आपने चचा के बड़े लड़के की बारात में मालवांचल आया हूं. अंगना में औरते लड़कियां विवाह का पारंपरिक गीत - गाली गा रही हैं - 'मांगटीका ना लिअईल ए तहार बहिन' .... मैं मुस्कुरा देता हूं, क्योंकि मांगटीका, हंसुली, बिछिया, हार सब रखा हुआ है.
लेकिन गाली गाना एक परंपरा है और रिवाज है. इससे इंकार करना अपनी संस्कृति को तोड़ना है. और अच्छा भी लगता है हमारे गांव आज भी पारंपरिक संस्कृति को निभा रहे हैं.
थोड़ी देर आंगन में रहने के बाद जिधर नाच चल रहा था उधर दोस्तों के साथ चला गया. अगल बगल वाद्य यंत्रों को बजाने वाले कलाकार खड़े होकर अपने-अपने बाजे बजा रहे थे और बीच में नृत्यकी अपनी पूरी कमनीयता के साथ कमर लचका रही थी.
पता नहीं क्यों यह अच्छा नहीं लगता. किसी स्त्री को नचाकर उसके ऊपर दस रुपए का नोट वरदेना जैसा कार्य आज तक नहीं कर सका.
तभी एक भारी भरकम बाजे की धुन सुनी - "मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनिया" ... चौंक कर देखा उस बजाने वाले को, और हतप्रभ रह गया. वो हमारे स्कूल के प्रधान अध्यापक थे.
मैंने जाकर स्कूल के प्रधान अध्यापक सर के पैर छुए और किनारे ले जाकर पूछा - सर ये क्या कर रहे हैं आप .. आप हिंदी साहित्य में एम ए हैं, आपने अध्यापन का कोर्स बी एड् भी किया है और नाच में इस तरह बाजा बजा रहे हैं? प्लीज़ मेरे साथ चलिए, फेंकिए इस बाजे को.
प्रधान अध्यापक खिसिया कर बोले - तुम जाओ यहां से मैं स्वरोजगार कर रहा हूं. नौकरी नहीं मिली, इसका रोना नहीं रो रहा बल्कि स्किल इंडिया डेवलपमेंट के अंतर्गत बाजा बजाना सीख कर कुछ कर तो रहा हूं.
मैंने समझाया – सर ! मैं समझ रहा हूं आपके फ्रस्ट्रेशन को. प्लीज आप मेरे साथ चलिए.यह काम आपके लिए नहीं है.
प्रधान अध्यापक सर बिगड़ गए एकदम. भीड़ इकट्ठी हो गई. प्रधान अध्यापक ने बाजे को माईक समझ कर बोलना शुरू कर दिया - 'साथियों! गौर से देखो भोपाल से आए इस लड़के को. मिसिर है मतलब शोषक तत्व है. यह भारत के स्वरोजगार योजना और स्किल इंडिया डेवलपमेंट सिस्टम को फेल करना चाहता है. ऐसे तत्वों पर ध्यान रखना होगा. यह देशद्रोही है नक्सलवादी है' ...
लोगों ने मुझे संदेह की दृष्टि से देखा और मैंने प्रधान अध्यापक को दया की दृष्टि से. हां! दया से ही देखे जाने के लायक हैं ऐसे लोग. और कमाल यह कि आप लाख समझाइए प्रधान अध्यापक जैसे लोगों को वो समझने को तैयार नहीं. क्योंकि उनका दिमाग, उनकी सोच, सब कुछ गिरवी है ऐसे लोगों के हाथों जो देश के मुद्दे तक बदल देते हैं.
देख लीजिए! आज अखबारों का मुख्य मुद्दा क्या है - तीन तलाक. टीवी, न्यूज चैनल्स का मुख्य मुद्दा क्या है - तीन तलाक. फेसबुक - व्हाट्स ऐप का मुख्य मुद्दा क्या है - तीन तलाक. हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट किसके बारे में बोल रहा है - तीन तलाक. अच्छा बताइए देश की जनसंख्या का कुल कितना प्रतिशत मुस्लिम समुदाय है? बीस प्रतिशत. बीस प्रतिशत में कितनी मुस्लिम महिलाएं तलाक पीड़ित हैं? चलिए मान लिया दस प्रतिशत.
