो बात थी। 34 साल बाद भी आज वों मंजर मेरी आंखो के सामने ही है। मुझे आज भी लगता है कि उन लासो के ढेरो में से एक बच्ची उठ कर आएगी और कहेगी....... मेरी मां किस ढेर मे पड़ी है। और मे उसके र्दद भरे सवाल का क्या जवाब दूं। उस मंजर को देखकर मुझे एहसास हुआ कि मानों मुगल एक बार फिर मुझ पर बुतपरस्तीयों पर आदम हो।
वो रात जिसका खौंफ आज भी मुझमें समाया हुआ है। उसका असल कारण क्या है उसे बयां करने के लिए मुझे आपको ले जाना होगा 34 साल पहले।
यूनीयन कार्बाइड नामक एक अमेरिका फैक्ट्री जो कीटनाशक बनाने के लिए भोपाल में स्थापित की गई। जिसने शहरवासियों के चेहरो पर मुस्कान ये सोचकर ला दी कि रोज गार मिलेगा और परिवार चलेगा। लेकिन सायद ऊपर वाले को गवारा नही था। कि उस मुस्कुराते हुए चहरो पर यूं ही खुशिया दिखती रहंे। हुआ यूं कि 2 और 3 दिसंबर 1984 गैस के जबरजस्त धमाकों ने पूरे शहर में वो कोहराम मचाया कि उन धमाकों के जख्मों का ईलाज आज भी वो हजारों परिवार ढूंढ रहे है जिनके जले हुए दामन इस बात के गवाह है।
हालात ये हैं कि 34 साल बाद भी शहर साफ पानी ओर मूलभूथ सुविधाओं के लिए तरस रहा है यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से 2 व 3 दिसम्बर 1984 की रात रिसी जहरीली एमआईसी गैस के कारण एक ही रात में करीब 3 हजार लोग मौत का शिकार हो गए। बाद में यह आकड़ा 15 हजार तक जा पंहुचा। गैस संगठनों का कहना है कि 20 हजार से अधिक लोग जहरीली गैस के कारण मौत का शिकार हुआ। 5 लाख 74 हजार लोग जहरीली गैस के कारण हमेशा के लिए बीमार बन गए।
यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री कीटनाशक बनाने के लिए शुरू की गई थी। अमेरीका स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में जहरीली गैसों के लिए केवल दस टन क्षमता वाले टैंक होते थे. लेकिन नियमों की अनदेखी कर उत्पादन बढ़ाने के लिए भोपाल स्थित फैक्ट्री में 40 टन क्षमता वाले टैंक बना दिए गए। जानकरो का मानना है कि अगर 10 टन क्षमता वाले टैंक बनाए जाते तेा दवाब कम रहता हैं जिसमे टैंक फटने जैसी घटना नही होती। अगर होती भी तो कम गैस होने के कारण नुकसान कम होता। यूका भोपाल मे टैंको की क्षमता 40 टन रखी गई थी। जब कि दस टन क्षमता होना थी। इन टैंको के मैंटेनेंस के लिए कर्मचारियों की जरूरत थी। लेकिन र्खच कम करने के लिए यूनियन कार्बाइड प्रबंधक ने कर्मचारियो की छटनी कर दी थी। इससे टैंकों का रखरखाव भी सही ढंग से नही होता था। यूनियन कार्बाइड कर्मचारियांे को सख्त निर्देश दिए गए थे। कि वह किसी भी वरिष्ठ अधिकारी से नहीं मिल सकते हैं। इसके चलते वारेन एंडरसन को उन्होंने कभी भी आमने-सामने नही देखा। श्यामला हिल्स पर यूका की प्रायोगशाला थी। जिसमे वह कीटों पर नए-नए कीटनाशकों का उपयोग करते थे। तब छोटे कर्मचारियों को एंडरसन या अन्य बडे अधिकारीयांे से मिलने कि अनुमति नहीं होती थी। इस लिए एंडरसल के भोपाल आने पर भी वे उन्हे देख तक नही पाते थे। नई दिल्ली वर्ष 1984 भोपाल गैस त्रासदी के लिए जिम्मेदार अमेरीकी मुल कंपनी यूनियन कार्बाइड कार्पोरेशन आॅफ इंडिया के पूर्व चेयरमेंन वारेन एंडरसन को मध्यप्रदेश सरकार ने केन्दª सरकार के आदेश पर 7 सितंबर 1984 को गिरफ्तार किए जाने के बाद हि रिहा किया गया था। गैस त्रासदी के बारे मे इस तथ्य को 8 दिसंबर 1984 के सी.आई.