ठर्र हिन्दूवादी दिमागी पेंच या गांठ की गुत्थी को केवल गांधी ने समझा था. उनके कारण दक्षिणपंथी विचारधारा चौके छक्के नहीं मार पाई. आखिर बाउंसर फेंकने का फैसला कर उनकी हत्या कर दी गई. सोचा गया उसके साथ उनकी विचारधारा का भी अंत हो जाए.
इस अनुमान को लेकर हिन्दूवादी योजना गलत नहीं हुई. आखिर गांधीवाद को उनकी मातृ संस्था कांग्रेस ने ही तो श्मशान के बदले कब्रिस्तान कर दिया. कब्रिस्तान वाले पाकिस्तान भले ही चले गए थे. आज दुनिया में हिंसा और आतंकवाद फैलाने में इस्लामी आतंकवादी सरगना पाकिस्तान में भी तो हैं. गांधी संघ विचारधारा के लिए मुकाबले में थे. संघ परिवार के बरक्स वे अकेले खड़े थे. उन्होंने गाय को फकत पशु माना. माता नहीं कहा. उससे भी निरीह पशु बकरी को अपनाया.
संघ की सवर्ण विचारधारा दलितों को गले नहीं लगाती. गांधी ने उन्हें हरिजन कहा. गांधी ने सेवा संगठनों के सफेदपोश जमावड़ों को बनाने के पहले कुष्ठ रोगियों की सेवा की. उनका मैला तक उठाया. नहीं उठाने पर बड़ी बहन और बीवी को अपने आश्रम से बेदखल किया. सादगी से रहे. विदेशी कपड़ों की होली जलाई.
राम पर गांधी ने एकाधिकार कायम किया. मरते वक्त हे! राम कहा. उनकी धर्म में गहरी लेकिन लचीली आस्था पूरे संघ परिवार की आस्था को कमतर बनाती रही. स्वावलंबन के प्रतीक चरखा को शहरी और ग्रामीण अकिंचन महिलाओं तक के घर घर पहुंचाया. अपने हाथों सिली चप्पल पहनी. हाथों से खादी के इतने ही आधे अधूरे वस्त्र पहने कि चर्चिल ने उन्हें नंगा फकीर तक कहा. गांधी ने स्वैच्छिक गरीबी, स्वैच्छिक सादगी और स्वैच्छिक धीमी गति का फार्मूला देश के अवाम के सुपुर्द किया. आसाधारण बैरिस्टर होने तथा वर्षों विदेशों में रहने के कारण उनकी विश्व दृष्टि के मुकाबले संघ परिवार की अतीतोन्मुखी लेकिन भौगोलिक देशज नजरों में समय और समाज को समझने मोतियाबिंद तक झरता रहा. गांधी मुसलमानों के बिना संविधान सभा, संविधान और आजादी तक के पक्ष में नहीं थे. उन्होंने कुत्सित इतिहास दृष्टि को गलत करार दिया. मनुष्यता के पाठ्यक्रम से उन्होंने सामयिक विकृतियों को बेदखल करने की कोशिश की. गांधी वैचारिक धु्वतारे की तरह अटल लेकिन दृष्टिदोषियों के लिए फकत झिलमिलाते ही रहते हैं.
अपनी मौत का आगाज देखते गांधी बेवक्त लेकिन बेरुख होकर चले गए. संघ परिवार के इक्कीसवीं सदी के रणनीतिकारों ने समय के साथ कदमताल करते नवपूंजीवाद के साथ हमप्याला, हमनिवाला जैसा रिश्ता कायम किया है. अपना भविष्य उज्जवल बनाने यही तरकीब भाई. कारपोरेट दुनिया का पहाड़ उठाकर यह विचारधारा खुद को महाभारत के नायक कृष्ण की उंगली थामने वाली भूमिका का भ्रम पालती रही. कांग्रेस से मिला हुआ कॉरपोरेटी जिन्न इक्कीसवीं सदी के मध्य तक भारत में त्रासदी बुनने बुनने को है. कांग्रेस का बेड़ा मनमोहन सिंह जैसे अर्थशास्त्री ने गर्क कर ही दिया. सियासत की बड़ी पटरी पर कांग्रेस की रेल दौड़ रही थी. उसे अर्थशास्त्र की छोटी पटरी पर चलाने का फुस्स एडवेंचर कांग्रेस ने किया. कांग्रेस संपत्ति की दुनिया का हेतु और पाथेय कभी नहीं थी. अब तो कांग्रेस के शीर्ष नेताओं का कुपठित होना कोढ़ में खाज है. इन सब लक्षणों से दोनों बड़ी हमकदम पार्टियां विचारधारा के स्तर पर त्रासदी ही बुन रही हैं. आगे होता रहने की दुरभिसंधियां भी हैं.
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