आज एक तस्वीर दिखी सोशल मीडिया पर. दो छोटे-छोटे बच्चे. देखने में ही गरीब लगते. यही कोई चार-पांच साल के. बदन पर कोई कपड़ा नहीं. एकदम नंगे. आंखों में आंसू और चेहरे पर डर. गले में दो हवाई चप्पल. सिर के बाल बेतरतीब तरीके से कुछ जगहों पर छिले हुए. इसी के साथ एक दूसरी तस्वीर भी एक और जगह दिखी. इसमें एक हाथ उनके चेहरे के पास दिखता है.
उस हाथ का थोड़ा सा चेहरा भी. इसके अलावा कोई जानकारी नहीं. संभव है कहीं हो या न हो. पता नहीं अभी की तस्वीर है या पुरानी है. किसी ने क्यों डाली होगी, उसका क्या उद्देश्य होगा, कहा नहीं जा सकता. कुछ देर बाद सोशल मीडिया पर ही एक और तस्वीर दिखी. यह तस्वीर पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया पर चल रही है. अब वही तस्वीर इन दोनों बच्चों वाली तस्वीर के साथ जोड़कर डाली गई है.
इसमें एक परिचय भी लिखा है, 'नए भारत की नई तस्वीर'. इस तस्वीर में हाफ बनियान पहले खून से लथपथ एक व्यक्ति कुछ कहते या खुद को बचाते दिख रहा है जिसके आगे-पीछे खड़े कुछ लोग दिखाई देते हैं. यह झारखंड की है.
यह तस्वीर बीते दो दिनों से दिख रही थी. झारखंड में बच्चा चोरी करने वाले गिरोह की अफवाह की बिना पर एक ही दिन में छह लोगों की हत्या कर दी गई थी. इस पर विस्तार में जाए बिना यह देखना अधिक महत्वपूर्ण है कि कौन और किनके बीच अफवाहें फैलाकर हत्या को आसान और जायज बनाने की साजिश कर रहा है. लेकिन यह झारखंड की तस्वीर सहारनपुर की नहीं है. सहारनपुर के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं. उसके बारे में सब लोग जानते होंगे. कम से कम दो हिस्सों के लोग तो जानते ही होंगे.
कितनी ही तस्वीरें आती हैं, छाती हैं, और छाई रहती हैं या अनदेखी की जाती रहती हैं. 2002 में एक तस्वीर आई थी. तब आज की तरह का सोशल मीडिया नहीं था और न आज की तरह के टीवी थे. अखबार-पत्रिकाएं थीं. उस समय के एक रोते हुए व्यक्ति की फोटो थी. अखबार देखने वाले, कहें कि कम से कम लोग, जरूर नहीं भूले होंगे. अपने-अपने तरह की और भी तस्वीरें हो सकती हैं. अब जैसे ऐश्वर्या राय की कांस के रेड कार्पेट की भी तस्वीर है. ओडिशा की वह तस्वीर भी जिसमें एक व्यक्ति अपनी पत्नी का शव कंधे पर लेकर जाता है और साथ में उसकी बेटी पीछे-पीछे चलती रहती है. फिर असम से लेकर छत्तीसगढ़ तक की ऐसी बहुत सारी तस्वीरें. इसके अलावा, भी ऐसी कितनी ही तस्वीरें, जिन्हें देखकर सब तो नहीं, लेकिन 'कम से कम कुछ लोग' जरूर कुछ सोचने को मजबूर होते होंगे. बिना किसी जानकारी के इन बच्चों की तस्वीर देखकर पता नहीं क्यों सबसे पहले जो तस्वीर उभरकर जेहन में आई, वह आयलान कुर्दी की थी. इसमें देशभक्ति खोजने की जरूरत नहीं.