ए दस्तावेजो से पता चला है। यह बात है एंडरसन यूनियन कार्बाइड के भोपाल प्लांट से लिक घातक मिथाईन आइसोसाइनेट एमआईसी गैस के पांच दिन बाद और उसके भारत छोड़ने के एक दिन बाद। दस्तावेजो के मुताबिक एंडरसन की जल्दी रिहाई के लिए प्रधानमंत्री राजीव गांधी की केन्दª सरकार द्वारा आदेश दिया गया था उस दौरान चुनाव भी होने थे, केन्दª और मध्यप्रदेश सरकार ने यूनियन कार्बाइड के खिलाफ राजनितिक फायदा उठाने के मकसद से ये निर्देश दिए थे। केन्दª सराकर को लगा था की गैस त्रासदी के बाद जनता के दवाब से बहुराष्ट्रीय कंपनीयो विशेष रूप से अमेरीकी कंपनीयो के साथ विदेशी निवेश को विकसित करने मे सावधानी से एक नही सरकार को मजबुर कर देगी दस्तावेजो के मुताबिक चुनाव पास आने के साथ राज्य और केन्दª मे राजनैताओ यूसीआईएल यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के लिए खुदके दोष से ध्यान हटाने कि कोशिश कर रहा है और मुल कंपनीयो से मुआवजा एंठ रहे थे। गैस रिसाव के समय मे भोपाल के जिला कलेक्टर मोती सिंह थे एंडरसन को 7 दिसंबर को लगभग दो बजे गिरफ्तार किया गया था। लेकिन 500 डालर के बांड पर उसे उसी दिन रिहा किया गया था और नई दिल्ली के लिए राज्य सरकार के विशेष विमान मे भोपाल के बाहर उड़ा कर ले गए थे। सिंह ने दावा किया की राज्य सरकार के तत्कालिन मुख्य सचिव ने एंडरसन को रिहा कराने का आदेश दिया था। 1984 मे मध्यप्रदेश के मुख्ययमंत्री अर्जुन सिंह थे माना जा रहा है सिंह के ही निर्देश पर मुख्य सचिव ने एंडरसन को रिहा कराने के आदेश दिए। गौर तलब है की एंडरसन पर सदोष मानव हत्या, गंभीर हमले, मनुष्य और जानवरो को जहर देने का आरोप था। इस भिषड़ हादसे के बाद कुछ यु रहा प्रदेश सरकार का रूख।
3 दिसंबर 1984 एंडरसन के खिलाफ थाना हनुमानगंज मे एफआईआर 7 दिसंबर 1984 को वारेन एंडसन को अपने साथी अधिकारीयो के साथ गिरफ्तार किया गया लेकिन 500 डाॅलर के बांड पर छोड़ दिया गया। इसके बाद उसे सरकारी विमान से दिल्ली पहुंचाया गया। जिस के बाद वह अमेरीका चला गया और कभी वापस नही आया। 1 दिसंबर 1987 को सीबीआई ने वारन एंडरसन के खिलाफ चार्ज शीट दाखिल की। 9 फरवरी 1989 को सीजेएम कोर्ट भोपाल ने वारेन एंडरसन के खिलाफ नानवेलेवल वारंट जारी किया एंडरसन कोर्ट मे हाजिर नही हुआ। 1 फरवरी 1992 सीजेएम कोर्ट ने वारेन एंडरसन, यूनियन कार्बाइड कंपनी यूएएस को भगोड़ा घोषित किया। 27 मार्च 1992 सीजेएम कोर्ट ने एंडरसन के खिलाफ नानवेलेवन वारंट जारी कर अरेस्ट करने के आदेश दिए। साथ ही भारत सरकार को उसका प्रत्यार्पण करने के आदेश भी दिए। 6 अगस्त 2001 अटाॅर्नी जनरल सोली सोराबजी ने भारत सरकार को अपना अभिमत देते हुए कहा की एंडरसन का प्रत्यार्पण संभव नही है, इसलिए सरकार को इसके प्रयास नही करने चाहिए। जून 2004 यूएस स्टेट एंड जस्टिस डिपार्टमेंट ने भारत सरकार की एंडरसन की प्रत्यार्पण की मांग को खारिज कर दिया। जूलाई 2009 सीजेएम कोर्ट ने एक बार फिर वारेन एंडरसन के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी करते हुए सीबीआई को उसे पेश करने के आदेश दिए। 7 जून 2010 सीजेएम कोर्ट ने यूनियन कार्बाइड के भारतीय अधिकारियों को दो-दो साल की सजा सुनाई और जमानत पर रिहा कर दिया।
2 अप्रैल 2013 सीबीआई ने सीजेएम कार्ट मे स्टेटस रिपोर्ट पेश करके कहा कि अमेरिका के स्टेट एंड जस्टिस डिपार्टमेंट ने एंडरसन के प्रत्यार्पण पर कोई निर्णय नहीं लिया है। यह मामला अभी भी विचारधीन है एंडरसन की मोट के बाद ये तो साबित हो गया की सरकार के ढीले रावये के चलते एंडरसन की मौत के वक्त के 30 साल मे भी भोपाल नही लाया जा सका। अखिरकार एंडरसन को नवम्बर 2014 को उपरवाले की कोट में हाज़िर होना पड़ा । इतना दर्द लिए भोपाल और भोपाल के गैस पीड़ित परिवार आज भी मुलभुत सुविधाओं के आभाव में जी रहे है। कई सत्ता आई और गयी पर इनके विकास के नाम पर इन्हे सिर्फ मिला तो छलावा।
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