अच्छा बताइए भारत की कुल कितनी आबादी गरीबी रेखा से नीचे है - छियालीस प्रतिशत. भारत के कितने लोग इंफेलाइटिस कैंसर टीवी आदि से जूझ रहे हैं - पंद्रह प्रतिशत. भारत के कितने प्रतिशत लोग एक टाइम भूखे सोते हैं - सत्तरह प्रतिशत. भारत के कितने लोग दूषित पानी पीते हैं - पच्चीस प्रतिशत. अब बताइए मुख्य मुद्दा क्या होना चाहिए था और क्या है? किसने मुख्य मुद्दे बदल कर हमें तीन तलाक, हलाला और मनुस्मृति जैसी गौण बातों में उलझाया है? इसीलिए कहा मैंने कि ऐसे लोगों को समझाया नहीं जा सकता. वो बस किसी रज्जाक अहमद के दरवाजे पर लाठी लेकर अगोरते रहेंगे कि - रज्जकवा कब तलाक तलाक बोल रहा है? लेकिन उसकी बीमारी उसके रोजगार उसके दैनिक खर्च पर चुप रहते हैं.
इस बाजा बजाते हुए प्रधान अध्यापक का चेहरा गौर से देखिए. कल यह चेहरा मेरा होगा, आपका होगा, हमारे बेटे-बेटियों का होगा. क्योंकि हमारा एजुकेशन सिस्टम ही ऐसा है. हमारे सरकारों की नीतियां ही ऐसी हैं. सर्व शिक्षा अभियान और स्किल डेवलपमेंट का बाजार पूंजीवाद पर आधारित एक धोखा है बस और कुछ नहीं. देखिए, माध्यमिक शिक्षा बोर्ड मध्य प्रदेश हर साल कितने अध्यापक को नौकरी मिलती है जबकि बी एड् करके निकलने वाले बच्चों की संख्या है 50 हज़ार से ऊपर है
प्राथमिक शिक्षा में हर कितनी भर्तियां होती हैं किसी को पता नहीं और प्रदेश में बीटीसी कोर्स में एडमिशन होता है नब्बे हजार. बी टेक् प्लेसमेंट होता है बीस हजार और हर साल पैदा होते हैं तीन लाख इंजीनियर.
आज भी रोज स्कूल्स - कॉलेज खुल रहे हैं. सरकारें कहती हैं कि पहले तुम बी एड्, बीटीसी आईआईटी, पालिटेक्निक आई टी आई नर्सिंग सिलाई कढाई का कोर्स करके आओ उसके बाद हम योग्यतम का चुनाव कर लेंगे.
और मैं कह रहा हूं कि- सरकार जब हर साल 50 हज़ार से ऊपर बी एड् वालों को ही नौकरी नहीं दे पर रही है तो प्रदेश में बी एड् बंद करदेना चाहिए ..और बीस हजार बी टेक् की सीटें ही रखिए ताकि जो डिग्री लिए उहे है उसे नौकरी मिले बाकी लोग स्वरोजगार के अंतर्गत पहले से ही मुर्गीपालन करें सूअर पालन करें स्किल इंडिया के तहत बाजा ही बजाएं.
अब प्रधान अध्यापक साड़ी पहनकर लोचाली में अपने देवर की बारात ले कर नामक गाने पर नचनियां बनें ठुमके लगाने लगे और तर्क देंने लगे कि "भाई कुछ कर ही तो रहा हूं न " तो बी एड कोर्स का भी अवमूल्यन होगा और एन सी टी ई का भी.
बी टेक् का लड़का सड़क पर जूते की मरम्मत में स्किल डेवलपमेंट करे तो अच्छा नहीं लगेगा. बी एड् करके प्रधान अध्यापक सूअर पालन करने लगें तो हंसी ही आएगी. क्योंकि मैंने जो सीखा उसमें बच्चों की मानसिकता, उनका बौद्धिक स्तर, अधिगम प्रक्रिया, सीखने मे व्यवधान आदि था. और अब जो मैं कर रहा हूं वो है कि सूकरी कितने तापमान पर गर्भवती होगी? उसे खाने की कितनी मात्रा में क्या देना होगा? पांच मादा सूकरी के साथ कितने नर सूअर रहेंगे? और इसे आप स्वरोजगार कहते हैं. स्किल डेवलपमेंट कहते हैं.
साफ़ साफ़ कह रहा हूं कि अगर मुझे सूअर पालना है तो हाईस्कूल इंटर बी एड् एम एड् करके क्यों? आठवीं पास पर क्यों नहीं? आज बहुत से दोस्त कहते हैं कि देखो हमने हिंदी से एम ए बीएड किया और पेपर मिल में अपने मेहनत के बदौलत अच्छा कमा रहा हूं. देखो मैंने समाजशास्त्र में पी एचडी की और आज ठेकेदारी करा रहा हूं.