अपने यहां भी अब ऐसी तस्वीरें आम होती जा रही हैं. आयलान की इस तस्वीर ने कहते हैं पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया था. तीन साल का आयलान समुद्र तट पर आ-जा रही लहरों के बीच लाल टी शर्ट, गहरी नीली निक्कर पहने और पैरों में जूते औंधे मुंह निष्प्राण पड़ा था. उसकी कमर हल्की सी मुड़ी हुई थी. उसी तरह गरदन भी. चेहरा समुद्र की ओर. सीरियाई आयलान. इस्लामिक स्टेट की क्रूरता से जन्मे सीरियाई शरणार्थी संकट का शिकार.
यह तस्वीर ऐसे समय आई है जब सेना की जीप में 'पत्थरबाज' को ले जाने वाले सैन्यकर्मी को सम्मानित किया गया है और प्रचारित भी किया जा रहा है. ऐसे समय आई है जब टीवी चैनलों को तस्वीर नहीं पाकिस्तान पर सैन्य कार्रवाई के वे विडियो सौंप दिए गए हैं जिनके जरिये बताया जा रहा है कि कैसे उसकी चौकी को तबाह कर दिया गया है. रक्षा मंत्री को भी यह कहते हुए बताया जा रहा है कि सेना की कार्रवाई को समर्थन प्राप्त है. यह तस्वीर ऐसे समय आई है, जब कोई किसी को किसी भी नाम पर मार दे रहा है. संस्कृति के नाम पर भी हो सकता है, देशभक्ति के नाम पर भी हो सकता है, गाय के नाम पर भी. इन दोनों बच्चों की तस्वीर देखते हुए यह लग सकता है कि शायद इन्होंने ककड़ी चुरा ली होगी. उसकी यह सजा होगी जो किसी देशभक्त ने तय कर दी होगी. उसी तरह जैसे झारखंड में तय कर दी गई.
कान नहीं देखेंगे और कौए को खदेड़कर मार डालेंगे. यह कैसी संस्कृति और कैसी सभ्यता है, जिसमें साथ चलते भाई-बहन और पति-पत्नी पर संस्कृति के नाम पर हमला कर दिया जा रहा है. बच्चे चोरी हो रहे हैं, इससे किसी को कहां इनकार है. लेकिन क्या बच्चों की तस्करी करने वाले पकड़े जा रहे हैं.
मध्यप्रदेश समेत देश के विभिन्न हिस्सों में हजारों की तादाद में बच्चे गायब हैं और लगातार हो रहे हैं. किसी की देशभक्ति नहीं जगती. न सरकार की, न भारतीय संस्कृति के रक्षकों की. एक माल्या देश का करोड़ों लूटकर शान से भाग जाता है. किसी देशभक्त के पास उससे निपटने का न तरीका है और न जरूरत है. गरीबों की हत्या कर देंगे और बच्चों के गले में चप्पल डाल देंगे.
ये ब्रिटेन के चार्ल्स दंपति के बच्चे तो हैं नहीं कि झुलाते हुए खुद को गौरवान्वित महसूस करेंगे. पूरे घर का बदल डालेंगे की तर्ज पर जिस तरह देश को बदला जा रहा है, उसमें देश भी बचेगा या नहीं? यह तस्वीर ऐसे समय भी आई है, जब देश में तीन साल बीतने का जश्न मनाने की तैयारी का बखान किया जा रहा है. जश्न अभी बाकी है. दूसरी तरफ, इतनी जल्दी (तीन सालों) में ही लोगों को सहारनपुर से लेकर तमिलनाडु और जंतर मंतर तक यह मान लेने को मजबूर होना पड़ रहा है कि हमारे प्रधानमंत्री ने चाहे जितनी जुमलेबाजी की हो, अपनी एक बात अडिग हैं. करके भी दिखा रहे हैं.
इस मामले में उन पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता कि उन्होंने पूरे देश में अपना पेटेंट गुजरात मॉडल लागू कर दिया. इसके बावजूद अगर ऐसी तस्वीरों पर किसी को कुछ हो रहा है, तो इसमें उसी की गलती होगी. क्या कोई गुंजाइश बची है कानून के राज और तालिबानी राज पर बहस की?
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