दोस्त! मैं पूछ तो रहा हूं कि हिंदी में जो कबीर तुलसी पढ़ा था उसका पेपर मिल में यूज कैसे करते हो? जो समाजशास्त्र में हड़प्पा मोहनजोदड़ो में टाइम वेस्ट किया उससे अच्छा होता कि दो चार साल पहले ही ठीकेदार हो गए होते. कितने अफसोस की बात है कि हम फेयर एंड लवली खरीदते समय पूछते हैं कि-भाई सात दिनों में गोरा हो जाऊंगा न? और अगर नहीं हुआ तो तुम्हारे मुंह पर मार जाऊंगा यही क्रीम.
अब बताइए आपने हाईस्कूल में इंटर में कॉलेज में एडमिशन लेते समय पूछा कि भाई मैं क्या करूंगा इस डिग्री का? अगर आइएएस मास्टर क्लर्क नहीं बना तो मार जाऊंगा यही डिग्री तुम्हारे मुंह पर........................
नहीं पूछा आपने क्योंकि आपको बताया गया है कि शिक्षा ही व्यक्ति का निर्माण करती है. लेकिन कौन सी शिक्षा व्यक्ति का निर्माण करती है औपचारिक कि अनौपचारिक? यह नहीं बताया गया.
इसलिए नहीं बताया गया कि जो शिक्षा का बाजार है वो बंद हो जाएगा. आप भोपाल जाइए देखिए एक आदमी के 5-5 कालेज. पुरे प्रदेश मे हर जगह उन्हीं लोगों के कालेज जो सरकारें तय करते हैं.
वो यही चाहते हैं कि तुम पहले बी एड् - बीटीसी कर लो. दो - चार लाख हमें दे दो, उसके बाद मुर्गी फार्म खोलो. और मैं कह रहा हूं कि भाई पहले ही खोल लेने दो कांहे बीएड दे रहे हो जबरदस्ती. तो वो कहते हैं कि - असितवा नक्सली है. शिक्षा से ही देश का विकास होता है इतनी सी बात नहीं जानता.
मुझे सच में हंसी आती है शिक्षा व्यवस्था के उस मोहरे एमबीबीएस के टॉपर स्टुडेंट पर जिसने एम डी किया. दस सालों का अनुभव लेकर भोपाल में सीएमओ बना. और आज उसे कम पढ़ा लिखा स्वास्थ्य मंत्री समझा रहा है कि- "सुनो ऐसे नहीं ऐसे करो".
सरकारें शायनिंग इंडिया का नारा देती रह गईं जवाहर रोजगार योजना में भ्रष्टाचार बढ़ता गया स्किल इंडिया डेवलपमेंट, योजना आयोग, नीति आयोग, लघु उद्योग मंत्रालय हवाई दौरे करते रहे और भोपाल के लजीज व्यंजन का स्वरोजगार मर गया.
बर्गर पिज़ा आ गए. मालवा की लाक की चूड़ियां विधवा हो गईं और उनकी जगह चायनीज चूड़ियों ने ले लीं. रतलाम के नमकीन की जगह मैक्डोनाल्ड्स खुलते गए कुम्हार के घड़े, पत्तों के दोने, जल मर गए और सरकारों की उपलब्धियां बढ़ती गईं.
मैं पूछ रहा हूं कि हमारे पहले के लघु उद्योग कहां गए तो सरकारें कहती हैं कि लोन लो और मसाले बनाओ. मैं पूछ रहा हूं कि सरकार एमडीएच और रामदेव मसाले के हजारों करोड़ टर्न ओवर में मेरे मसाले का बाजार कहां है? तो सरकार कहती है कि तुम साले अकर्मण्य हो, आलसी हो.
आप मानते क्यों नहीं कि आपकी नीतियां फेल हो गईं? आपके पास कोई योजना नहीं जिससे आप रोजगार दे सकें. शिक्षा आपके लिए मात्र कॉलेजों के प्रबंधकों की जूजी है. स्वरोजगार और स्किल डेवलपमेंट से मेरा विरोध नहीं है. बल्कि मैं इसमें और गुणात्मक सुधार की बात कर रहा हूं. सूअर पालन उसे सिखाइए जो आठवीं पास है जो एम ए नहीं कर सकता.
बी एड् की डिग्री मुझे नहीं उसे दीजिए जिसको गारंटीड रोजगार दे सकें आप. अब बी एड् करके प्रधान अध्यापक नाच में बाजा बजा रहे हैं और आप कह रहे हैं कि यही स्वरोजगार है यही स्किल इंडिया डेवलपमेंट है.
तो रख लीजिए इस फोटो को संभाल कर. यही प्रधान अध्यापक की तस्वीर भारत के हर आगामी शिक्षार्थी की तस्वीर है, भारतीय शिक्षा पद्धति की तस्वीर है,और हमारे नेताओं की नीतियों और उनके नैतिक मूल्यों का चेहरा भी....
Comment Now